कोरोना महामारी का खौफ अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है और भू-राजनैतिक संकट की वजह से विकास का परिदृश्य वैश्विक स्तर पर अनिश्चित बना हुआ है। चीन में ओमीक्रोन के प्रसार और रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने से वैश्विक हालात बिगड़े हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेंचमार्क क्रूड ब्रेंट 120 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर के आसपास लगातार बना हुआ है, जिसके आगामी महीनों में भी उच्च स्तर पर बने रहने की संभावना है। वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। विश्व की लगभग सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं बढ़ती महंगाई की वजह से हलकान हैं और उन्नत देशों के केंद्रीय बैंकों को महंगाई पर काबू पाने के लिए नीतिगत दरों में इजाफा करना पड़ रहा है। बढ़ती महंगाई और केंद्रीय बैंकों द्वारा दरों में तेज बढ़ोतरी के डर और आर्थिक वृद्धि पर पड़ने वाले संभावित नकारात्मक असर से भारत सहित दुनिया भर के बाजारों में 13 जून को जबर्दस्त बिकवाली देखी गई। निवेशकों को डर लग रहा है कि केंद्रीय बैंक द्वारा दरों में वृद्धि किए जाने से विश्व की आर्थिक वृद्धि प्रभावित हो सकती है।
आर्थिक मंदी की वजह से लोगों की खरीदने की क्षमता घट जाती है। ऐसी अवस्था में लोगों की कमाई कम नहीं होती है, लेकिन मुद्रा की कीमत कम हो जाने की वजह से लोगों को किसी भी वस्तु को खरीदने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं, जिसके कारण वे न तो जरूरत के सामान खरीद पाते हैं और न ही बचत कर पाते हैं। आर्थिक गतिविधियां धीमी पड़ने लगती हैं। उत्पादन और विकास दर दोनों में गिरावट दर्ज की जाती है। रोजगार सृजनका कार्य बंद हो जाता है और लोगों के हाथों से रोजगार फिसलने लगते हैं। महंगाई की वजह से विविध उत्पादों की मांग में कमी आ जाती है और मांग में कमी आने से कल-कारखानों को उत्पादन को कम करना पड़ता है, जिसके कारण कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ता है और लंबी अवधि तक नकारात्मक स्थिति बनी रहने से कंपनियां बंद भी हो जाती हैं।
महंगाई पर काबू पाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने हालिया मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर में 0.50 प्रतिशत का इजाफा किया है। इसके पहले मई के प्रथम सप्ताह में केंद्रीय बैंक द्वारा रेपो दर में 0.40 की बढ़ोतरी की गई थी। रेपो दर में ताजा बढ़ोतरी के साथ यह बढ़कर 4.90 प्रतिशत पर पहुंच गया है। रेपो दर में वृद्धि के बाद बैंक उधारी दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक ने 15 जून को उधारी दर में 20 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है। भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति की सहनशीलता सीमा को 5 से 6 प्रतिशत के बीच रखा है। अमेरिका में यह सीमा 2 प्रतिशत है, लेकिन वहां मई महीने में महंगाई 8.6 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई, जो दिसंबर 1981 के बाद सबसे अधिक है। अमेरिका में 10 वर्षीय अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल 3.2 प्रतिशत पर पहुंच गया है। महंगाई पर काबू पाने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 15 जून को ब्याज दर में 75 आधार अंक की बढ़ोतरी की है। बैंक आॅफ इंग्लैंड ने भी 16 जून को ब्याज दर में 1.25 प्रतिशत की वृद्धि की है, जो विगत 13 वर्षों में सबसे अधिक है। यूरो जोन में महंगाई दर 40 साल के रिकॉर्ड को तोड़कर 8 प्रतिशत से ऊपर के स्तर पर पहुंच गई है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने ताजा मौद्रिक समीक्षा में कहा है कि आगामी तिमाहियों में महंगाई दर 6 प्रतिशत से ऊपर रह सकती है। केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2023 के लिए महंगाई के अनुमान को 5.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया गया है। रिजर्व बैंक के गवर्नर के अनुसार वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में महंगाई 7.4 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.2 प्रतिशत और अंतिम तिमाही में 5.8 प्रतिशत रह सकती है। महंगाई पर लगाम लगाने के लिए मई महीने में केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती की थी। सरकार का मानना था कि आवाजाही पर खर्च कुछ कम होने से जरूरी उत्पादों की कीमत में आंशिक कमी आएगी और आमजन को कुछ राहत मिलेगी, क्योंकि अभी लोगों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा दैनिक जरूरतों को पूरा करने में निकल जा रहा है।
दुनिया में सऊदी अरब, रूस और अमेरिका तेल के तीन सबसे बड़े उत्पादक देश हैं। रूस में 12 प्रतिशत, 12 प्रतिशत सऊदी अरब में और 18 प्रतिशत अमेरिका में कच्चे तेल का उत्पादन होता है। भारत 85 प्रतिशत तेल का आयात करता है। भारत ज्यादातर आयात सऊदी अरब और अमेरिका से करता है, लेकिन कुछ प्रतिशत तेल का आयात इराक, ईरान, ओमान, कुवैत, रूस आदि देशों से भी करता है। रूस प्राकृतिक गैस का वैश्विक मांग का 10 प्रतिशत उत्पादन करता है। रूस 40 प्रतिशत तेल और प्राकृतिक गैस, यूरोप को बेचता है। घरेलू प्राकृतिक गैस की कीमत में एक डॉलर की बढ़ोतरी होने पर सीएनजी की कीमत भारत में लगभग 5 रुपये प्रति किलो बढ़ जाती है। यूक्रेन, विश्व का सबसे बड़ा परिष्कृत सूरजमुखी तेल का निर्यातक है। दूसरे स्थान पर रूस है। भारत दोनों देशों से सूरजमुखी तेल का आयात करता है।
मौजूदा उच्च महंगाई दर के लिए घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय कारण जिम्मेदार हैं। अंतर्राष्ट्रीय कारण ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। भू-राजनैतिक संकट का अभी भी समाधान निकलता नहीं दिख रहा है। रूस और यूक्रेन अभी भी अपने-अपने ईगो पर अड़े हुए हैं। इस वजह से वैश्विक स्तर महंगाई बढ़ रही है और दुनिया मुद्रास्फीति जनित मंदी की गिरफ्त में आ रही है। हालांकि, वर्तमान माहौल में भी भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से मजबूत हुई है। देश में मई में खुदरा मुद्रास्फीति नरम होकर 7.04 प्रतिशत रही, जो अप्रैल में 8 सालों के उच्च स्तर 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई थी।