Wednesday, April 17, 2024
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हम आग से बेपरवाह क्यों हैं?

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Samvad 42


Pankaj Chaturvadi jpg 2दिल्ली के मुंडका में एक व्यावसायिक परिसर में एक इलेक्ट्रानिक कंपनी के कर्मचारियों के लिए मोटिवेशन लेक्चर चल रहा था। अचानक लाइट गई, जनरेटर चलते ही पूरी इमारत आग का गोला बन गई। जब तक सरकार चेतती कि भवन भी अवैध था और उसमें आग से बचाव के उपाय थे ही नहीं, तीस लोग मारे जा चुके थे। उनके शरीर इतने बुरे जले हैं कि मृतकों की पहचान नहीं हो पा रही। इतना हल्ला हुआ, लेकिन ना तो दिल्ली में आग रुकी और ना ही लापरवाही। उसके बाद भी हर दिन किसी कारखाने में आग लगती रही और वही गलतियों दोहराती दिखी। यह समझना जरूरी है कि आग एक अच्छी दोस्त है, लेकिन बहुत बुरी मालिक यानी यदि आग आप पर बलवती हो गई तो उसे दूरगामी दुष्प्रभावों से जूझना बहुत कठिन होता है।
हाल की घटनांओं को फौरी तार पर देखें तो हर एक अग्निकांड का कारण मानवजन्य लापरवाही ही है। अतिक्रमण, अवांछित निर्माण और सुरक्षा के उपायों को पूरी तरह नजरअंदाज करना। ऐसी लापरवाही, जिससे बगैर किसी खास प्रयुक्ति के भी बचा जा सकता है। अपने दैनिक जीवन में हम यदि कुछ मामूली सावधानियां बरतें तो ऐसी घटनाओं को होने से रोका जा सकता है। दिल्ली या अन्य नगरों की बात करें या खलिहान में रखी सूखी फसल में आग लगने की, अधिकांश मामलों में बिजली के उपकरणों के्र प्रति थोड़ी सी लापरवाही ही बड़े अग्निकांड में बदलती दिखती है। उसके बाद तबाही के अलावा कुछ नहीं बचता।

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विश्व में आग लगने के मामलों में सबसे अधिक संख्या संभवतया भारत की है। जहां विकसित देशों में आग लगने के मामले लगातार कम होते जा रहे हैं, वहीं भारत जैसे विकासशील देशों में इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। एक अनुमान है भारत में हर साल लगभग 30 लाख लोग जलने की घटनाओं के शिकार होते हैं। इनमें से कोई पांचवा हिस्सा ही अस्पताल तक पहुंचता है और विडंबना है कि इनके एक तिहाई मौत की चपेट में आ जाते हैं। जबकि इतने ही लोग विकलांग हो जाते हैं। ऐसी घटनाओं के शिकार 80 प्रतिशत लोग अपने जीवन के सबसे सक्रिय काल यानि 15 से 35 साल आयु के होते हैं। इनमें बच्चे या महिलाओं की बड़ी संख्या होती है। जलने की आठ फीसदी दुर्घटनाएं घर पर ही घटित होती हैं।

जले हुए लोगों का इलाज बेहद खर्चीला और लंबे समय तक चलता है। यही नहीं देश में सभी जगह इसके उचित इलाज की व्यवस्था भी नहीं है। चिकित्सा विज्ञान में अधिकांश बीमारियों के इलाज के लिए दवाइयां या शल्य का प्रावधान है। आग से हुई चोटों का भी इलाज होता है, लेकिन दुर्भाग्य है कि कोई भी इलाज शरीर को असली आकार या रंग लौटाने में सक्षम नहीं है। कई बार जब शरीर का बड़ा हिस्सा जल जाता है तो रोगी की मृत्यु हो जाती है। जले हुए रोगियों की बड़ी संख्या चेहरे या शरीर के अन्य हिस्सों में विकृति का शिकार बन जाती है। कई बार शरीर का कोई हिस्सा बकाया जीवन के लिए बेकार हो जाता है।

जलने के कारण पीड़ित मरीज पर कई मनोवैज्ञानिक व सामाजिक प्रभाव भी होते हैं। करीबी रिश्तेदार कई बार अलग तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं और मरीज को बोझ मानते हैं। कई बार माता-पिता भारी आर्थिक बोझ के तले दब जाते हैं। कुछ लोग खुलेआम विकलांग बच्चों को अस्वीकार कर देते हैं। कई बार जले हुए पीड़ित को विकृति और कुरूपता के कारण अपने भाई-बहन और हमउम्र दोस्तों से उपेक्षा झेलनी पड़ती है। जाहिर है कि जिस बात से आसानी से बचाव किया जा सकता है, कई बार उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है।

आग से बचने का सबसे सटीक उपाय है सतर्कता और जागरूकता। कुछ बातें सभी को गांठ बांध कर रखना चाहिए, जैसे आग तेजी से फैलती है। एक छोटी सी चिंगारी महज 30 सेकंड में काबू से बाहर हो जाती है तथा विकराल आग का रूप ले सकती है। कुछ मिनटों में ही घर में गहरा काला धुआं भर सकता है। आग की लपटें थोड़ी ही देर में किसी घर को निगल लेती हैं। दूसरा, आग गरम होती है और गरमी अकेले ही जानलेवा होती है। आग लगने की दशा में कमरे का तापमान पैरों के पास 100 डिगरी और आंखों तक आते-आते 600 डिगरी हो जाता है।

इतनी गरम हवा में सांस लेने से फेफड़े झुलस सकते हैं। मुंडका में कुछ इसी तरह लोगों की मौत हुई थी। कुछ ही मिनटों में कमरा गरम भट्टी बन जाता है। आग की शुरुआत तो रोशनी से होती है, लेकिन जल्दी ही इससे निकलने वाले काले घने धुएं के कारण अंधेरा छा जाता है। आग की लपटों से कहीं अधिक उसके धुएं और जहरीली गैसों से जान-माल का नुकसान होता है। प्राणदायक आक्सीजन गैस के कारण आग का फैलाव होता है और इससे धुआं व घातक गैसे निकलती हैं। धुएं या जहरीली गैस की यदि थोड़ी सी मात्रा भी सांस के साथ भीतर चली जाए तो आप निढाल, बैचेन हो सकते हैं, सांस लेने में परेशानी हो सकती है। कई बार तो आग की लपटें आप तक पहुंचे उससे पहले ही रंगहीन, गंधहीन धुआं आपको गहरी नींद में ढकेल सकता है।

ऐसे हादसे आमतौर पर भीड़ भरे संकरे स्थानों पर घटित होते हैं , जैसे कि स्कूल, कालेज, बाजार, सिनेमा हॉल , शादी के मंडप, अस्पताल, होटल, रेलवे स्टेशन, कारखाने, सामुदायिक भवन, धार्मिक समागम आदि।
आग लगने की 60 प्रतिशत घटनाओं के मूल में बिजली के साथ बरती जाने वाली लापरवाही होती है। इनमें शार्ट सर्किट, ओवर हीटिंग, ओवर लोडिंग, घटिया उपकरणों का इस्तेमाल, बिजली की चोरी, गलत तरीके से की गई वायरिंग, लापरवाही आदि आम हैं। यदि दिशा-निर्देशों का सही तरीके से पालन ना किया जाए तो भयानक आग व बड़ी दुर्घटना घटित हो सकती है। थोड़ी सी सावधानी बरतने पर ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता है। बिजली से लगने वाली आग, विशेषरूप से बड़े भवनों में बहुत तेजी से फैलती है, जिसके कारण जान-माल की बड़ी हानि हो सकती है। अत: यह जरूरी है कि आग लगने पर त्वरित कार्यवाही की जाए।

एक बात और हमारी सड़कें व सार्वजनिक स्थल फायरब्रिगेड की गाड़ियों के आवागमन और उनके उपकरणों के ठीक तरह इस्तेमाल के अनुकूल नहीं हैं। हम लोग देरी के लिए अग्निशमन को कोसते हैं। असल में उस देरी के पीछे भी वही कारण होते हैं जो आग लगने के-अतिक्रमण, अवैध निर्माण और कोताही। आज अनिवार्य है कि आग के कारणों के प्रति लापरवाहियों को ले कर समाज में भी नियमित विमर्श और सतर्कता हो।


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