- अपराध से विमुख होकर बंदी कारागार में कर रहे मेहनत
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: चौधरी चरण सिंह कारागार में वर्षों से बंदियों की न्यूनतम मजदूरी 25 रुपये हुआ करती थी, लेकिन शासन ने जेल में बंद अकुशल बंदी की न्यूनतम मजदूरी में डबल वृद्धि कर उनका मानसिक स्तर बढ़ाने का प्रयास किया है। वहीं मानसिक स्तर के साथ-साथ बंदियों में आर्थिक विकास की संभावना प्रबल हुई है। कुछ बंदियों ने तो अब अपराधिक कृत्यों से इतनी घृणा करना शुरू कर दिया है कि वे परिश्रम को अपने जीवन का मूल आधार मानने पर मजबूर हुए हैं। यही वजह है कि अब पारिश्रमिक बढ़ने पर बंदियों में मेहनत करने की लालसा ने जोर पकड़ा है। जिसके उपरांत जेल में बंदियों की मजदूरी की लाइन में बढ़ोत्तरी हुई है। माना जा रहा है कि करीब 150 लेकर 300 बंदी अब मजदूरी कर विभिन्न कामों में व्यस्त हैं।
अगस्त माह में प्रदेश सरकार ने जेल में बंद बंदियों या कैदियों के आर्थिक सुधार हेतु उनके पारिश्रमिक बढ़ाने की घोषणा की थी। जिसके चलते शासन ने कारागार विभाग को जेल में बंद बंदियों की न्यूनतम मजदूरी जिनमें कुशल, अर्द्धकुशल, अकुशल श्रेणी स्तर पर डबल की गई है। पूर्व में अकुशल, अर्द्धकुशल, कुशल बंदियों की मजदूरी क्रमश: 25, 30, 40 हुआ करती थी। जिसके चलते उन्हें 10 घंटे जेल में काम करना होता था, लेकिन अब कैदियों के आर्थिक सुधार के लिए उनकी मजदूरी को बढ़ाकर 50,6081 रुपये कर दिया गया है। अब बंदियों का अपना पारिश्रमिक बढ़ा तो उनमें मेहनत के प्रति लालसा जागृत हुई। यहीं वजह है कि चौधरी चरण सिंह कारागार में रोज सैकड़ों बंदी साफ-सफाई, खेती करने,, सुरक्षा कार्य, पानी पिलाने आदि कार्यों में अपनी रुचि दिखाने लगे हैं।
जिसके चलते रोज मजदूरी करने वाले बंदियों की लाइन लंबी हो चली है। जब से बंदियों का पारिश्रमिक बढ़ाया गया है तब से उनमें मेहनत करने की एक होड़ सी जागी है। हर बंदी यह चाहता है कि जेल प्रशासन उनका नाम मजदूरी करने में सबसे पहले दर्ज करे। यही वजह है कि अब बंदियों को अपराध से विमुख होते देखा जा सकता है। वहीं जेल प्रशासन की ओर से भी बंदियों के लिए अलग-अलग तरह की व्यावसायिक प्रशिक्षण सेवाए देकर उन्हें प्रशिक्षित किया जा रहा है।
150 से 300 से लेकर बंदी करते हैं आठ से 10 घंटे काम
चौधरी चरण सिंह मेरठ कारागार में अगस्त से बंदियों का पारिश्रमिक बढ़ने पर उनकी संख्या में भी इजाफा हुआ है। जिसके चलते प्रतिदिन 150 बंदियों से लेकर 300 बंदी काम करने में लग जाते हैं। ये सुबह की शिफ्ट में सात बजे से 11 बजे तक अपना काम करते हैं। उसके बाद एक बजे के बाद से पांच बजे तक अपनी मेहनत करते हैं। जिनमें अकुशल, अर्द्धकुशल, कुशल बंदियों से जेल प्रशासन अलग अलग तरह से काम लेते हैं। बंदियों की मजदूरी बढ़ने पर जेल का खर्च भी बढ़ा है। कुशल श्रेणी के बंदी अपने आचरण और व्यवहार की वजह से विश्वसनीय माने जाते हैं।
अभी तक यूपी की जेलों या कारागार में निरुद्ध कुशल अर्द्धकुशल अकुशल, कुशल बंदियों को 40,30 व 25 रुपये मिलते थे, लेकिन अब इसमें दोगुना परिवर्तन कर बंदियों के लिए सुधार किया गया है। हालांकि सजायाफ्ता बंदी के पारिश्रमिक से पन्द्रह प्रतिशत पीड़ित प्रतिकर कटौती पूर्व की भांति की जाती रहेगी। बंदी अपनी कौशल और क्षमता के आधार पर जेलों में विभिन्न कार्यों से पैसा कमाते हैं। उनकी कमाई उनके खातों में जमा की जाती है। कर्नाटक में सबसे ज्यादा कैदियों को पारिश्रमिक मिलता है। जो 14 हजार 248 रुपये मासिक है।
अब पारिश्रमिक बढ़ा है तो बंदियों में मजदूरी मेहनत करने की इच्छा प्रबल हुई है। जिसके चलते रोज 150 से लेकर 300 तक बंदी मजदूरी करते हैं। बाकायदा उनके खातों में रुपये भी ट्रांसफर किया जाता है। अब जेल में सुधार और कैदियों को विशेष रुप से प्रशिक्षित किया जा रहा है। -शशिकांत मिश्रा, जेल अधीक्षक, चौधरी चरण सिंह कारागार, मेरठ