युवा वर्ग को देश की सबसे बड़ी शक्ति होने का सौभग्य प्राप्त है। उनमें न केवल वक्त की रफ्तार को प्रभावित कर उसका रुख बदलने का जज्बा मौजूद होता है, बल्कि वे अपने दमखम पर राजनैतिक परिवर्तन का हौसला भी रखते हैं। उत्तर प्रदेश के पिछले तीन विधानसभा चुनाव इसका जीवित प्रमाण हैं। युवाओं ने अपने वोट का जलवा दिखाते हुए 2007, 2012 एवं 2017 में सत्ता सुख भोग रही सरकारों को अपनी उपस्थिति का अहसास कराते हुए यह बताने में देर नहीं लगाई कि किसी भी जमात के हुकमरां उन्हें नजरअंदाज करके ज्यादा समय तक राज नहीं कर सकते। यह कहने में संकोच नहीं किया जाना चाहिए कि 2022 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर युवा शक्ति की भूमिका अहम सिद्ध होगी।
चुनाव आयोग द्वारा चलाए गए विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण मतदाता अभियान के बाद उत्तर प्रदेश की मतदाता सूची में 52.79 लाख नए नाम सम्मिलित किए गए। इसी के साथ मतदाताओं की तादाद 15.02 करोड़ से ऊपर हो गई। विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण मतदाता अभियान में युवाओं को जोड़ने पर विशेष बल दिया गया। जनसंख्या की दृष्टि से मतदाताओं का अनुपात 61.21 प्रतिशत से बढ़कर 62.52 प्रतिशत हो गया है। इनमें महिला वोटरों की तादाद 6.80 करोड़ है। 30 वर्ष से कम आयु के मतदाताओं की संख्या 3.89 करोड़ है, जो कुल मतदाताओं का करीब 26 फीसदी है। 80 वर्ष से ऊपर अवस्था के मतदाताओं की संख्या 24 लाख से अधिक है। अभियान से पहले 14.71 करोड़ मतदाता थे, जो बढ़कर 15,02,84,005 हो गए। इस तरह 31.40 लाख मतदाता बढ़ गए। वर्तमान में पुरूष मतदाता 8.45 करोड़, महिला मतदाता 6.80 करोड़ तथा तीसरी श्रेणी के मतदाताओं की तादाद 8,853 है।
18 से 19 वर्ष के मतदाताओं की संख्या 14.66 लाख है। स्पष्ट है कि 27.76 प्रतिशत युवा वोटर उत्तर प्रदेश की तकदीर लिखने में सक्षम हैं। कहा जा रहा है कि कोविड-19 में बढ़ी बेरोजगारी समेत कई समस्याओं से आहत युवा अपने मताधिकार का इस्तेमाल जरूर करेंगे। 2007 में मायावती ने चुनाव प्रचार के दौरान घूम घूमकर युवा शक्ति को पुरजोर आवाज लगाई थी। ‘पंडित शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा’, ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है’, युवाओं निकलो, यह वक्त तुम्हारा है’ जैसे नारों की बदौलत बसपा न केवल युवाओं को अपने पक्ष में करने में कामयाब हुईं, अपितु उन्हें जाति व संप्रदाय के दलदल से बाहर निकलने भी सफल रहीं। उसने 403 में से 206 सीटों पर जीत दर्ज की। लेकिन, सरकार बनने पर मायावती ने युवाओं को तवज्जोह नहीं दी। पांच वर्ष के कार्यकाल में मात्र 91 हजार लोगों को ही सरकारी नौकरियां मिल सकीं। इससे युवा वर्ग नाराज हो गया। परिणामस्वरूप 2012 में बसपा केवल 80 सीटों पर सिमट कर रह गई।
मुलायम सिंह यादव ने 2012 में वक़्त की नब्ज टटोलते हुए युवाओं पर दांव खेला। सपा ने 18 से 30 वर्ष आयु के 3.8 करोड़ मतदाताओं को जहन में रखते हुए अपना घोष्णा पत्र तैयार किया। इसमें 10वीं के बच्चों को टैबलेट और 12वीं उत्तीण बच्चों को लैपटॉप देने की घोषणा की गई। लड़कियों के लिए स्नातक तक की शिक्षा मुफ्त के अलावा हर साल 12 हजार रुपए बेरोजगारी भत्ता देने का वायदा भी किया। परिणाम सपा के हक में आया। 403 में से 224 सीटें जीतने वाली सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने यह कहते हुए कि प्रदेश को युवा मुख्मंत्री की जरूरत है, सूबे की बागडोर अपने पुत्र अखिलेश यादव को सौंप दी। कार्यकर्ता यूपी में सबसे युवा सीएम आ गया का गीत अलापते रहे, किंतु युवा अखिलेश अपने बूढ़े पिता से भी कमजोर साबित हुए।
टैबलेट और लैपटॉप भी सभी को नहीं मिल सके। पांच साल में सरकारी नौकरियां भी सिर्फ़ दो लाख युवाओं को ही मिल सकीं। सपा को अगले चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। वह मात्र 47 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी। इस बीच भाजपा को बसपा व सपा से युवाओं की नजदीकी व नाराजगी का गणित समझ में आ गया। उसने 2017 के विधानसभा चुनाव में युवाओं को अपने साथ जोड़ने के लिए दो नारे दिए। ‘यूथ जिताएगा बूथ और एक बूथ, पांच यूथ।’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़े गए चुनाव में प्रलोभित नारों ने युवाओं का दिल जीत लिया। प्रधानमंत्री ने पहले ही दो करोड़ युवाओं को नौकरी देने की लकीर खींच रखी थी। अमित शाह ने इसे कुछ और बड़ा कर दिया। नतीजा यह निकला कि भाजपा 403 में से 312 सीटों के सत्ता में आ गई।
एक समय था जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का एकछत्र राज था। हर ओर उसी की तूती बोलती थी, लेकिन 1990 के दशक के बाद से कांग्रेस के जनाधार में लगातार गिरावट आती गई और सूबे में दशकों सत्तासीन रहने वाली कांग्रेस हाशिए पर चली गई। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और चुनाव प्रभारी प्रियंका गांधी ने यूपी की कमान अपने हाथ में लेने के साथ उपेक्षित चली आ रही महिलाओं पर केंद्रित कर चुनाव को रोचक मोड़ दे दिया। उन्होंने ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के स्लोगन के साथ युवा शक्ति को जोड़ने की मुहिम पर कार्य किया। कांग्रेस को इसका फायदा मिलता भी नजर आया। कांग्रेस ने आधी आबादी को साधने का कार्य करते हुए 40 प्रतिशत सीटों पर महिला प्रतियाशियों को टिकट दिया। इस विधानसभा चुनाव में युवा शक्ति किसके सिर पर जीत का ताज पहनाएगी, यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा, लेकिन यह बात सौ फीसदी सही है कि 2022 के चुनाव में भी युवा मतदाता सूबे की तकदीर का फैसला करने में कामयाब होंगे।