Saturday, January 4, 2025
- Advertisement -

क्या ताइवान पर हमला करेगा चीन?

Samvad 50

rajesh jainचीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नए साल के भाषण में एक बार फिर कहा है कि कोई भी ताकत ताइवान को चीन के साथ मिलाने से नहीं रोक सकती है। इससे पहले भी गत वर्ष के अंत में, ताइवान के आसपास चीनी लड़ाकू जहाज और और विमानों की खासी हलचल रही है। चीन के इस आक्रामक रुख ने दुनिया भर का ध्यान खींचा है और चर्चा चलने लगी है कि क्या चीन और ताइवान में जंग छिड़ने वाली है। ताइवान और चीन के बीच तनातनी की शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध के बाद तब शुरू हुई जबकि चीन में राष्ट्रवादी सरकारी सेना और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच गृहयुद्ध शुरू हो गया। 1949 में कम्युनिस्ट जीत गए और उनके नेता माओत्से तुंग ने चीन की राजधानी बीजिंग पर कब्जा कर लिया। हार के बाद राष्ट्रवादी पार्टी कुओमिंतांग के नेता ताइवान भाग गए। तबसे ही कुओमिंतांग ताइवान की सबसे प्रमुख राजनीतिक पार्टी है और ताइवान पर ज्यादातर समय इसी पार्टी का शासन रहा है।

हालांकि 1979 में अमेरिका ने भी चीन के साथ एक संधि करते हुए ताइवान को चीन का हिस्सा मानकर ‘वन चाइना पॉलिसी’ को मंजूरी दे दी थी। इसके बावजूद 1979 में ही अमेरिका ने ताइवान में अमेरिकन इंस्टीट्यूट आॅफ ताइवान स्थापित किया। यह ताइवान में अमेरिकी दूतावास की तरह काम करता है। अमेरिका ने ताइवान को हथियार सप्लाई किए और आज भी ताइवान को हथियार मुहैय्या करवा रहा है। रूस इस मामले में शुरू से ही चीन के साथ रहा। भारत ने भी ताइवान को मान्यता नहीं दी है। चीन के साथ सीमा विवाद पर समझौते हुए हैं और हमारे रिश्ते सुधरे हैं। चीन ताइवान को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है ओर सरकार ने जनता के दिल में यह बात बैठा दी है कि ताइवान के बिना चीन अधूरा है। इसके अलावा चीन ताइवान पर कब्जा करके गुआम और हवाई जैसे अमेरिकी मिलिट्री बेस वाले पश्चिमी प्रशांत महासागर इलाके में अपना दबदबा भी बनाना चाहता है।

इससे पहले भी जनवरी 1979 में चीन ने ताइवान को मिलाने की बात कही थी। 1980 के दौरान चीन और ताइवान के बीच रिश्ते बेहतर होने लगे तो दोनों देशों के बीच व्यवसाय, निवेश और पर्यटन भी बढ़ने लगा था, जो 35 साल जारी रहा। हालांकि चीन ने 2004 में संसद में एक अलगाव विरोधी कानून पास किया था। इसके मुताबिक अगर ताइवान किसी भी तरह से चीन से अलग होने की कोशिश करेगा, तो चीन इसे कुचलने के लिए मिलिट्री पावर का इस्तेमाल कर सकता है। 2016 में ताइवान में डेमोक्रेटिक ग्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) के त्साई इंग-वेन राष्ट्रपति बने। वेन ताइवान को चीन में मिलाने का विरोध करते रहे हैं। इसके बाद से चीन और ताइवान के बीच विवाद बढ़ता गया। ताइवान की ओर से लगातार चीन के प्रभाव से आजादी की मांग उठने लगी। 2 जनवरी 2019 को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ताइवान के साथ शांतिपूर्वक बातचीत करने का ऐलान किया, लेकिन जिनपिंग ने ताइवान की आजादी की मांग खारिज कर दी।

कोरोना के बाद से चीन की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आई है। बढ़ती जनसंख्या और कम होते संसाधनों को नियंत्रित करना चीन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। जनता इन मुद्दों को बखूबी समझ चुकी है। इसलिए जिनपिंग ताइवान के मुद्दे को हवा देकर जनता का ध्यान भटका रहे हैं। इसके अलावा अक्टूबर 2024 में अमेरिका, भारत, आॅस्ट्रेलिया और जापान ने हिंद महासागर में क्वाड ग्रुप का मालाबार युद्धाभ्यास किया था। इसके जरिए क्वाड देशों ने चीन के सामने शक्ति प्रदर्शन किया था और उसे पीछे हटने का मैसेज दिया था। चीन क्वाड इस बढ़ते दबदबे को कम करना चाहता है। ऐसे में दिसंबर 2024 की शुरूआत से चीन ने ताइवान के आसपास के समुद्री इलाकों को घेरना शुरू कर दिया था। दक्षिणी चीन सागर में बड़ी संख्या में नेवी के जवानों और युद्धपोतों को तैनात किया है। इसके साथ ही चीन ने ताइवान के चारों ओर की समुद्री सीमा में दो सैन्य युद्धाभ्यास भी किए। इसमें एक युद्धाभ्यास रूस के साथ किया। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी ताइवान मुद्दे पर चीन का समर्थन करते हुए कहा कि ताइवान को लेकर रूस हमेशा से चीन का समर्थन करता आया है, ये आगे भी जारी रहेगा। लावरोव ने अमेरिका पर भी आरोप लगाया कि वह ताइवान के आसपास अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ाकर नया तनाव पैदा कर रहा है। अभी तक अमेरिका ताइवान की मदद करता आ रहा है। लेकिन अब वहां नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आ रहे हैं, जो अपना रुख बदलते रहते हैं। जिनपिंग चाहते हैं कि अब ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद ताइवान को मदद न मिले। शी जिनपिंग ने इस बयान के जरिए ताइवान और उसकी आजादी के समर्थक देशों को चेतावनी दी है कि ताइवान के मुद्दे पर कोई बीच में न आए। इसके अलावा ताइवान अब चीन के लिए राष्ट्रवाद का मुद्दा बन चुका है। चीन ने 2027 तक ताइवान पर कब्जा करने की योजना बनाई है।

चीन के पास ताइवान से 12 गुना एक्टिव सैनिक हैं। इसलिए ताइवान पर कब्जा करना चीन के लिए मुश्किल नहीं है, लेकिन चीन अपनी स्थति समझता है और वैश्विक स्तर पर उसे अपना मुकाम पता है। इसलिए चीन युद्ध जैसे हालात नहीं चाहता है। चीन की अर्थव्यवस्था बिगड़ी हुई है। ऐसे में अगर जंग का ऐलान होता है तो दुनियाभर के देश चीन के खिलाफ हो जाएंगे। चीन की अर्थव्यवस्था निर्यात आधारित है इसमें अमेरिकी कंपनियों का हिस्सा ज्यादा है। ऐसे में अगर चीन जंग का ऐलान करता है तो चीन में उत्पादन में गिरावट आएगी और अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। ऐसे में चीन अपनी नेवी को ताइवान के पास तैनात करके सिर्फ डरा ही सकता है, हमला नहीं कर सकता।

janwani address 5

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Kiara Advani: कियारा की टीम ने जारी किया हेल्थ अपडेट, इस वजह से बिगड़ी थी तबियत

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Lohri 2025: अगर शादी के बाद आपकी भी है पहली लोहड़ी, तो इन बातों का रखें खास ध्यान

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...
spot_imgspot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here