- उल्टाखेड़ा के गर्भ में दफन हैं और भी रहस्य होंगे उजागर
जनवाणी संवाददाता |
हस्तिनापुर: सोमवार को हस्तिनापुर उल्टाखेड़ा पर चल खोदाई में प्राचीन कालीन दो कुंए निकले हैं। श्रीकृष्ण की यात्रा की पौराणिक मान्यताओं और विक्रमादित्य के ऐतिहासिक कथानकों से शहर की पहचान हैं। उनके प्रमाण भी मौजूद हैं, लेकिन शहर और आसपास के क्षेत्र में चार हजार साल पुरानी सभ्यता के पुरावशेष मिलने के बावजूद शहर की यह संपदा उपेक्षा की शिकार है।
कई सप्ताहों से हस्तिनापुर में महाभारत कालीन पांडव टीले पर किए गए उत्खनन में राजपूत काल के अनेक प्राचीन बर्तनों आदि के अवशेष मिलने से इस उत्खनन के ऐतिहासिक बनने की संभावना बन गई है। पुरातत्व विभाग की टीम को उत्खनन में करीब 2200 ईसा पूर्व के अवशेष मिलने की संभावना है। हालांकि फिलहाल मिले अवशेषों की महत्ता ज्यादा नहीं मानी जा रही है लेकिन और गहराई तक उत्खनन में प्राचीन अवशेषों के मिलने का संभावनाओं को देखते हुए पुरातत्व विभाग ने विशेषज्ञों की टीम को लगा दिया है।
महाभारत कालीन तीर्थ नगरी हस्तिनापुर में प्राचीन उल्टा खेडा टीले पर कई सप्ताहों से चल रहे उत्खनन में मृदभांड, टेराकोटा के खिलौना गाड़ी का एक हिस्सा, पोटला (पीने के पानी को ले जाने वाला मिट्टी का बर्तन), सिल बट्टा, मनके और गेहूं, उड़द तथा चावल आदि के अलावा मानव अस्थियों के अवशेष मिले हैं। तमाम अवशेष प्रारंभिक जांच में राजपूत काल यानि सातवीं से आठवीं शताब्दी के पाए गए हैं।
पुरातत्व विभाग का यह एक सामान्य उत्खनन है और क्षेत्र के प्राचीन महत्व को ध्यान में रखकर की जाती है। जिस तरह यहां राजपूत काल के अवशेष मिले हैं, उससे यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके नीचे और भी प्राचीन अवशेष मिल सकते हैं। उत्खनन में ऐसे ही मृदभांड मिले थे। पांडव टीले पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के विशेषज्ञों की एक टीम को बुलाया गया है जो यहां आकर गहनता से मिट्टी की जांच करेगी। जांच के बाद ही और गहराई तक खुदाई किये जाने पर निर्णय होगा।
उत्खनन कार्य में टीम को काफी प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिल सकते हैं। टीम के सदस्यों ने बताया कि उत्खनन में राजपूत काल की कई दीवारें में मिली हैं, जिसकी सफाई करने के बाद जांच की जा रही है कि क्या वे किसी मंदिर या दूसरे किसी भवन का हिस्सा थीं। मृदभांड के बारे में उन्होने बताया कि चित्रित धूसर मृदभांड उस समय की तकनीक से बनाये गये आकर्षक बर्तन होते थे। उन्होंने बताया कि रेडियो कार्बन डेटिंग विधि से तमाम मिले अवशेषों के वास्तविक काल की पुष्टि हो सकेगी।