जनवाणी ब्यूरो
नई दिल्ली: 21 साल की बिलकिस की जिंदगी एकदम से बदल गई। साल 2002 में गुजरात में भड़के दंगो के दौरान दंगाइयों ने बिलकिस, उनकी मां और परिवार की तीन अन्य महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया। उन सभी को बेरहमी से पीटा। जिसके बाद वह आरोपी गुजरात के गोधरा में उम्र कैद की सजा काट रहे। लेकिन 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को रिहा कर दिया गया था। दोषियों की रिहाई के बाद बिलकिस बानो और उनके परिवार ने इस फैसले पर निराशा जताई और मामले पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस केस में अब आठ जनवरी को फैसला आया है। सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार के फैसले को पलटते हुए सभी दोषियों की सजा में मिली छूट को रद्द कर दिया।
बिलकिस और उनके परिवार के साथ क्या हुआ
गुजरात में भड़के दंगों के दैरान 21 साल की बिलकिस के परिवार में बिलकिस और उनकी साढ़े तीन साल की बेटी के साथ 15 अन्य सदस्य भी थे। हमले में परिवार के 17 में से सात सदस्यों की मौत हो गई। छह लापता हो गए। केवल तीन लोगों की जान बच सकी। इनमें बिलकिस, उनके परिवार का एक पुरुष और एक तीन साल का बच्चा शामिल था। इस घटना के वक्त बिलकिस पांच महीने की गर्भवती थीं। दंगाइयों की हैवानियत के बाद बिलकिस करीब तीन घंटे तक बेसुध रहीं। बता दे घटना के बाद बिलकिस लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। लेकिन कुछ एक्शन नही लिया गया। जिसके बाद जांच सीबीआई को सोपी गई।
सीबीआई की जांच से सजा तक क्या-क्या हुआ?
सीबीआई ने मामले की नए सिरे जांच शुरू की। जांच में सामने आया कि मारे गए लोगों का पोस्टमॉर्टम तक ठीक से नहीं किया गया था। सीबीआई जांचकर्ताओं ने हमले में मारे गए लोगों के शव निकाले और पाया कि शवों में से किसी में भी खोपड़ी तक नहीं थी। सीबीआई के मुताबिक पोस्टमार्टम के बाद लाशों के सिर काट दिए गए थे, ताकि शवों की शिनाख्त न हो सके। मामले का ट्रायल शुरू हुआ तो बिलकिस बानो को जान से मारने की धमकी मिलने लगी। इसके बाद ट्रायल को गुजरात के बाहर महाराष्ट्र शिफ्ट कर दिया गया। मुंबई की कोर्ट में छह पुलिस अधिकारियों और एक डॉक्टर समेत कुल 19 लोगों के खिलाफ आरोप दायर हुए।
जनवरी 2008 में एक विशेष अदालत ने 11 आरोपियों को दुष्कर्म, हत्या, गैर कानूनी रूप से इकट्ठा होने समेत अन्य धाराओं में दोषी ठहराया गया। वहीं, बिलकिस की रिपोर्ट लिखने वाले हेड कॉन्स्टेबल को कोर्ट ने आरोपियों को बचाने के लिए गलत रिपोर्ट लिखने का दोषी पाया गया। जबकि, सात अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। वहीं, एक आरोपी की ट्रायल के दौरान मौत हो गई।
जिन 11 आरोपियों को दोषी ठहराया गया था उनमें जसवंतभाई नाई, गोविंदभाई नाई, नरेश कुमार मोरधिया (मृतक), शैलेष भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप वोहानिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, नितेश भट्ट, रमेश चंदना और हेड कांस्टेबल सोमाभाई गोरी शामिल थे। जसवंत, गोविंद और नरेश को बिलकिस से दुष्कर्म किया था। वहीं, शैलेष ने बिलकिस की बेटी सालेहा को जमीन पर पटक कर मार डाला था।
मई 2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सामूहिक दुष्कर्म मामले में 11 लोगों की आजीवन कैद की सजा को बरकरार रखा। वहीं, पुलिसवालों और डॉक्टर समेत बाकी सात लोगों को बरी कर दिया। अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को आदेश दिया कि वो बिलकिस को दो हफ्ते के अंदर 50 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर दे।
रेप और हत्या के दोषियों को आखिर किस आधार पर छोड़ा गया है?
11 दोषियों में से एक राधेश्याम शाह ने सुप्रीम कोर्ट में सजा माफी के लिए याचिका दायर की। कोर्ट ने गुजरात सरकार को याचिका पर फैसला लेने को कहा। इसके बाद गुजरात सरकार ने एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी ने माफी की याचिका मंजूर कर ली। इसके बाद इन लोगों की रिहाई हुई।