- मेरठ में सुरक्षित है 811 साल पुराना बादशाही आदेश
- सोना चांदी तक टंका हुआ है इस बादशाही फरमान पर
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: कई बादशाहों के शाही फरमानों के बारे में आपने सुना होगा, लेकिन इन्ही में से एक शाही फरमान आज भी मेरठ में सुरक्षित है। इस शाही फरमान पर उस सलतनत (शासन) की मोहर भी लगी हुई है और साथ में इसी शाही फरमान पर थोड़ा सोना और चांदी तक टंके हुए है। उर्दू व फारसी भाषा में लिखा हुआ यह शाही फरमान यहां पुरानी कोतवाली के पास स्थित मुफ्ती वाड़े में बाले मियां मजार के मुतवल्ली मुफ्ती अशरफ के पास मौजूद है। इस फरमान में बाकायदा मेरठ में वक्फ की एक जमीन पर सरकारी लगान माफी का आदेश है। जिसे उस समय के बादशाह ने खुद अपने मेरठ दौरे के दौरान माफ किया था
मुफ्ती अशरफ बताते हैं कि नौचन्दी मैदान स्थित हजरत बाले मियां की दरगाह के नाम पर 40 बीघा जमीन वक्फ (आरक्षित) है। बादशाह कुतुबुद्दीन एबक के शासनकाल के कुछ समय बाद ही हिन्दुस्तान में सन् 1211 में बादशाह शाह आलम सानी (द्वितीय) का शासन आ गया था। जब शाह आलम सानी को पता चला कि मेरठ में एक बहुत बड़े बुजुर्ग का मजार है जिसे बादशाह कुतुबुद्दीन एबक ने खुद बनवाया था, तो वो इस मजार पर हाजिरी देने के लिए तभी मेरठ आए थे।
मुफ्ती अशरफ आगे बताते हैं कि जब शाह आलम सानी दरगाह पर पहुंचे तो उस समय दरगाह के आस पास खेती की काफी जमीनें थीं और इन जमीनों से सरकार लगान वसूलती थी। जो 40 बीघा जमीन थी उसके कुल 27 लोग मालिक थे। बादशाह के मेरठ पहुंचने से पहले ही इन सभी 27 लोगों ने यह जमीन बाले मियां दरगाह के नाम वक्फ कर दी थी। जिस समय शाह आलम सानी मेरठ पहुंचे तो मुफ्ती अशरफ के पर दादाओं में शुमार मुफ्ती खिजर आलम ने बादशाह से मुलाकात की और उन्हे एक प्रार्थना पत्र दिया जिसमें मांग की गई कि यह 40 बीघा जो जमीन दरगाह के नाम वक्फ की गई है उस पर से सरकारी लगान माफ किया जाए।
शाह आलम सानी ने उनकी यह बात मान ली इसके कुछ ही समय बाद बादशाह ने लगान माफी का सरकारी आदेश अपने सिपेहसलारों के जरिए मेरठ पहुंचवा दिया। इसी फरमान के आधार पर सरकार इस जमीन से आज तक भी कोई टैक्स वसूल नहीं करती है। बकौल मुफ्ती अशरफ मेरठ कलक्ट्रेट में आज भी इस जमीन के जो कागज जमा हैं उस पर भी माफी डवाम (वो स्थान जिस पर से सरकारी टैक्स माफ होता है) के रूप में दर्ज है।