Tuesday, January 28, 2025
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संस्कारों की वसीयत करें युवा पीढ़ी के नाम

 

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विज्ञान के इस तेज दौर ने आम आदमी के जीने का रंग-ढंग ही बदल दिया है। कंप्यूटर, मोबाइल फोन, चमचमाती तेज दौड़ती कारें जीवन का अभिन्न अंग बन गई हैं। महीनों का काम दिनों में और दिनों का काम कुछ घंटों और मिनटों में होने लगा है। आज एक सफाई कर्मचारी भी अपने मोबाइल फोन से दुनिया के किसी भी कोने में घर बैठे बात कर सकता है। हर प्रकार की सुख सुविधाएं होने के बावजूद भी हर इन्सान पहले से अधिक परेशान और दुखी है। हम अपने मन का चैन और शांति खोते जा रहे हैंं। आखिर ऐसा क्यू हो रहा है?

कल तक जो जमीन-जायदाद कुछ हजारों रुपए की थी, वो आज लाखों और करोड़ों की कीमत में पहुंच गई हैं। जैसे-जैसे इन्सान के पास दौलत बढ़ रही है, उसकी मानसिकता या यूं कहें कि दिल छोटा होता जा रहा है। उसका धन-दौलत के प्रति लोभ बढ़ता जा रहा है। समाज कल्याण के बारे में तो सोचना तो दूर, अपने मां-बाप की सेवा करने में भी परेशानी होने लगी है। बुजुर्गों को अपने ही घर में रहने के लिए कई बार कोर्ट कचहरी का सहारा लेना पड़ रहा है।

आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के सबसे ताकतवर और अमीर देश अमरीका का हर दसवां नागरिक दिमागी तौर से परेशान है जिनमें अधिकतर पागलपन के कगार पर हैं। ऐसा ही कुछ हाल यहां पर आत्महत्या करने वालों के ग्राफ का भी है।
हम हर अच्छे काम का श्रेय तो खुद लेना चाहते हैं और कुछ भी गलत होने पर सारा दोष भगवान के सिर मढ़ देते हैं जबकि सच्चाई यह है कि हमारा मन हर अच्छे और बुरे काम का विश्लेषण करके किसी भी गलत काम को करने से पहले हमें चेतावनी देता है लेकिन हम निषेधात्मक मत को जल्दी स्वीकार कर लेते हैं और अपनी अंतरात्मा की आवाज को अनसुना कर देते हैं।

आज की तेज दौड़ती जिंदगी में युवा-पीढ़ी को धर्म के बारे में बात करना समय की बरबादी लगता है जबकि हमारे धर्मग्रन्थ हमें अनेक प्रकार के नशों से बचने और रोगों से मुक्त अपना जीवन सुखमय तरीके से जीने की राह दिखाते हैं। हम लोग पुरखों से मिले उच्च संस्कारों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाना तो दूर, खुद भी उन पर अमल करने में कठिनाई महसूस करते हैं।

हम अपने बच्चों के सुख के लिये लाखों-करोड़ों रुपए एकत्र करते रहते हैं ताकि उनको आने वाले समय में किसी प्रकार का कोई कष्ट न हो लेकिन अगर उनका जीवन सचमुच सुखी बनाना है तो उन्हें जमीन जायदाद, पैसों के साथ पारिवारिक मूल्यों की पहचान करवानी होगी। उन्हें समझाना होगा कि साफ सुथरे आचरण के साथ जीने के लिये धर्म को सदा याद रखें। अपने स्वभाव में मीठा बोलने की आदत डालें। इससे आप किसी का भी मन जीत सकते हैं।

अपनी आंखें और कान हमेशा खुले रखें। जहां तक हो सके, निषेधात्मक बातों की ओर ध्यान न देकर केवल अपनी वास्तविक, निर्णायक बातों को ही जीवन में उतारें। एक सभ्य नागरिक की तरह कानून की इज्जत करें। तरक्की की चकाचौंध में लोग चरित्र निर्माण का महत्व बिल्कुल भूल चुके हैं।

सुखमय जीवन जीने के लिये जिंदगी में जो कुछ भगवान ने हमें दिया है, उससे तृप्त और संतुष्ट रहने की बहुत महत्ता है। इसके बिना आप एक दिन भी शांति से नहीं जी सकते। जहां तक हो सके, फालतू बातों का बोझ न उठायें।
चरित्र निर्माण से ही जीवन में असली सुख, शांति और समृद्धि आ सकती है।

इससे पहले कि हम सब जिदंगी की भागम-भाग में भटकते हुए अन्धेरी राहों में खो जाएं, हमें अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करते हुए, उनको धन दौलत, जमीन जायदाद के साथ-साथ अपने पुरखों से मिले हुए उच्च संस्कारों और परिवारिक मूल्यों की वसीयत भी उनके नाम कर देनी चाहिये। सुख-चैन और शांतिपूर्ण जीवन के लिए संतोष ही सबसे बड़ी दौलत है।

जौली अंकल


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