नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। अक्षय तृतीया, जिसे आखातीज के नाम से भी जाना जाता है, हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है। यह केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों का प्रतीक भी है। ‘अक्षय’ शब्द का अर्थ है, जो कभी क्षीण न हो, जिसका कभी नाश न हो। इस विश्वास के साथ, इस दिन किए गए पुण्य कर्म, दान, जप, तप, स्नान, पूजन अथवा सद्भावनापूर्ण निवेश अनंत फलदायी माने जाते हैं। यह दिन अबूझ मुहूर्त के रूप में भी प्रसिद्ध है, जिसका अर्थ है कि किसी भी शुभ कार्य को इस दिन बिना ज्योतिषीय विचार-विमर्श के प्रारंभ किया जा सकता है।
इस दिन मां लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा का विशेष महत्व होता है, क्योंकि यह दिन धन, वैभव और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। लोग इस शुभ अवसर पर सोना, चांदी, आभूषण, भूमि, वाहन और अन्य संपत्तियों की खरीदारी करते हैं, ताकि उनके जीवन में स्थायी समृद्धि बनी रहे। साथ ही यह दिन शुभ विवाह, नए व्यापार की शुरुआत और नए कार्यों के आरंभ के लिए अत्यंत उत्तम माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कुछ विशेष मंत्रों का जाप कर मां लक्ष्मी और कुबेर देव को प्रसन्न किया जा सकता है, जिससे जीवन में स्थायी उन्नति और शुभ फल प्राप्त होते हैं।
अक्षय तृतीय कब है?
वैशाख माह शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि आरंभ: 29 अप्रैल, सायं 05: 31 मिनट पर
वैशाख माह शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि समाप्त: 30 अप्रैल,दोपहर 02:31 मिनट पर
उदया तिथि के अनुसार अक्षय तृतीया 30 अप्रैल को मनाई जाएगी।
अक्षय तृतीय सोना खरीदने का शुभ मुहूर्त
30 अप्रैल, बुधवार प्रातः 5: 41 मिनट से लेकर दोपहर 2:12 मिनट तक रहेगा।
सोना खरीदने के लिए कुल अवधि: 8 घंटे 30 मिनट
अक्षय तृतीया पूजा मंत्र
ऊँ नमो भाग्य लक्ष्म्यै च विद्महे अष्ट लक्ष्म्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।।
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के खास मंत्र
ऊँ महालक्ष्म्यै नमो नमः । ऊँ विष्णुप्रियायै नमो नमः ।।
ऊँ धनप्रदायै नमो नमः । ऊँ विश्वजन्नयै नमो नमः ।।
लक्ष्मी जी का बीज मंत्र
ऊँ श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नम:।।
लक्ष्मी जी का बीज मंत्र
ऊँ श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नम:।।
सुख-समृद्धि के लिए मंत्र
या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी ॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥