Friday, June 6, 2025
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Pradosh Vrat 2025: मई का पहला प्रदोष व्रत कल, जानें पूजा विधि और भगवान शिव की आरती

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। पंचांग के अनुसार, हर महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। इसे त्रयोदशी व्रत भी कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव और शिव परिवार की विशेष रूप से पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति की सभी समस्याओं का समाधान होता है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा पाने का विशेष अवसर है। इस दिन भोलेनाथ का अभिषेक करने से न केवल व्यक्ति के जीवन से भय और मानसिक तनाव समाप्त होते हैं, बल्कि कुंडली में मन के कारक ग्रह चंद्रमा भी मजबूत होता है।

इस बार 9 मई 2025 के दिन प्रदोष व्रत रखा जा रहा है। इस दिन हस्त नक्षत्र और वज्र योग का निर्माण हो रहा है, जिसपर बालव व कौलव करण का संयोग रहेगा। इस संयोग में महादेव की पूजा पूर्ण विधि से करने पर व्यक्ति को तनाव से मुक्ति, कर्ज से निजात, व्यापार में लाभ और प्रेम जीवन में शुभ समाचार प्राप्त होता है। ऐसे में आइए इस दिन की पूजा विधि को जानते हैं।

पूजा विधि

  • प्रदोष व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
  • साफ वस्त्रों को धारण करें।
  • पूजा स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग स्थापित करें।
  • सबसे पहले साफ जल लेकर दूध, शहद, घी और शक्कर से शिवलिंग का अभिषेक करें।
  • अब महादेव को बेलपत्र अर्पित करें।
  • इसके बाद फूल माला, फूल, धतूरा और चंदन लगाएं।
  • फिर शुद्ध घी से दीपक जलाएं।
  • इस दौरान महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।
  • शिव चालीसा का पाठ करें।
  • आरती करें और पूजा में हुई भूल की क्षमा मांग।

महामृत्युंजय मंत्र

ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।।

सुख और शांति प्राप्त करने का मंत्र

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्!

करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा ।
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधं ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व ।
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥

भगवान शिव की आरती

ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।
शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।
ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।

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