19 वीं सदी से पहले तक चुकंदर मूलत: रोमनों की उपज थी। फिर जब पता चला कि चुकंदर से चीनी भी बन सकती है, तब इसका प्रसार हुआ, और अमेरिका, पौलेंड, जर्मनी, फ्रांस और रूस जैसे देश इसके बड़े उत्पादक बन गए। चुकंदर पालक और मूल वर्ग का जोड़ीदार पौधा है जिसकी पत्तियां और जड़ दोनों खाए जा सकते हैं। आमतौर पर यह बैंगनी-लाल, सफेद और सुनहरे रंग का भी होता है। मिठास के कारण इसे कच्चा तो खाया ही जाता है, साथ ही इसे पकाकर, उबालकर और अचार के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
चुकंदर में पोषक तत्वों की भरमार है। यह कैल्शियम, आयरन, विटामिन ए और सी से समृद्ध तो है ही, इसमें फॉलिक एसिड और फायबर के साथ बीटा कैरोटीन, बीटा साइनीन, मैगनीज और पोटाशियम भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। चुकंदर की पत्तियों में आयरन की मात्रा पालक से भी अधिक होती है।
रोमन लोगों ने चुकंदर को एफ्रोडिज्एिक के रूप में उपयोग करते रहे। बाद में आधुनिक विज्ञान ने साबित किया कि चुकंदर में बोरोन की खासी मात्रा होती है जो मानव में सेक्स हार्मोन के स्राव में मदद करता है।
चुकंदर को लीवर का सबसे शानदार टॉनिक माना जाता है जो रक्त के शोधन के साथ कई प्रकार के कैंसर से बचाव में काफी उपयोगी है।
चुकंदर में बीटाईन नामक तत्व पाया जाता है जो डिप्रेशन के कुछ प्रकारों के ईलाज में प्रयोग किया जाता है। इसमें पाया जाने वाला ट्राइटोफेन दिमाग को सुकून देने, मन को अच्छा महसूस कराने में मददगार है। चुकंदर ब्लडप्रेशर को भी कम करता है। चुकंदर खाने के यदि आपके मूत्र का रंग गुलाबी जैसा हो जाता है तो यह अमाशय में एसिड लेवल कम होने की निशानी होती है।
चुकंदर में मौजूद फायबर शरीर में ग्ल्यूटथियोन पिरोक्सीडेज नामक एंटीआॅक्सीडेंट के स्तर को बढ़ाने के साथ साथ श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या भी बढ़ाता है। इसमें ग्लूटामाइन भी पाया जाता है जो आंतों के लिए काफी फायदेमंद है। हां, चुकंदर में आॅक्जोलेट की भरपूर मात्रा होती है। लिहाजा यदि आप आॅक्जोलेट संबंधी किडनी स्टोन के मरीज हैं तो चुकंदर कम ही खाएं। चुकंदर के जूस के सेवन की शुरुआत कर रहे हों तो पहले हफ्ते एक मध्यम आकार के चुकं दर के आधे का रस ही लें, फिर बाद में धीरे धीरे करके बढ़ाएं।