Tuesday, June 10, 2025
- Advertisement -

वेंटीलेटर पर क्यों हैं स्वास्थ्य सेवाएं?


कहते हैं कि स्वस्थ शरीर ही मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी होती है। स्वास्थ्य जीवन खुशहाल मन और मानव जीवन की नियामत है। भारत के संविधान का अनुच्छेद- 21 निर्बाध जीवन जीने की स्वतंत्रता देता है, लेकिन स्वस्थ जीवन उपलब्ध कराना किसकी जिम्मेदारी शायद इसका भान किसी को नहीं। कहने को हमारा देश 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था की तरफ अग्रसर है, लेकिन स्वास्थ्य व्यवस्था के क्षेत्र में अभी भी देश की स्थिति वही ढाक के तीन पात वाली है। चंद राज्यों को छोड़ दीजिए। उसके बाद स्वास्थ्य व्यवस्था का हमारे देश में क्या ढांचा है, उसकी कलई स्वत: खुल जाएगी। कोरोना की पहली और दूसरी लहर में तो हम सभी ने देखा है कि कैसे देश में स्वास्थ्य की हालत खराब थी। अब कुछ बुद्धिजीवी तर्क देंगे कि कोरोना ने तो पूरी दुनिया में तांडव मचाया था, फिर भारत उससे अछूता कैसे रह सकता है। ऐसे में चलिए एक बार मान लेते हैं कि कोरोना ने जले पर नमक छिड़कने का काम किया, लेकिन ऐसी कौन सी स्थिति हमारे देश में देखने को मिली, जब स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमने बेहतर प्रदर्शन किया हो।

कोरोना ने वक्त के साथ अपना रूप अवश्य बदल लिया पर हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति पर आज भी ज्यादा असर नही पड़ा। आज न केवल कोरोना के अलग-अलग वेरिएंट की आशंका से लोग दहशत में हैं, बल्कि डेंगू, मलेरिया जैसी बीमारियों से भी लोग काफी भयभीत है।

देखा जाए तो आज भी हमारे देश में स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकताओं पर नाम मात्र का खर्च किया जाता है, जो एक लोकतांत्रिक देश की दु:खती रग है। जिस पर गाहे-बगाहे कोई न कोई बीमारी आकर नमक छिड़कने का काम करती है।

ऐसे में देखें तो कहीं न कहीं ये सभी तथ्य इस बात के गवाह हैं कि आखिर हमारे देश में मानवीय जीवन की कितनी महत्ता है? कभी-कभी तो सरकारी रवैये को देखकर यह लगता है कि शायद राजनेता अपने आपको अजर-अमर समझते हैं और जनता को सिर्फ मततंत्र की उवर्रकता बढ़ाने वाला अंश।

चलिए आज हम एक देश के बड़े राज्य को उदाहरण स्वरूप आपके सामने रखते हैं। अगर हम बात राजस्थान राज्य की करें तो आंकड़े चौंकाने वाले निकल कर सामने आते हैं। राजस्थान जैसे बड़े राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और असम जैसे राज्यों से भी कम है।

आरबीआई के आंकड़ों की मानें तो प्रदेश में एक व्यक्ति के स्वास्थ्य पर सालाना 1706 रुपये खर्च किया जाता है। इसी रकम में स्वास्थ्य कर्मचारियों की सैलरी, पेंशन और स्वास्थ्य संचालन तक शामिल है। अब सोचिए अगर एक व्यक्ति पर सिर्फ 1706 रुपये का खर्चा राजस्थान सरकार करती है, फिर उसमें से कितना हिस्सा कर्मचारियों को जाता होगा और कितना मरीजों के हिस्से में आता होगा?

हमारे देश में प्राइवेट लॉबी हर क्षेत्र में काफी सक्रिय है और उससे अछूता मेडिकल क्षेत्र भी नहीं, लेकिन सोचिए जिस देश में गरीबी का पैमाना ही 22 और 27 रुपये के बीच आकर रुक जाता है, फिर गरीब लाखों रुपये खर्च करके प्राइवेट अस्पताल तक कैसे पहुंच सकता है।

उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने हाल ही में देश में डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी पर चिंता भी जताई थी। डॉक्टरों की कमी कोई नई बात नहीं है, बल्कि एक दशक से यह समस्या बनी हुई है, जिस पर हुक्मरानों को ध्यान देने की जरूरत है। गौरतलब हो कि 2017 की हेल्थ पॉलिसी में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि राज्य सरकारों को जीडीपी का न्यूनतम 2.5 फीसदी हेल्थ बजट पर खर्च करना है, पर अब तक प्रदेश सरकारों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया है।

अब जब कोरोना की तीसरी लहर ने देश में दस्तक दे दी है या इसकी आशंका जताई जा रही है, बावजूद इसके हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था का निम्नतम स्तर पर होना कई सवाल खड़े करता है। इतना ही नहीं, क्या शासन-प्रशासन को मानवीय जीवन की कोई अहमियत नही रह गई है?

किसी भी देश का सामाजिक आर्थिक विकास देश के स्वास्थ्य नागरिकों पर ही निर्भर करता है। हमारा देश विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन स्वास्थ्य व्यवस्था की बात की स्थिति काफी निराशाजनक है। गांवों में स्वास्थ्य सेवाएं किस तरह से चरमराई हुई हैं, इसकी कल्पना इस बात से ही लगाई जा सकती है कि जयपुर जैसे बड़े शहर से मात्र 30 किलोमीटर दूर सामरेड कला गांव में स्वास्थ्य केंद्र पर पिछले पांच वर्षों से ताला लगा हुआ है।

7 हजार की जनसंख्या वाले इस गांव में न ही कोई डॉक्टर उपलब्ध है और न ही कोई नर्सिंग स्टाफ है। ये खबरें बीते दिनों में अखबारों की सुर्खियां बन चुकी हैं। इतना ही नहीं, कोरोना तो दूर साधारण बीमारी में भी ग्रामीणों को इलाज के लिए जयपुर आना पड़ता है।

वहीं सबसे चौकाने वाली बात तो यह है कि ग्रामीणों को वेक्सिनेशन करवाने के लिए भी दूसरे गांव में जाना पड़ा। इस बात से स्थिति साफ हो जाती है कि हमारे हुक्मरान चाहे जितने विकास के दावे कर लें, लेकिन आज भी मूलभूत आवश्यकताओं में से एक स्वास्थ्य व्यवस्था अब भी वेंटिलेटर पर है।

ऐसे में ऐसी स्वास्थ्य नीति की नितांत जरूरत है, जो मौजूदा समय में देश की जरूरतों के अनुरूप ढल सके। हमारे देश से हर साल हजारों डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ विदेशों का रुख कर रहे हैं, यह भी चिंता का विषय है। ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट 2020 के आंकड़ों की ही बात करें तो देश में 10 हजार लोगों पर सिर्फ 5 हॉस्पिटल बेड हैं।

यह आंकड़ा बताने के लिए काफी है कि हमारे देश में स्वास्थ्य व्यवस्था किस तरह चरमराई हुई है। ऐसे में कोरोना से सबक लेने के बाद सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को कितनी अहमियत देती है, यह आने वाला वक्त ही बताएगा!


spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Share Market Today: घरेलू शेयर बाजार में जोरदार बढ़त, सेंसेक्स और निफ्टी नई ऊंचाई पर पहुंचे

नमस्कार,दैनिक जनवाणी डॉटकॅम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और...

Amitabh Bachchan: बेटा या बेटी? कौन बनेगा अमिताभ बच्चन की जायदाद का मालिक

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...
spot_imgspot_img