- Advertisement -
आजकल भागदौड़ एवं अति तेज रफ्तार जीवन शैली के कारण अम्लपित्त के रोगियों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। अधिकतर लोग गले, छाती, कंठ, पेट में जलन, खट्टी डकार आना, पेट फूल जाना, उल्टी होना, बार-बार पतला पैखाना होने लगना एवं दांत खट्टे हो जाने की समस्या से रोगी ग्रसित हो जाते हैं। ये सभी लक्षण अम्लपित्त के उत्पन्न होने पर ही दिखाई देते हैं। आमाशय में उत्पन्न होने वाले अम्ल की मात्र जब आवश्यकता से बहुत अधिक बढकर पाचक पित्तों के साथ मिल जाती है तो उस स्थिति को अम्लपित्त कहा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार इसे पित्त प्रधान रोग माना जाता है।
इस रोग से ग्रसित व्यक्ति में पेट, छाती, कंठ में जलन होना, खट्टी डकार आना, बार-बार उल्टी आना या उल्टी आने की इच्छा होते रहना, दांत खट्टे होना, खाये हुए पदार्थ की महक डकार के साथ आना, घबराहट, बेचैनी होना, मुंह का स्वाद खट्टा या तीता होना, मुंह में पानी आना, पेट में गुडगुड़ाहट, थोड़ा-थोड़ा, कड़ा या गीला चिकनापन लिये पैखाना होना आदि लक्षणों के साथ थोड़े से मिर्च मसाले या खट्टे पदार्थों के सेवन करने पर ही छाती एवं गले में अधिक जलन होने लगती है।
भोजन करने की अनिच्छा के साथ-साथ छाती में दर्द, बिना कोई काम किए शरीर में थकावट का अनुभव, सिर में दर्द, आंखों में गरम पानी आना, बार-बार मुंह में छाले पड़ जाना, गले में दर्द एवं खांसी होने लगती है। जब अधोग अम्ल पित्त होता है तो सुबह खाली पेट रहने पर एकदम पानी की तरह पतला पैखाना होने लगता है। पेट में जलन, आंतों में गुडगुड़ाहट, पेशाब में जलन, प्यास अधिक लगना, चक्कर आना, जी-मिचलाना, शरीर पर लाल-लाल चकत्ते हो जाना, हाथ-पैरों में झनझनाहट आदि अनेक प्रकार के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
अम्लपित्त के कारण
-
-नियत समय पर भोजन न करना, बार-बार अधिक मात्रा में मिर्च मसालेदार खाद्य पदार्थो का अधिक सेवन, खाली पेट अधिक चाय पीना, बासी भोजन, मांस-मछली-अंडा, मीठा, घी, तेल युक्त पदार्थो की अधिकता, रात में अधिक देर से भोजन करना, अधिक देर तक जगना, समोसा आदि चटपटी चीजों को खाते रहना, कटहल, सेम आदि के सब्जियों के सेवन से खट्टी डकारें आने लगती हैं।
-
-नशीले पदार्थों का अधिक सेवन, पान, सिगरेट, शराब, भांग का प्रयोग, भोजन करते समय भी किसी मानसिक कार्य अर्थात टीवी देखना, चेस खेलना, ताश खेलना, कोई किताब पढ़ना अनावश्यक बातों को सोचते रहना आदि कार्यों के कारण भी शरीर में अम्लपित्त की मात्र बढकर खट्टी डकारें आने लगती हैं।
-
-भोजन करने के तुरंत बाद ही किसी मानसिक, शारीरिक कार्य में व्यस्त हो जाना, भोजन के पहले या बीच-बीच में जल अधिक मात्र में बार-बार पीते रहना, हड़बड़ाहट में जल्दी-जल्दी भोजन करना, बार-बार खाते रहना, पैखाना, वायु या पेशाब के वेग को अधिक देर तक रोकना, हमेशा चिन्तित रहना, नये अनाजों का अधिक प्रयोग करना आदि अनेक ऐसे कारण होते हैं जिससे खट्टी-मीठी डकारें आने लगती हैं।
बचाव
-
-भोजन में खट्टे पदार्थ, मिर्च मसालेदार भारी पदार्थ, तेल, घी, प्रोटीन, आदि का अधिक मात्र में प्रयोग न करके खट्टी डकारों की परेशानियों से बचा जा सकता है। भोजन में टमाटर, दही, दूध का सेवन अधिक न करें। रात में अधिक देर तक न जगें तथा प्रत्येक घंटे पर कम से कम एक गिलास पानी पीते रहें। भोजन करने के बाद दूध का सेवन न करें। अगर करना ही हो तो दूध-रोटी मिलाकर खायें। इससे गैस नहीं बनती और कंठ में जलन पैदा नहीं होती।
-
-सुबह खाली पेट चाय-कॉफी का प्रयोग न करें। अगर करना ही हो तो एक गिलास पानी अवश्य पी लें। पपीता, करेला, परवल आदि की सब्जियों का प्रयोग उबालकर सिर्फ नमक डालकर ही करें। अगर कुछ दिनों तक सिर्फ उबाली हुई सब्जी का ही प्रयोग करते रहें तो यह व्याधि तुरंत भाग जाएगी।
-
-गले, छाती एवं पेट में अधिक जलन के होने पर तीन बड़ी इलायची के दानों को पांच ग्राम मिश्री के साथ मिलाकर मुंह में चूसते रहें। जब मिश्री अच्छी तरह मुंह में घुल जाये तो इलायची के दानों को घोंट जाएं। यह जलन को शांत करने में जादुई असर दिखाता है।
-
-प्रात: काल गुनगुने पानी में उचित मात्रा में सेंधा नमक मिलाकर चाय की तरह घूंट-घूंट करके पीते रहने से पेट में गैस नहीं बनती। मुनक्का 2-3 पीस को मुंह में रखकर चूसते रहने पर भी खट्टी डकारों से तथा गले, छाती एवं पेट की जलन से छुटकारा मिलता है।
-
-पंचसकार चूर्ण, अविपत्तिकर चूर्ण, लवणभास्कर चूर्ण, शंखभस्म, जेठी मधु चूर्ण, आमलकी चूर्ण, गुलकन्द आदि का सेवन करते रहने से गैस, खट्टी डकार, जलन आदि में राहत मिलती है।
पूनम दिनकर
- Advertisement -