Tuesday, June 3, 2025
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क्या चुनावी मुद्दा बनेगी महंगाई ?


इसमें कोई दो राय नहीं है कि महंगाई ने आम आदमी की परेशानियों को बढ़ा रखा है। पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी के बाद से महंगाई में थोड़ा कमी तो आई है, लेकिन जितनी उम्मीद की जा रही थी उतनी राहत आम आदमी को नहीं मिली है। अगले साल देश के पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं, ऐसे में अहम प्रश्न यह है कि क्या महंगाई चुनावी मुद्दा बन पाएगी। विपक्ष महंगाई की बात तो करता है लेकिन वो इसे मुद्दा नहीं बना पा रहा है। 2019 में सीएसडीएस की ओर से किए गए चुनाव के बाद के सर्वेक्षण में महज चार फीसदी लोगों ने मूल्य वृद्धि को मतदाताओं के लिए सबसे बड़ा मुद्दा माना। जबकि 1980 के चुनावों में 25 फीसदी से अधिक लोगों के लिए महंगाई एक मुद्दा था।

विधानसभा चुनाव के लिए संगठनात्मक रूप से अपने को मजबूत करने की कवायद में जुटी कांग्रेस महंगाई, बेरोजगारी और किसानों के मुद्दे पर मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। महंगाई पर मोदी सरकार को घेरने के लिये बीते रविवार को राजस्थान की राजधानी पिंक सिटी जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में आयोजित ह्यमहंगाई पर महारैलीह्ण के जरिये कांग्रेस ने जनता की नब्ज पर हाथ रखने का प्रयास किया। पूरा गांधी परिवार पीएम मोदी व केंद्र सरकार पर महंगाई के मुद्दे पर जमकर बरसा। लेकिन विडंबना ही है कि महंगाई हटाओ महारैली के जरिये राहुल गांधी का हिंदू बनाम हिंदुत्ववादी का उद्घोष पूरे देश में विमर्श का नया मुद्दा बन गया और महंगाई का मुद्दा हाशिये पर चला गया। इस रैली में राहुल गांधी ने अपने भाषण में बताते हैं कि महंगाई शब्द का प्रयोग सिर्फ एक बार किया जबकि 35 बार हिंदू और 26 बार हिंदुत्ववादी शब्द का प्रयोग किया।

अगले साल पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं तो क्या राजनीतिक पार्टियों के लिए महंगाई एक मुद्दा हो सकता है? जानकार कहते हैं कि कमजोर विपक्ष अब तक बढ़ती कीमतों को मुद्दा बनाने में असमर्थ रहा है, इसलिए सरकार भी महंगाई को रोकने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं कर रही है। लेकिन महंगाई एक मुद्दा तो है। इतिहास भी गवाह है कि असाधारण रूप से महंगाई जब भी बढ़ी है राजनीतिक उथल-पुथल मची है। वास्तव में किसान आंदोलन की समाप्ति के बाद विपक्ष के पास मोदी सरकार को घेरने के लिये कोई बड़ा मुद्दा नहीं बचा है। ऐसे में विपक्ष महंगाई के मोर्चे पर सरकार को घेरना चाहता है। लेकिन बीजेपी की राजनीतिक चैसर पर पूरा विपक्ष आम आदमी से जुड़े मुद्दों को छोड़कर इधर-उधर के मुद्दों पर उलझकर रह जा रहा है। चूंकि विपक्ष के पास कोई मुद्दा है ही नहीं तो दे लेकर वो महंगाई के मुद्दे को ही आगामी विधानसभा चुनावों में कैश कराना चाहेगा। जयपुर रैली से महंगाई के खिलाफ बिगुल बजाकर कांग्रेस ने साफ कर दिया कि वह पांच राज्यों के आसन्न चुनावों में महंगाई के मुद्दे को लेकर ही जनता के बीच जायेगी। वहीं सोनिया गांधी ने रैली में भाषण न देकर राहुल को आगे लाने का संदेश दे दिया।

कोरोना संकट से उबर रहे देश में आम आदमी के आय के स्रोतों का संकुचन अभी तक सामान्य नहीं हो पाया है। कई उद्योगों व सेवा क्षेत्र में करोड़ों लोगों ने रोजगार खोये या उनकी आय कम हुई। ऐसे में आये दिन बढ़ती महंगाई बेहद कष्टदायक है। गरीब आदमी की थाली से सब्जी गायब होने लगी है। आम आदमी के घर में आम जरूरतों के लिये प्रयोग होने वाला सरसों का तेल दो सौ रुपये लीटर से अधिक होना बेहद चैंकाने वाला है। हाल ही के दिनों में टमाटर का सौ रुपये तक बिकना बेहद परेशान करने वाला रहा। इतना ही नहीं, जाड़ों के मौसम में लोकप्रिय सब्जियां मसलन गोभी व मटर के दाम भी सामान्य नहीं रहे हैं। प्याज के भाव भी चढ़ते-उतरते रहते हैं। वहीं पेट्रोल-डीजल के दाम कई स्थानों पर सौ को पार करने का भी महंगाई पर खासा असर पड़ा है। बहरहाल, महंगाई पर राजनीतिक दलों की उदासीनता आम आदमी को परेशान जरूर करती है।

राजनीतिक विशलेषकों के मुताबिक, पहले बीजेपी जब विपक्ष में थी जोर-शोर से महंगाई पर कांग्रेस पार्टी को घेरती थी, लेकिन मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस पार्टी महंगाई को आज तक मुद्दा नहीं बना सकी। यही वजह है कि आम आदमी की कोई नहीं सुन रहा और मीडिया में केवल सरकार का गुणगान चल रहा है।

औद्योगिक उत्पादन और निर्माण में मात्र 2 फीसदी की बढ़त है, जो सबसे अधिक रोजगार और नौकरियां देने वाला क्षेत्र है। बिजली का उत्पादन 3 फीसदी से कुछ अधिक ही है, लिहाजा साफ है कि उसकी खपत और मांग कम हुई है। दोपहिया, यात्री वाहनों और कारों की बिक्री और मांग करीब 20 फीसदी कम हुई है। बीते 11 सालों में दोपहिया वाहनों की बिक्री सबसे कम हुई है और 7 सालों में कारें सबसे कम बिक रही हैं।

बेरोजगारी के साथ महंगाई भी मौजूद है। हालांकि इस दौरान जीएसटी संग्रह 1.31 लाख करोड़ रुपए के रिकॉर्ड को छू चुका है, फिर भी औद्योगिक उत्पादन और विकास की दर 3.2 फीसदी ही है। दरअसल त्योहारी मौसम होने के बावजूद अक्तूबर-नवंबर के महीनों में उपभोक्ता वस्तुओं में -6.1 फीसदी की गिरावट आई है, जाहिर है कि बाजार में आम आदमी की मांग बेहद कम है। मांग कम है, महंगाई सीमाएं पार कर चुकी है, तो औद्योगिक उत्पादन और मांग पर ही असर पड़ेगा।

एक पूर्व वित्त मंत्री के मुताबिक अगर एक मजबूत विपक्ष होता तो महंगाई अब तक एक ज्वलंत मुद्दा बन गई होती। आज देश की आम जनता सकते में है। इस बात की भी पूरी संभावना है कि चुनाव आते-आते महंगाई के स्थान पर मंदिर-मस्जिद, जात-पात और दूसरे मुद्दे केंद्र में आ जाएंगे।


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