नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। पापमोचनी एकादशी हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। यह एकादशी व्रत व्यक्ति के पापों को समाप्त करने और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन उपवास और साधना से व्यक्ति अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करता है और भगवान विष्णु की आराधना करता है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी, जिसे पापमोचनी एकादशी कहा जाता है, विशेष रूप से पापों के नाश और आत्मशुद्धि के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस दिन व्रति ब्रह्मचर्य, सत्य और अहिंसा का पालन करते हुए भगवान विष्णु का पूजन करते हैं। ऐसे में चलिए जानते है पापमोचनी एकादशी का महत्व, पूजा विधि और पौराणिक कथा के बारे में…
वैदिक पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि की शुरुआत 25 मार्च को सुबह 05 बजकर 05 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 26 मार्च को देर रात 03 बजकर 45 मिनट पर तिथि का समापन होगा। ऐसे में 25 मार्च को पापमोचनी एकादशी व्रत किया जाएगा।
महत्व
पापमोचनी एकादशी का महत्व बहुत व्यापक है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, यह व्रत व्यक्ति को उसके द्वारा जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्त करता है और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। यह एकादशी विशेष रूप से उन लोगों के लिए अत्यंत लाभकारी मानी गई है, जो अपने जीवन में शांति, सुख और आध्यात्मिक उन्नति की इच्छा रखते हैं। ‘पदमपुराण’ के अनुसार जो भी व्यक्ति इस दिन श्रद्धा और विश्वास के साथ व्रत करता है, वह अपने पापों का प्रायश्चित कर सकता है। यह व्रत न केवल पापों का नाश करता है, बल्कि मनुष्य के भीतर सद्गुणों का संचार भी करता है।
पूजा विधि
पापमोचनी एकादशी के दिन श्रद्धालुओं को प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इस व्रत में भगवान् विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है । इस दिन भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाकर पूजा प्रारंभ की जाती है। भगवान को तुलसी पत्र, पीले पुष्प, धूप, दीप, फल और नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं। पूजा के दौरान भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करना शुभ माना जाता है। भक्तजन इस दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप कर सकते हैं। विष्णु सहस्रनाम और भगवद्गीता का पाठ भी अत्यंत शुभ माना जाता है
पौराणिक कथा
राजा मान्धाता ने लोमश ऋषि से पूछा कि मनुष्य अपने पापों से कैसे मुक्त हो सकता है। इस पर ऋषि ने एक कथा सुनाई चैत्ररथ नामक वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे। एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नजर उन पर पड़ी, और वह उन्हें मोहित करने का प्रयास करने लगी। कामदेव ने उसकी सहायता की, जिससे ऋषि कामासक्त होकर अपनी तपस्या भूल गए और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षों बाद जब उनकी चेतना जागी, तो उन्हें अपनी तपस्या भंग होने का एहसास हुआ। क्रोधित होकर उन्होंने मंजुघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया। वह ऋषि के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगी। द्रवित होकर मेधावी ऋषि ने उसे चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने का उपाय बताया। स्वयं भी इस व्रत को करने से ऋषि अपने पापों से मुक्त हो गए और मंजुघोषा भी पिशाच योनि से छूटकर पुनः स्वर्ग लौट गई।