शैतान रैगर
देश में रोजगार प्रमुख समस्या बनी हुई है। इसका सबसे अधिक प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में नजर आता है। गांव में रहने वाली एक बड़ी आबादी रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों में प्रवास करती है। ऐसे में इनके सामने अन्य मूलभूत सुविधाओं की कमी के साथ साथ सबसे बड़ी चुनौती जन वितरण प्रणाली द्वारा मिलने वाला राशन होता है। जिसके लाभ से ये मजदूर अक्सर वंचित हो जाते हैं। चूंकि राशन कार्ड गांव में बना होता था, ऐसे में प्रवास के कारण वह अन्य स्थान पर इससे मिलने वाला सस्ता राशन का लाभ उठा नहीं पाते थे। लेकिन केंद्र सरकार की ‘वन नेशन, वन राशन कार्ड’ योजना ने इन प्रवासी मजदूरों की समस्या को दूर कर दिया है। अब यह मजदूर अपने प्रवास स्थान पर भी अपने राशन कार्ड के माध्यम से सस्ता अनाज खरीद कर परिवार का भरण पोषण करने में सक्षम हो रहे हैं।
इस योजना के क्रियान्वयन के लिए देश भर में एक केंद्रीय डेटाबेस विकसित किया गया है, जिसमें हर पात्र व्यक्ति का डाटा संग्रहित होता है। यह योजना ‘डिजिटल इंडिया’ की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि इससे राशन वितरण में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ी है। इसके माध्यम से श्रमिक अब जहां भी प्रवास करते हैं, वहीं अपने हिस्से के राशन का लाभ उठा रहे हैं। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के एक ईंट भट्टे पर काम करने वाले लोकेश रविदास बताते हैं कि “मैं उत्तर प्रदेश के चित्रकूट का रहने वाला हूं और पिछले 20 वर्षों से परिवार के साथ काम की तलाश में राजस्थान सहित अन्य राज्यों में करता रहता हूं। जहां स्थानीय दुकानदार से राशन खरीद कर लाना पड़ता था। जो अक्सर महंगा होता था। लेकिन अब काम की जगह पर ही मेरे परिवार को पीडीएस के माध्यम से सस्ता राशन मिल जाता है। लोकेश बताते हैं कि मैं पिछले 2 साल से भीलवाड़ा के र्इंट भट्टे पर काम कर रहा हूं, वहां मुझे अपना राशन स्थानीय राशन की दुकान से उपलब्ध हो जाता है।
वन नेशन, वन राशन योजना ने देश के कमजोर वर्गों को एक मजबूत खाद्य सुरक्षा प्रदान की है, क्योंकि अब कोई भी व्यक्ति देश के भीतर किसी भी समय और कहीं भी अपनी आवश्यकता के अनुसार राशन प्राप्त कर सकता है। इस योजना से पहले खाद्य सुरक्षा वाले लाभार्थी केवल अपने पैतृक गांव में दर्ज राशन कार्ड से ही सस्ता अनाज खरीद सकते थे। वहीं उनके प्रवास के बाद लंबे समय तक राशन नहीं लेने के कारण गांव में दर्ज राशन लिस्ट से उनका नाम भी काट दिया जाता था। इतना ही नहीं, पूरा सिस्टम आॅनलाइन और डिजिटल हो जाने के कारण अब इस योजना के माध्यम से राशन वितरण में होने वाली किसी भी प्रकार की गड़बड़ी की संभावना भी कम हो गई है।
इस संबंध में क्रय विक्रय सहकारी समिति धुंवाला, भीलवाड़ा के सदस्य सत्यनारायण शर्मा बताते हैं कि यह योजना वर्ष 2019 में शुरू हुई थी। इसके तहत सुविधा का लाभ उठाने की पूरी प्रक्रिया बहुत सरल है। सबसे पहले इन मजदूरों को सरकार द्वारा संचालित ‘मेरा राशन एप’ पर पंजीयन कराना होता है। जिसमें उन्हें अपने पैतृक गांव की डिटेल दर्ज करानी होती है। इसके बाद उन्हें अपने प्रवास स्थल का विवरण दर्ज कराने के साथ ही अपने फिंगर प्रिंट दर्ज कराने होते हैं। इस प्रक्रिया के पूरा होते ही उन्हें उस जगह के स्थानीय जन वितरण प्रणाली की दुकान से जोड़ दिया जाता है। वह बताते हैं कि चूंकि यह एक राष्ट्रीय योजना है और पूरी तरह से आॅनलाइन है इसलिए किसी भी मजदूर को नए जगह नाम दर्ज कराने से पहले पैतृक स्थल से नाम कटवाने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे में वह जब वापस अपने गांव लौटते हैं तो वहां भी वह पहले की तरह ही राशन सुविधा का लाभ उठा सकते हैं।
सत्यनारायण शर्मा बताते हैं कि ‘चूंकि मजदूर कठिन परिश्रम करते हैं ऐसे में अक्सर उनके हाथों में छाले अथवा अन्य कारणों से फिंगर प्रिंट मैच नहीं हो पाता है। इसीलिए राशन कार्ड में दर्ज परिवार के सभी सदस्यों के फिंगर प्रिंट लिए जाते हैं ताकि किसी भी सदस्य के फिंगर प्रिंट मैच कर जाने पर उन्हें राशन की सुविधा उपलब्ध कराई जा सके। वह बताते हैं कि ‘मेरा राशन एप’ पर पंजीयन कराते समय राशन कार्ड धारकों के आंखों की पुतलियों के निशान भी लिए जाते हैं। लेकिन ज्यादातर राशन दुकान पर इससे जुड़ी मशीन उपलब्ध नहीं होती है। इसलिए केवल फिंगर प्रिंट के आधार पर राशन वितरित कर दिया जाता है।