यह चौथा अवसर है, जब गणतंत्र दिवस के मौके पर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। पहली बार साल 1950 में जब भारत ने अपना पहला गणतंत्र दिवस मनाया था उस वक्त तत्कालीन राष्ट्रपति सुकर्णो भारत आए थे। 2011 में राष्ट्रपति डॉ. सुसीलो बामबंग व 2018 में जोको विडोडो को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था। उस वक्त विडोडो के साथ दूसरे आसियान देशों के राष्ट्राअध्यक्ष भी भारत आए थे। अब 76 वें गणतंत्र दिवस पर कर्तव्य पथ पर होने वाली भव्य परेड में शामिल होने के लिए राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो को आमंत्रित किया गया है। सवाल यह है कि इस आसियान देश के प्रति भारत इतना संजीदा क्यों है।
इंडोनेशिया 17 हजार से अधिक द्वीपों वाला विश्व का सबसे बड़ा द्वीपीय देश है। यहां दुनिया की चौथी सबसे बड़ी आबादी निवास करती है। भारत और इंडोनेशिया में दो सहस्राब्दियों से घनिष्ट सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संबंध है। दोनोें देशों के द्विपक्षीय संबंधों पर साझा संस्कृति, औपनिवेशिक इतिहास और स्वतंत्र विदेश नीति का एकीकृत प्रभाव है। 1945 में जिस वक्त इंडोनेशिया स्वतंत्र हुआ था भारत दुनिया का पहला ऐसा देश था जिसने इंडोनेशिया की स्वतंत्रता का समर्थन किया था। 1955 में बांडुंग में एशियाई-अफ्रीकी सम्मेलन के दौरान इंडोनेशिया का सहयोग और समर्थन किया। भारत की लुक ईस्ट नीति के लिए इंडोनेशिया अहम देश है। लेकिन इंडोनेशिया के अलावा दूसरे आसियान देश भी भारत की लुक ईस्ट नीति में किसी न किसी रूप में योगदान कर रहे है। इंडोनेशिया के प्रति भारत के झुकाव की वजह क्या है।
दरअसल, भारत की एक्ट ईस्ट नीति में इंडोनेशिया का अपना एक अलग स्थान है। दोनों देशों के बीच गहरे आर्थिक संबंध हैं। आर्थिक संबंधों से इतर दोनों देश ह्णसमग्र रणनीतिक साझेदारीह्ण पर भी फोकस कर रहे है। 2001 में भारत और इंडोनेशिया ने संयुक्त रक्षा सहयोग समिति की स्थापना करते हुए एक रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए। 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति जोको विडोडो की यात्रा के दौरान दोनों देश नियमित सुरक्षा वार्ता के लिए सहमत हुए। 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इंडोनेशिया यात्रा के दौरान रणनीतिक साझेदारी को व्यापक रणनीतिक साझेदारी में अपग्रेड किया। आर्थिक क्षेत्र में भी दोनों देश समानरूप से कदमताल कर रहे हैं। दोनों के बीच आर्थिक सहयोग पूरे आसियान क्षेत्र में सबसे ज्यादा है। साल 2023-24 के मध्य भारत और इंडोनेशिया के बीच 29.40 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ। भारत ने यहां 1.56 बिलियन डॉलर का निवेश कर रखा है। ऊर्जा से लेकर तकनीक और रक्षा निर्माण तक दोनों देशों के बीच सहयोग की नई राह खुल रही है। इंडोनेशिया जी-20 का सदस्य है। वह उभरती अर्थव्यवस्थाआें वाले एक अन्य समूह (सीआईवीईटीएस) कोलंबिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, मिस्र, तुर्की और दक्षिण अफ्रीका का भी पूर्णकालिक सदस्य है। यही वजह है कि इंडोनेशिया को उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में ब्रिक्स देशों में शामिल किए जाने के लिए उपयुक्त उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है। देर-सवेर अगर इंडोनेशिया की ब्रिक्स में एंट्री होती है तो रूस और दक्षिण अफ्रीका के बाद भारत को ब्रिक्स में एक ओर विश्वस्त सहयोगी मिल जाएगा। इतना ही नहीं दक्षिण पूर्वी एशिया का सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश होने के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को बेहतर करने में इंडोनेशिया बड़ी भूमिका निभा सकता है।
गुटनिरपेक्ष राष्ट्र के तौर पर इंडोनेशिया किसी एक महाशक्ति के खेमे में नहीं रहा हैं। उसके चीन और पाकिस्तान के साथ भी अच्छे संबंध है। चीन उसके प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में शीर्ष स्थान रखता है। विदेशी निवेशक के रूप में यहां चीन की भूमिका लगातार बढ़ रही है। साल 2019 से 2024 की पहली तिमाही तक इंडोनेशिया में चीन का निवेश 30.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा है। साल 2023 में चीन ने इंडोनेशिया में 21.7 अरब डॉलर के नए निवेश का वादा किया। यही वजह है कि पिछले साल अक्टूबर में सत्ता में आने के बाद प्रबोवो सबसे पहले चीन के दौरे पर गए थे। ऐसे में इंडोनेशिया किसी भी सूरत में चीन की शर्त पर भारत के साथ किसी तरह के रक्षा गठबंधन की संभावना पर विचार करेगा इसकी उम्मीद कम ही है। भारत दौरे से पहले इस तरह की खबरे आई थी कि प्रबोवो भारत यात्रा के तुंरत बाद पाकिस्तान जा सकते हैं। लेकिन भारत ने रणनीति सुझबुझ से उन्हें पाकिस्तान दौरा टालने के लिए राजी कर लिया।
हालांकि, बहुत संभावित है कि राष्ट्रपति प्रबोवो की विदेश नीति अर्थशास्त्र आधारित कूटनीति नहीं होगी बल्कि वे वैश्विक मामलों में इंडोनेशिया की प्रभावी भूमिका निभाने की दिशा में काम करना चाहेंगे। अपने चुनाव अभियान के दौरान भी उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि इंडोनेशिया एक गुटनिरपेक्ष देश है और वो दूसरे देशों के साथ साझेदारी और दोस्ती कायम करना चाहता है। आर्थिक, सामरिक और रणनीति ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां भारत इंडोनेशिया के साथ बेहतर सहयोग कर संबंधों को ओर अधिक मजबूत कर सकता है। प्रबोवो के वर्तमान दौरे में भारत और इंडोनेशिया के बीच रक्षा समझौता होने की संभावना है। ब्रहम्मोस मिसाइल प्रणाली की आपूर्ति को लेकर दोनोें के बीच बातचीत चल रही है। यह डील करीब 45 करोड़ डॉलर की हो सकती है। सच तो यह है कि भारत और इंडोनेशिया के लिए भविष्य में टू प्लस टू मीटिंग की मेजबानी की संभावना पर विचार करने का यह सही समय है। यही वजह है कि प्रबोवो के इस दौरे को भारत महत्वपूर्ण कूटनीतिक अवसर के तौर पर देख रहा है।