Sunday, June 1, 2025
- Advertisement -

धरती बचाने आप भी आगे आएं

SAMVAD 2


70 1इस समय पूरा देश बिस्तर, आक्सीजन, दवा जैसे संकट से जूझ रहा है और इसकी कमी के लिए तंत्र को दोश दे रहा है। यदि बारीकी से देखें तो हम किसी बीमारी के फैल जाने के बाद उसके निदान के लिए हैरान-परेशा हैं, जबकि देश की सोच समस्या को आने या उसके विकराल होने से पहले रोकना होना चाहिए। यह एक कड़वा सच है कि एक सौ पैतीस करोड़ की आबादी, वह भी बेहद असमान सामाजिक-आर्थिक पृश्ठभूमि की, उसके सामने ऐसी विपदा में तंत्र के ढह कर बेहाल हो जाना लाजिमी है, लेकिन इससे बड़ा दुख यह है कि तंत्र हालात को गंभीर होने के कारकों पर नियंत्रण करने में असफल रहा है सारी दुनिया जिस कोरोना से कराह रही है, वह असल में जैव विविधता से छेड़छाड़, धरती के गरम होते मिजाज और वातावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ने के मिलेजुले प्रभाव की महज झांकी है। पर्यावरण पर खतरा धरती के अस्तित्व के लिए चुनौती बन गया है, महज पानी के दूषित होने या वायु में जहर तक बात नहीं रह गई है, इन सबका समग्र कुप्रभाव जलवायु परिवर्तन के रूप में सामने आ गया है। मौसम चक्र का अस्त-व्यस्त होना, गरमी हो या सर्दी या फिर बरसात, पूरे मौसम के चार महीने के स्थान पर अचानक ही कुछ दिनों पर चरम पर और अचानक ही न्यूनतम हो जाना।

जरा गौर करें, जिन शहरों-दिल्ली, मुंबई, प्रयागराज, लखनऊ, इंदौर, भोपाल, पुणे आदि में कोरोना इस बार सबसे घातक है, वहां की वायु गुणवत्ता बीते कई महीनों से गंभीरता की हद से पार है। दिल्ली से सटे गाजियाबाद को बीते तीन सालों से देश के सबसे प्रदूषित शहर की सूची में पहले तीन स्थानों पर रहने की शर्मनाम ओहदा मिला है। गत पांच सालों के दौरान दिल्ली के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एम्स में सांस के रोगियों की संख्या 300 गुणा बढ़ गई है। एक अंतरराष्ट्रीय शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर प्रदूषण स्तर को काबू में नहीं किया गया तो साल 2025 तक दिल्ली में हर साल करीब 32,000 लोग जहरीली हवा के शिकार हो कर असामयिक मौत के मुंह में जाएंगे।

सनद रहे कि आंकड़ों के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली में हर घंटे एक मौत होती है। दुनिया के तीस सबसे दूषित शहरों में भारत के 21 शहर हैं। हमारे यहां सन 2019 में अकेले वायू प्रदूषण से 17 लाख लोग मारे गए। खतरे का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वायु प्रदूषण करीब 25 फीसदी फेफड़े के कैंसर की वजह है। यह तो किसी से छिपा नहीं है कि कोरोना वायरस जब फेफड़ों या श्वांसतंत्र पर अपना कब्जा जमाता है तो रोगी की मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है। जान लें कि जिन शहरों के लोगों को फेफड़े वायु प्रदूषण से जितने कमजोर हैं, वहां कोविड का कहर उतना ही संहारक है।

अब सारे देश से खबर आ रही है कि अमुक सरकारी अस्पताल में पिछले साल खरीदे गए वेंटिलेटर खोले तक नहीं गए या उनकी गुणवत्ता घटिया है या फिर उन उपकरणों को संचालित करने वाला स्टाफ तक नहीं है। यह बानगी है कि हमारा चिकित्सा तंत्र श्वांस रोग से जूझने को कितना तैयार है। दिल्ली हो, रोहतक हो या पंजाब, ठंड के दिनों में पराली को ले कर चिल्लाते मिलेंगे लेकिन शहरों की आवोहवा खराब होने के मूल कारण-बढ़ती आबादी, व्यापार-सत्ता और पूंजी का महानगरों में सिमटना, निजी वाहनों की संख्या में इजाफा, विकास के नाम पर लगातार धूल उगलने वाली गतिविधियां, सड़कों पर जाम से निबटने के तरीकों पर कभी किसी ने काम नहीं किया। यह एक कड़वी चेतावनी है कि यदि शहर में रहने वालों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई नहीं गई, उन्हें पर्याप्त पौष्टिक आहार नहीं मिला, यदि यहां सांस लेने को साफ हवा नहीं मिली तो कोरोना से भी खतरनाक महामारियां समाज में स्थाई रूप से घर कर जाएंगी। यह किसी से छुपा नहीं है कि वैश्विक भूख तालिका में हमारा स्थान दयनीय स्थिति पर है और पिछले साल की बेरोजगारी की झड़ी के बाद यह समस्या विकराल हो गई है। भूखा रहेगा इंडिया तो करोनो से कैसे लडेगा इंडिया?

आखिर एक नैनो महीन वायरस ने इंसान के डीएनए पर कब्जा करने काबिल ताकत हासिल कैसे कर ली? पिछले एक दशक के दौरान देखा गया कि मानवीय जीवन पर संक्रामक रोगों की मार बहुत जल्दी-जल्दी पड रही है और ऐसी बीमारियों का 60 फीसदी हिस्सा जन्तुजन्य है और इस तरह की बीमारियों का 72 फीसदी जानवरों से सीधा इंसान में आ रहा है। कोविड-19 , एचआईवी, सार्स, जीका, हेंद्रा, ईबोला, बर्ड फ्लू आदि सभी रोग भी जंतुओं से ही इंसानों को लगे हैं। दुखद है कि अपनी भौतिक सुखों की चाह में इंसान ने पर्यावरण के साथ जमकर छेड़छाड़ की और इसी का परिणाम है की जंगल, उसके जीव और इंसानों के बीच दूरियां कम होती जा रही हैं। जंगलों की अंधाधुंध कटाई और उसमें बसने वाले जानवरों के नैसर्गिक पयार्वास के नष्ट होने से इंसानी दखल से दूर रहने वाले जानवर सीधे मानव के संपर्क में आ गए और इससे जानवरों के वायरसों के इंसान में संक्रमण और इंसान के शरीर के अनुरूप खुद को ढालने की क्षमता भी विकसित हुई। यह बात जानते-समझते हुए भी भारत में गत साल के संपूर्ण तालाबंदी के दौरान भी कोई ऐसी पचास से ज्यादा परियोजनाओं को पर्यावरणी नियमों को ढीला करके मंजूरी दी गई, जिनकी चपेट में पश्चिमी घाट से ले कर पूर्व का अमेजान कहलाने वाले सघन पररंपरिक वन क्षेत्र आ रहे हैं।

पहले कहा जाता था कि प्रदूषण का असर केवल शहरों में है, गांव में तो शुद्ध हवा-पानी है ना, लेकिन आज के हालात सबसे ज्यादा गांव वालों को ही प्रभावित कर रहे हैं। गांव अर्थात जीवकोपार्जन का मूल आधार खेती-किसानी, वह भी प्रकृति पर आधारित। हालात इतने विषम हैं कि खेती अब अनिश्चितता से गुजर रही है। उत्पाद की गुणवत्ता गिर रही है, वहीं मवेशियों के प्रजनन और दुग्ध क्षमता पर भी असर हो रहा है। उधर करोनो के भय से हुए पलायन के चलते गावों पर आबादी का बोझ बढ़ा तो साफ पानी के संकट ने गांवों के निरापद स्वरूप को छिन्न-भिन्न कर दिया। असल में कोविड का पहले से भी भयावह स्वरूप इंसान की प्रकृति के विरूद्ध जिद का नतीजा है। बीते साल तालाबंदी में प्रकृति खिलखिला उठी थी, हवा-पानी साफ था, पक्षी-जानवर भी स्वच्छंद थे, लेकिन इंसान जल्द से जल्द प्रकृति की इच्छा के विपरीत फिर से कोरोना-पूर्व के जीवन में लौटने को आतुर था। सरकार व समाज दोनों को समझना होगा कि उत्तर-कोरोना काल अलग है, इसमें विकास, जीडीपी की परिभाषाएं बदलनी होंगी। थोड़ा पर्यावरण को अपने मूल स्वरूप में आने दें, जबरदस्ती करेंगे तो प्रकृति भयंकर प्रकोप दिखाएगी।


SAMVAD 11

spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Skin Care Tips: बाहर की धूल से चेहरा हो गया है फीका? ये आसान स्टेप्स लौटाएंगे चमक

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Saharanpur News: पिकअप वाहन की टक्कर से मजदूर की मौत, परिजनों ने किया हंगामा

जनवाणी संवाददाता |सहारनपुर: कुतुबशेर थाना क्षेत्र के गंगोह रोड...

WhatsApp: आज से WhatsApp होगा बंद! जानिए किन पुराने फोन्स पर नहीं मिलेगा सपोर्ट

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Shamli News: दिल्ली-शामली रेल मार्ग पर ट्रेन पलटाने की साजिश नाकाम

जनवाणी संवाददाता |शामली: शामली में दिल्ली-सहारनपुर रेल मार्ग पर...
spot_imgspot_img