Wednesday, April 23, 2025
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तुर्की-सीरिया के भूकंप से क्या सीखेंगे कोई सबक?

RAVIWANI


विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली में बार-बार आ रहे भूकम्प के झटकों से पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर के फॉल्ट इस समय सक्रिय हैं और इन फॉल्ट में बड़े भूकम्प की तीव्रता 6.5 तक रह सकती है। इसीलिए विशेषज्ञ कह रहे हैं कि बार-बार लग रहे भूकम्प के इन झटकों को बड़े खतरे की आहट मानते हुए दिल्ली को नुकसान से बचने की तैयारियां कर लेनी चाहिएं। दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में निरन्तर लग रहे झटकों को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट भी कई बार कड़ा रुख अपना चुका है।

तुर्किये और सीरिया में 6 फरवरी को 7.8 की तीव्रता के शक्तिशाली भूकम्प से हुए महाविनाश में 20 हजार से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और हजारों की संख्या में लोग घायल हुए हैं, हजारों इमारतों को भारी नुकसान पहुंचा है, कई इमारतें तो पूरी तरह मलबे के ढ़ेर में तब्दील हो गई और भीषण भूकम्प में तुर्किये का एक अस्पताल भी ताश के पत्तों की भांति ढ़ह गया। तुर्किये की भौगोलिक स्थिति के चलते यहां अक्सर भूकम्प आते रहते हैं। 1999 में तो यहां भूकम्प से 18 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।

भूगर्भ वैज्ञानिकों के मुताबिक तुर्किये में बार-बार भूकम्प आने का कारण यही है कि यहां का ज्यादातर हिस्सा एनाटोलियन प्लेट पर स्थित है, जिसके पूर्व में ईस्ट एनाटोलियन फॉल्ट है, बायीं ओर ट्रांसफॉर्म फॉल्ट है, जो अरेबियन प्लेट के साथ जुड़ता है, दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम में अफ्रीकन प्लेट है जबकि उत्तर दिशा की ओर यूरेशियन प्लेट है, जो उत्तरी एनाटोलियन फॉल्ट जोन से जुड़ी है। तुर्किये के नीचे मौजूद एनाटोलियन टेक्टोनिक प्लेट घड़ी के विपरीत दिशा में घूम रही है, जिसे अरेबियन प्लेट धक्का दे रही है।

जब घूमती हुई एनाटोलियन प्लेट को अरेबियन प्लेट धक्का देती है, तब यह यूरेशियन प्लेट से टकराती है और भूकम्प के झटके लगते हैं। तुर्किये और सीरिया में भूकम्प से हुई भयानक तबाही को देखने के बाद पिछले कुछ समय से भारत के विभिन्न हिस्सों में लगातार लग रहे भूकम्प के झटकों को लेकर भी चिंता गहराने लगी है। आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक भारत में भी तुर्किये तैसे ही तेज भूकम्प की आशंका जता रहे हैं।

उनके मुताबिक आगामी एक-दो वर्षों में या एक-दो दशक में कभी भी भारत के कुछ हिस्सों में 7.5 से भी ज्यादा तीव्रता के भूकम्प आ सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक देश का करीब 59 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न तीव्रताओं वाले भूकम्प के जोखिम पर है। खासकर दिल्ली-एनसीआर तथा निकटवर्ती राज्यों में तो बार-बार भूकम्प के झटके लग रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर में 3 फरवरी की रात 3.2 तीव्रता के भूकम्प के झटके महसूस किए गए थे।

24 जनवरी की दोपहर को तो दिल्ली-एनसीआर सहित कुछ राज्यों में रिक्टर स्केल पर 5.8 तीव्रता के भूकम्प के तेज झटके लगे थे। 5 जनवरी की रात दिल्ली-एनसीआर से लेकर जम्मू-कश्मीर तक में 5.9 तीव्रता के भूकम्प के झटके महसूस किए गए थे। उससे पहले दिल्ली एनसीआर में नए साल की शुरूआत भी 3.8 तीव्रता के भूकम्प के झटकों के साथ ही हुई थी।

नवम्बर माह में तो दिल्ली-एनसीआर में दो बार ऐसे बड़े भूकम्प भी आए, जिनमें से एक अति गंभीर श्रेणी का रिक्टर स्केल पर 6.3 तीव्रता का था, जिसका असर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित सात राज्यों के अलावा चीन और नेपाल तक महसूस किया गया था।

नेशनल सेंटर आॅफ सिस्मोलॉजी (एनसीएस) के मुताबिक वर्ष 2020 में दिल्ली एनसीआर और आसपास के इलाकों में कुल 51 बार भूकम्प के झटके महसूस किए गए, जिनमें से कई रिक्टर स्केल पर तीन या उससे अधिक तीव्रता के थे। 2020 के बाद से भी दिल्ली-एनसीआर इलाका लगातार भूकम्प से झटकों से थर्रा रहा है।

हालांकि राहत की बात यही है कि बार-बार लग रहे भूकम्प के झटकों से अब तक जान-माल का कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है लेकिन दिल्ली एनसीआर सहित उत्तर भारत में कई हल्के और मध्यम भूकम्प के झटके हिमालय क्षेत्र में किसी बड़े भूकम्प की आशंका को बढ़ा रहे हैं। ऐसे में यदि जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब दिल्ली-एनसीआर का हाल भी तुर्किये और सीरिया जैसा ही होगा।

उत्तराखण्ड का जोशीमठ धंस रहा है, जमीन फट रही है और घरों में दरारें पड़ रही हैं, पुरानी दरारें पहले से और ज्यादा चौड़ी हो रही हैं तथा किसी बड़ी दुर्घटना की आशंका के चलते सैंकड़ों घरों को खाली कराने पर विवश होना पड़ा है। यही हाल अब डोडा में भी देखने को मिल रहा है। ऐसे में भूकम्प के मुहाने पर खड़े दिल्ली-एनसीआर के मामले में जोशीमठ की घटना से सीख लेते हुए शीघ्र कोई ऐसा ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत महसूस हो रही है, जिससे विकास कार्यों से प्रकृति का कोई नुकसान न हो।

दरअसल भूगर्भ वैज्ञानिकों का मानना है कि कई छोटे भूकम्प बड़ी तबाही का संकेत होते हैं और बार-बार लग रहे भूकम्प के झटकों के मद्देनजर दिल्ली-एनसीआर इलाके में आने वाले दिनों में किसी बड़े भूकम्प का अनुमान लगाया जा रहा है। पिछले कुछ दशकों में दिल्ली-एनसीआर की आबादी काफी बढ़ी है और ऐसे में 6 से अधिक तीव्रता का भूकम्प यहां भारी तबाही मचा सकता है।

भूकम्प आने के खतरे को लेकर देश के विभिन्न हिस्सों को कुल पांच जोन में बांटा गया है, जिनमें सर्वाधिक खतरनाक सिस्मिक जोन 5 है और उसके बाद सिस्मिक जोन 4 है। दिल्ली सिस्मिक जोन 4 में आती है और दिल्ली में कुछ क्षेत्र सिस्मिक जोन 4 से भी ज्यादा खतरे वाली स्थिति में हैं। ऐसे में दिल्ली में भूकम्प का खतरा हमेशा बना रहता है।

एनसीएस के वैज्ञानिकों के मुताबिक दिल्ली को हिमालयी बेल्ट से काफी खतरा है, जहां 8 की तीव्रता वाले भूकम्प आने की भी क्षमता है। दिल्ली से करीब दो सौ किलोमीटर दूर हिमालय क्षेत्र में अगर 7 या इससे अधिक तीव्रता का भूकम्प आता है तो दिल्ली के लिए बड़ा खतरा है। हालांकि ऐसा भीषण भूकम्प कब आएगा, इस बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका कोई सटीक अनुमान लगाना संभव नहीं है। दरअसल भूकम्प के पूवार्नुमान का न तो कोई उपकरण है और न ही कोई मैकेनिज्म।

दिल्ली में बड़े भूकम्प के खतरे को देखते हुए भारतीय मौसम विभाग के भूकम्प रिस्क असेसमेंट सेंटर द्वारा कुछ समय पहले दिल्ली-एनसीआर में इमारतों के मानक में शीघ्रातिशीघ्र बदलाव किए जाने का परामर्श दिया गया था। राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के वैज्ञानिकों के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में आ रहे भूकम्पों को लेकर अध्ययन चल रहा है।

उनका कहना है कि इसके कारणों में भू-जल का गिरता स्तर भी एक प्रमुख वजह सामने आ रही है, इसके अलावा अन्य कारण भी तलाशे जा रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या दिल्ली की ऊंची-ऊंची आलीशान इमारतें और अपार्टमेंट किसी बड़े भूकम्प को झेलने की स्थिति में हैं?

विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली में बार-बार आ रहे भूकम्प के झटकों से पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर के फॉल्ट इस समय सक्रिय हैं और इन फॉल्ट में बड़े भूकम्प की तीव्रता 6.5 तक रह सकती है। इसीलिए विशेषज्ञ कह रहे हैं कि बार-बार लग रहे भूकम्प के इन झटकों को बड़े खतरे की आहट मानते हुए दिल्ली को नुकसान से बचने की तैयारियां कर लेनी चाहिएं। दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में निरन्तर लग रहे झटकों को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट भी कई बार कड़ा रूख अपना चुका है।

हाईकोर्ट ने कुछ समय पहले भी दिल्ली सरकार, डीडीए, एमसीडी, दिल्ली छावनी परिषद, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद को नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि तेज भूकम्प आने पर लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? अदालत द्वारा चिंता जताते हुए कहा गया था कि सरकार और अन्य निकाय हमेशा की भांति भूकम्प के झटकों को हल्के में ले रहे हैं जबकि उन्हें इस दिशा में गंभीरता दिखाने की जरूरत है।

अदालत का कहना था कि भूकम्प जैसी विपदा से निपटने के लिए ठोस योजना बनाने की जरूरत है क्योंकि भूकम्प से लाखों लोगों की जान जा सकती है। दिल्ली सरकार तथा एमसीडी द्वारा दाखिल किए गए जवाब पर सख्त टिप्पणी करते हुए अदालत यहां तक कह चुकी है कि भूकम्प से शहर को सुरक्षित रखने को लेकर उठाए गए कदम या प्रस्ताव केवल कागजी शेर हैं और ऐसा नहीं दिख रहा कि एजेंसियों ने भूकम्प के संबंध में अदालत द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश का अनुपालन किया हो।

दिल्ली-एनसीआर भूकम्प के लिहाज से काफी संवेदनशील है, जो दूसरे नंबर के सबसे खतरनाक सिस्मिक जोन-4 में आता है। इसीलिए अदालत को कहना पड़ा था कि केवल कागजी कार्रवाई से काम नहीं चलेगा बल्कि सरकार द्वारा जमीनी स्तर पर ठोस काम करने की जरूरत है। दरअसल वास्तविकता यही है कि पिछले कई वर्षों में भूकम्प से निपटने की तैयारियों के नाम पर केवल खानापूर्ति ही हुई है।

वैसे तो वैज्ञानिकों के मुताबिक भूकम्प की तीव्रता की अधिकतम सीमा तय नहीं की गई है। हालांकि रिक्टर स्केल पर 7 या उससे अधिक तीव्रता वाले भूकम्प को सामान्य से कहीं अधिक खतरनाक माना जाता है। रिक्टर स्केल पर 2 या उससे अधिक तीव्रता वाला भूकम्प ह्यसूक्ष्म भूकम्पह्ण कहलाता है, जिसके झटके सामान्यत: महसूस नहीं होते। 4.5 की तीव्रता वाले भूकम्प घरों को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं।

बहरहाल, यहां सवाल इस बात का नहीं है कि कितनी तीव्रता का भूकम्प नुकसान पहुंचा सकता है बल्कि सवाल यह है कि निरन्तर आ रहे भूकम्प को रोका कैसे जाए और क्या ऐसे कदम उठाए जाएं, जिससे विकास की गति भी प्रभावित न हो और प्रकृति को नुकसान भी न हो ताकि आने वाले समय में दिल्ली जैसे शहर तुर्किये और सीरिया जैसी भयावह त्रासदी झेलने को विवश न हों। सरकारों के साथ लोगों को भी इन सवालों को गंभीरता से लेते हुए कोई ठोस कदम उठाने की सख्त जरूरत है।

योगेश कुमार गोयल


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