‘मैं मानवों की उस प्रजाति का हिस्सा हूं, जिन्हें पालघाट ब्राह्मण कहा जाता है, इनकी चार किस्में पाई जाती हैं, कुक्स (रसोइए), क्रुक्स (धोखेबाज), सिविल सर्वेंट्स (नौकरशाह) और म्यूजिशियन्स (संगीतकार), मैं समझता हूं मुझ में थोड़ी बहुत ये सारी खूबियां हैं, मैं अच्छा खाना बना लेता हूं, मैं थोड़ा बहुत धोखेबाज भी हूं, मैं सिविल सर्वेंट हूं, संगीतकार मैं भले ही नहीं हूं पर संगीत की समझ मेरे में हैं।’ ये मानना था अपने बारे में टी एन शेषन का।
जी हां वहीं शेषन जिन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर रहते हुए देश को दिखाया था कि चुनाव आयोग के दांत सिर्फ़ दिखावटी ही नहीं होते, जरूरत पड़ने पर काट भी सकते हैं। शेषन 12 दिसंबर 1990 से लेकर 11 दिसंबर 1996 तक देश के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त रहे। शेषन का एक जुमला बड़ा मशहूर हुआ था-‘आई इट पॉलिटिशियंस फॉर ब्रेकफास्ट’ (मैं नाश्ते में नेताओं को खाता हूं)। चुनाव आयोग की सही मायने में क्या ताकत होती है, देश को इसका न तो शेषन के कार्यकाल से पहले और न ही बाद में फिर कभी अंदाज हो सका।
सुप्रीम कोर्ट के हालिया एक फैसले से चुनाव आयोग के एक बार फिर रियल वॉचडॉग बनने की उम्मीद बंधी है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की कॉन्सटिट्यूशनल बेंच ने मुख्य चुनाव आयुक्त और दूसरे चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। जस्टिस के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली इस बेंच के फैसले के मुताबिक मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त को हाई पॉवर कमेटी की ओर से चुना जाना चाहिए।
इस कमेटी में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और देश के चीफ जस्टिस शामिल रहेंगे। बता दें कि अभी तक केंद्र सरकार के हाथों में ही मुख्य चुनाव आयुक्त और आयुक्तों की नियुक्ति करने की खुली छूट है। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला निश्चित तौर पर चुनाव आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखने की ओर बड़ा कदम है।
हाल फिलहाल के वर्षों में विपक्षी दलों की ओर से चुनाव आयोग पर आरोप लगते रहे हैं कि वो सिर्फ़ सरकार के मनमाफिक कदम ही उठाता रहा है। चुनावों की निष्पक्षता को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला नई बात नहीं हैं। अब यक्षप्रश्न ये है कि सुप्रीम कोर्ट के चुनाव आयोग संबंधी फैसले के बाद क्या देश को मिल पाएगा कोई नया शेषन?
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ होने के मायने?
‘न तो मैं किसी से दबा हूं, न अपने 2 साल के कार्यकाल में आगे भी ऐसा होने दूंगा।’ ये शब्द 2 मार्च 2023 को देश के मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह के एक बयान पर नाराज होकर कहे। दरअसल विकास सिंह वकीलों के चैंबर आवंटन से जुड़े मामले की जल्दी सुनवाई पर जोर दे रहे थे। विकास सिंह जल्दी सुनवाई नहीं होने पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के घर धरना देने की बात कह गए थे।
ये तो रही चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के तेवर की एक बानगी। 9 नवंबर 2022 को जब से चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बने हैं, कुछ अलग बयार बहती जरूर नजर आ रही है। पहला संकेत तब मिला जब सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी के मध्य में अडानी ग्रुप पर हिंडनबर्ग रिसर्च से जुड़े मामले में केंद्र सरकार की ओर से दिए गए सीलबंद लिफाफे में सुझाव को मानने से इनकार कर दिया।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई करते कहा कि केंद्र सरकार की रिपोर्ट की जगह खुद सुप्रीम कोर्ट की ओर से कमेटी बनाई जाएगी और इसके सदस्य भी खुद नियुक्त किए जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस तर्क को भी मानने से इंकार किया कि हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट का मार्केट पर कोई असर नहीं हुआ। कोर्ट ने ध्यान दिलाया कि जो डाटा हैं, उसके मुताबिक तो निवेशकों के लाखों, करोड़ों रुपए डूब गए। इसके अलावा एक और उल्लेख जरूरी है। 2002 के गुजरात घटनाक्रम से संबंधित बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर बैन के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर केंद्र से जवाब मांगा।
केंद्र को इस मामले में तीन हफ्तों में जवाब देना है। इस मामले में अगली सुनवाई अप्रैल में होगी। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर भी लैंडमार्क फैसला सुनाया है जिससे चुनाव आयोग की निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ का कार्यकाल 8 नवंबर 2024 तक रहना है। उम्मीद है कि इस दौरान वो अनुभव कराते रहेंगे कि उनके चीफ जस्टिस होने के क्या मायने हैं?
स्लॉग ओवर
21वीं सदी के लड़के ने अपने ग्रैंड पा से पूछा- वाइफ और गर्ल फ्रैंड में क्या फर्क होता है? ग्रैंड पा ने एक मिनट सोचा, फिर जवाब दिया- ‘लिस्टन माई डियर सन, वाइफ टीवी की तरह है और गर्ल फ्रैंड मोबाइल की तरह। मोबाइल पर दो-तरफा कम्युनिकेशन होता है, आप बात करते हैं और सुनते भी हैं, टीवी पर आप को सिर्फ सुनना होता है। लेकिन टीवी ही बेहतर है क्योंकि टीवी वायरस प्रूफ होता है मोबाइल नहीं। मोबाइल हैक किए जा सकते हैं, टीवी नहीं।’ मॉरल आॅफ द स्टोरी- ‘हमेशा वाइफ के लॉयल रहो।’
(लेखक आज तक के पूर्व न्यूज एडिटर और देशनामा यूट्यूब चैनल के संचालक हैं)
खुशदीप सहगल