Sunday, June 22, 2025
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क्या मिलेगा ‘कॉप 28’ से?

Nazariya


संयुक्त-अरब-अमीरात के दुबई में 30 नवंबर से 12 दिसंबर 2023 के बीच आयोजित शिखर सम्मेलन, ‘कॉप28’ यानि पार्टियों का सम्मेलन एक वार्षिक महासम्मेलन है, जहां संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) के सदस्य देश जलवायु परिवर्तन से निपटने में कारगर उपायों का आकलन करने और ‘यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन आॅन क्लाइमेट चेन्ज’ (यूएनएफसीसीसी) के दिशानिर्देशों के तहत जलवायु कार्रवाई की योजना बनाते हैं। इन दिनों इस महासम्मेलन की दुनिया भर में चर्चा है। प्राय: ऐसे महासम्मेलनों में यह एक बड़ी कमी रह जाती है कि न्याय, समता व सादगी आधारित नई दुनिया बनाने की जो बहुत बड़ी जरूरत है, उसे इनमें उचित स्थान नहीं मिल पाता। जब तक जलवायु बदलाव के मुद्दे को इस व्यापक जरूरत से नहीं जोड़ा जाएगा, तब तक एक जन-आंदोलन के स्तर पर इसके समाधानों से विश्व स्तर पर लोग नहीं जुड़ सकेंगे। पर्यावरण रक्षा को न्याय से जोड़ने की व्यावहारिक अभिव्यक्ति हमें जलवायु बदलाव की सबसे गंभीर समस्या के संदर्भ में तलाशनी है। यह एक बहुत जरूरी कार्य है जिसमें आज जरा भी देर नहीं होनी चाहिए। पहले ही बहुत देर हो चुकी है।

इस उद्देश्य को प्राप्त करने का सबसे असरदार तरीका यह है कि विश्व स्तर पर ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में पर्याप्त कमी और उचित समय-अवधि में लाए जाने की ऐसी योजना बनाई जाए जो सभी लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने से जुड़ी हो। इस योजना को कार्यान्वित करने की दिशा में तेजी से बढ़ने का कार्य होगा तो ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन में कमी के जरूरी लक्ष्य के साथ-साथ करोड़ों अभावग्रस्त लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का उद्देश्य अनिवार्य रूप से जुड़ जाएगा व इस तरह की योजना के लिए करोड़ों लोगों का उत्साहवर्धक समर्थन प्राप्त हो सकेगा। ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए कुछ हद तक हम फॉसिल र्इंधन के स्थान पर अक्षय ऊर्जा (जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा) का उपयोग कर सकते हैं, पर केवल यह पर्याप्त नहीं है। विलासिता व गैर-जरूरी उपभोग कम करना भी जरूरी है। यह तो बहुत समय से कहा जा रहा है कि विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों का दोहन बहुत सावधानी से होना चाहिए व वनों, चारागाहों, कृषि भूमि व खनिज-भंडारों का उपयोग करते हुए इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि पर्यावरण की क्षति न हो या न्यूनतम हो। जलवायु बदलाव के दौर में अब नई बात यह जुड़ी है कि विभिन्न उत्पादन कार्यों के लिए कितना कार्बन स्थान या स्पेस उपलब्ध है, यह भी ध्यान में रखना जरूरी है।

जब हम इन नई-पुरानी सीमाओं के बीच दुनिया के सब लोगों की जरूरतों को पूरा करने की योजना बनाते हैं तो स्पष्ट है कि वर्तमान अभाव की स्थिति को देखते हुए करोड़ों गरीब लोगों के लिए पौष्टिक भोजन, वस्त्र, आवास, दवाओं, कापी-किताब आदि का उत्पादन बढ़ाना होगा। इस उत्पादन को बढ़ाने में हम पूरा प्रयास कर सकते हैं कि ग्रीन हाऊस गैस के उत्सर्जन को कम करने वाली तकनीकों का उपयोग हो, पर यह एक सीमा तक ही संभव होगा। यदि गरीब लोगों के लिए जरूरी उत्पादन बढ़ाना है तो उसके लिए जरूरी प्राकृतिक संसाधन व कार्बन स्पेस प्राप्त करने के साथ ही यह जरूरी हो जाता है कि विलासिता की वस्तुओं व गैर-जरूरी वस्तुओं का उत्पादन कम किया जाए। यह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
यदि गरीब लोगों के लिए जरूरी उत्पादन को प्राथमिकता देने वाला नियोजन न किया गया तो फिर विश्व स्तर पर बाजार की मांग के अनुकूल ही उत्पादन होता रहेगा। वर्तमान विषमताओं वाले समाज में विश्व के धनी व्यक्तियों के पास क्रय-शक्ति बेहद अन्यायपूर्ण हद तक केंद्रित है, अत: बाजार में उनकी गैर-जरूरी व विलासिता की वस्तुओं की मांग और उत्पादन को प्राथमिकता मिलती रहेगी। सीमित प्राकृतिक संसाधनों व कार्बन स्पेस का उपयोग इन गैर-जरूरी वस्तुओं के उत्पादन के लिए होगा। गरीब लोगों की जरूरी वस्तुएं पीछे छूट जाएंगी, उनका अभाव बना रहेगा या और बढ़ जाएगा।

यह बहुत जरूरी है कि ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की योजना से विश्व के सभी लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की योजना को जोड़ा जाए व उपलब्ध कार्बन स्पेस में बुनियादी जरूरतों को प्राथमिकता देना एक अनिवार्यता बना दिया जाए। इस योजना के तहत जब गैर-जरूरी उत्पादों को प्राथमिकता से हटाया जाएगा तो यह जरूरी है कि सब तरह के हथियारों के उत्पादन में बहुत कमी लाई जाएगी। मनुष्य व अन्य जीवों की भलाई की दृष्टि से देखें तो हथियार न केवल सबसे अधिक गैर-जरूरी हैं, अपितु सबसे अधिक हानिकारक भी हैं। इसी तरह के अनेक हानिकारक उत्पाद हैं (शराब, सिगरेट, कुछ बेहद खतरनाक केमिकल्स आदि) जिनके उत्पादन को कम करना जरूरी है।
इन हानिकारक उत्पादों व विशेषकर हथियारों के उत्पादन को कम करने में अनेक पेचीदगियां हैं, अनेक कठिनाईयां व बाधाएं हैं। पर ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की अनिवार्यता के दौर में इन उत्पादों को न्यूनतम करने का औचित्य पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गया है। इस तरह की योजना पर्यावरण आंदोलन को न्याय व समता आन्दोलन के नजदीक लाती है, साथ ही इन दोनों आंदोलनों को शान्ति आंदोलन के नजदीक लाती है। ये तीनों सरोकार एक होंगे तो दुनिया की भलाई के कई महत्वपूर्ण कार्य आगे बढ़ेंगे।


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