नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए एकादशी तिथि को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत रखने तथा श्रीहरि विष्णु की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और भाग्य में सकारात्मक परिवर्तन आता है। विशेष रूप से मोहिनी एकादशी का व्रत अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब समुद्र मंथन से निकले अमृत पर असुरों ने अधिकार कर लिया था, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी स्वरूप धारण करके अमृत को देवताओं को प्रदान किया। इसीलिए इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है और इसका अति विशेष धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि इस दिन सच्चे भाव से व्रत, पूजन और केले का भोग अर्पित करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख, शांति व समृद्धि का वास होता है। ऐसे में चलिए जानते है कि मोहिनी एकादशी इस बार कब पड़ रही है और व्रत के लिए शुभ मुहूर्त क्या रहेगा।
मोहिनी एकादशी का व्रत कब है?
पंचांग के अनुसार इस साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 7 मई को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर होगी। इसका समापन 8 मई को दोपहर 12:29 मिनट पर है। उदया तिथि के अनुसार मोहिनी एकादशी का व्रत 8 मई 2025 को रखा जाएगा
शुभ योग
पंचांग के अनुसार मोहिनी एकादशी के दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र बन रहा है, जो रात 9 बजकर 6 मिनट तक रहेगा। इस दौरान पूरे दिन हर्षण योग का संयोग रहेगा। अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:53 से दोपहर 12:41 मिनट तक है। इसके बाद 1:03 से 2:50 तक अमृतकाल बना रहेगा।
पूजा विधि
- मोहिनी एकादशी के दिन सुबह ही स्नान करें और साफ वस्त्रों को धारण कर लें।
- यदि संभव हो, तो पीले रंग के कपड़े पहनें। यह विष्णु जी का प्रिय रंग माना गया है।
- इसके बाद एक साफ चौकी लें और उसपर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर दें।
- इसके बाद प्रभु को वस्त्र, केला, फल और मिठाई अर्पित करें
- अब दीपक और अगरबत्ती जलाकर मंत्रों का जप करें।
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- श्री हरि की आरती करें।
भगवान विष्णु की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥