19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रात: 9 बजे अपने संबोधन में तीन कृषि कानूनों को वापिस लेने की घोषणा की और कहा कि हमारी तपस्या में कोई कमी रह गई और हम इन कानूनों के बारे में कुछ किसानों को समझा या बरगला नहीं पाए। उन्होंने इस दौरान 700 किसानों के शहीद होने के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा। बीजेपी के नेताओं ने इन कृषि कानूनों को किसान हित में बताते हुए खूब प्रचार-प्रसार भी किया पर इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ और बेमन से कृषि कानून वापिस लेने की घोषणा की। किसानों से सरकार के प्रतिनिधियों से ग्यारह दौर की बात की, जो सरकार के अहंकारी रवैये के कारण असफल हुई। संसद में प्रधानमंत्री ने किसानों को आंदोलनजीवी और परजीवी बताया और बीजेपी की ओर से खालिस्तानी व माओवादी संगठनों का आंदोलन बताया गया तथा लाल किले पर इसके समर्थकों ने खालिस्तानी झंडा फहराकर किसानों को बदनाम करने का प्रयास किया। किसानों के बारे में प्रचार किया गया कि वह जनता को दिल्ली आने से रोक रहे हैं। सड़कों को सरकार ने बेरिकेटिंग बिछा दी और रास्ते में कीलें ठोककर रास्ता जाम किया।
किसान दिल्ली की सीमा पर कुंडली, सिंधु और गाजीपुर बॉर्डर पर डटे रहे। विभिन्न राज्यों के वृद्धों, नौजवान किसानों और बच्चों सहित महिलाओं ने गर्मी, सर्दी और बरसात में सत्याग्रह करते हुए कष्ट झेले। उनकी बिजली, पानी के कनेक्शन काटे, उन पर पानी की बौछार की और लाठीचार्ज का सामना करना पड़ा। बीजेपी के विधायकों और स्थानीय लोगों की मदद से आंदोलन और तंबुओं को तोड़ने का प्रयास किया गया, परंतु किसानों ने विजय पाई।
एक बार तो आंदोलन को तोड़ने के लिये जबरदस्त तैयारी की गई। राकेश टिकैत व अन्य नेताओं को गिरफ्तार करने की तैयारी हो रही थी। राकेश टिकैत रो पड़े तथा देश के एकमात्र नेता ने स्वर्गीय अजित सिंह ने राकेश टिकैत को फोन करके हिम्मत बंधाई की हम पूरी तरह किसानों के साथ हैं और इससे किसान आंदोलन को संजीवनी मिली और भारी संख्या में किसान अपना काम छोड़कर गाजीपुर पहुंचे। गांव-गांव से राशन व खाद्य सामग्री पहुंचाई गई। प्रधानमंत्री ने कहा कि किसान उनसे एक फोन दूर है, परन्तु अहंकारी पेट्रोल व डीजल जीवी सरकार ने कोई बात करने की आवश्यकता नहीं समझी। किसानों की यह जीत चै. अजित सिंह के प्रति श्रद्धांजलि भी है।
सरकार का रवैया साथ वह तीन कृषि कानूनों को बड़े-बड़े पूंजीपतियों को खेती में दखल चाहते थे। वह उसके लिए चौधरी चरण सिंह द्वारा 1965 में रेगुलेटिड मंडियों की स्थापना के स्थान पर पूंजीपतियों की प्राइवेट बनाकर बर्बाद कहना चाहते थे और कृषि पदार्थों में कमी बताकर कम मूल्य पर खरीद करना चाहते थे। जिससे मजबूर होकर किसान अपनी जमीन पूंजीपतियों को बेच दें। कंपनियां किसानों का नहीं अपना हित सोचती हैं। कांट्रेक्ट खेती इसका प्रमाण है कि एक बार पेप्सी कोला कंपनी ने टमाटर की कांट्रेक्ट का एक सौदा किसानों से किया और जो जाति बोआई के लिए दी थी वह खेतों में सड़ गई और कंपनी यह कांट्रेक्ट छोड़कर भाग गई।
किसान आंदोलन की दूसरी मांग यह भी थी कि एमएसपी को कानूनी रूप दिया जाए लेकिन झूठे वायदे किए। स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर एमएसपी देने की घोषणा की जो सरासर जुमलेबाजी निकली। फसल की उत्पादन लागत निकालने के झूठे आंकलन करवाए। मजदूरी की लागत मनरेगा के अनुसार 202 रुपये लगाई और बढ़ती पेट्रोल, डीजल की कीमत, मजदूरी और अन्य कारकों में बढ़ी हुई कीमत नहीं लगाई गई और फर्जी स्वामीनाथन की रिपोर्ट के अनुसार लाभकारी मूल्य देने की घोषणा कर दी।
इस प्रकार खेती घाटे का सौदा बनकर रह गई और घोषित कीमत को कानूनी रूप नहीं दिया। नरेंद्र मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए एमएसपी को कानूनी रूप देने की बात की थी, उसे भी वे भूल गए और पूंजिपतियोें के हाथ की कठपुतली बनकर रह गए। जिस प्रकार हवाई अड्डे और बहुत सी सरकारी उपक्रम व संस्थान पूंजिपतियों को बेच दिए, इसी प्रकार खेती को भी पूंजिपतियों को सौंपना चाहते थे, क्योंकि वे पार्टी उन्हीं के चंदे से चला रहे हैं। उम्मीद है कि किसान संघर्ष की एकता व बलिदान के आगे सरकार को झुकना पड़ा और किसान एकता की जीत हुई।
अब सवाल यह उठता हे कि तीनों कृषि कानूनों को वापिस लेने की नौबत क्यों आई? ये कानून किसानों के हित में वापिस नहीं लिए गए बल्कि कुर्सी को फिर से प्राप्त करने के लिए यह कदम उठाया जाना प्रतीत हो रहा है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व पंजाब में चुनाव होने है, इस बार भाजपा की कुर्सी जाती नजर आ रही है। रही-सही कसर लखीमपुर खीरी कांड ने पूरी कर दी। जिसमें केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे ने चार किसानों को गाड़ी से रौंदकर मार डाला। मंत्री का त्यागपत्र होना चाहिए था और शहीद किसानों को मुआवजना मिलना चाहिए था।
किसान एमएसपी को कानूनी रूप देने, सात सौ शहीद किसानों को मुआवजा देने और किसानों पर लगाए गए झूठे मुकदमों को वापिस लेने तथा केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी का इस्तीफा और विद्युत अधिनियम के संशोधन देने की मांग पर अड़े हैं। साथ ही 700 शहीद किसानों को शहीद का दर्जा देकर उन्हें मुआवजा देने की भी मांग कर रहे हैं, और जब तक ये मांगे पूरी नहीं होने किसान आंदोलनरत रहेंगे और घर वापिसी नहीं कर करेंगे। यह आंदोलन सबसे बड़ा किसान आंदोलन है और किसानों के धर्म, एकजुटता व बलिदान की जीत है।