जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: सरकार ने कथित रूप से आतंकी गतिविधियों में संलिप्तता के कारण पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI ) और उससे संबद्ध कई अन्य पर प्रतिबंध लगा दिया है। आतंकवाद रोधी कानून (UAPA) के तहत ‘रिहैब इंडिया फाउंडेशन’ (आरआईएफ), ‘कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया’ (सीएफ), ‘ऑल इंडिया इमाम काउंसिल’ (एआईआईसी), ‘नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन’ (एनसीएचआरओ), ‘नेशनल विमेंस फ्रंट’, ‘जूनियर फ्रंट’, ‘एम्पावर इंडिया फाउंडेशन’ और ‘रिहैब फाउंडेशन’(केरल) को भी प्रतिबंधित किया गया है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से मंगलवार देर रात जारी एक अधिसूचना के अनुसार, पीएफआई के कुछ संस्थापक सदस्य स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के नेता हैं और पीएफआई के जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) से भी संबंध हैं। जेएमबी और सिमी दोनों ही प्रतिबंधित संगठन हैं।
दिल्ली के शाहीन बाग इलाके से 30 लोग भी गिरफ्तार किए गए हैं। आरोप है कि ये लोग देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त थे और आने वाले समय में बड़ी घटना को अंजाम देने की योजना बना रहे थे। इस इलाके में किसी नुकसान की आशंका को रोकने के लिए इलाके में धारा-144 लगा दी गई है। लेकिन पीएफआई का नाम दिल्ली के लिए नया नहीं है। इसके पहले दक्षिणी दिल्ली के शाहीन बाग़ इलाके में ही पीएफआई की अगुवाई में ही कई महीनों तक प्रदर्शन हुए थे।
शाहीन बाग आंदोलन से जुड़े रहे सूत्रों ने अमर उजाला को बताया कि पीएफआई के लोगों के द्वारा ही इस आंदोलन को शुरू किया गया था। उन्होंने सीएए और एनआरसी के कानूनों को देश के मुसलमानों के खिलाफ बताकर लोगों को एकजुट करना शुरू किया था, जिसमें उन्हें अच्छी सफलता मिली। बाद में कई स्थानीय लोग भी इस आंदोलन को आगे बढ़ाने में जुट गए थे, जिससे इस आंदोलन को शक्ति मिली और यह लगातार बढ़ता गया।
जानकारी के मुताबिक, वे प्रदर्शन के लिए लोगों को सरकार के कदमों को ‘देश के मुसलमानों के खिलाफ की जा रही साजिश’ बताकर इकट्ठा किया करते थे। पीएफआई के ऊपर इस समय जो आरोप हैं, वे बिलकुल उन्हीं तर्ज पर हैं, जो शाहीन बाग़ आंदोलन के समय थे। उस समय भी पीएफआई इसी तर्ज पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को एकत्र कर रही थी।
जानकारी के मुताबिक, शाहीन बाग़ आंदोलन के कुछ आयोजक पीएफआई के प्रस्तावों के सख्त खिलाफ हो गए थे। इसका बड़ा कारण था कि सरकार लगातार लोगों को यह बताने में जुटी थी कि ये कानून देश के किसी मुसलमान के खिलाफ नहीं हैं। कई स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन के लिए हुई बैठकों में यह मुद्दा उठाया भी था और यह जानने की कोशिश की थी कि उन्हें इन कानूनों का विरोध क्यों करना चाहिए जब यह उनके खिलाफ नहीं है। लेकिन आंदोलन के वेग में ऐसे लोगों की आपत्तियों को किनारे लगा दिया गया। इससे नाराज कुछ आयोजकों ने आंदोलन से पल्ला झाड़ लिया था।
शाहीन बाग़ आंदोलन को सबसे ज्यादा यह कहकर प्रचारित किया गया था कि यह पूरी तरह अहिंसक है और इतने लंबे आंदोलन के बाद भी आंदोलनकारियों के कारण किसी को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया गया है। इस दौरान प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग किये जाने और स्थानीय लोगों के द्वारा कड़ा विरोध किये जाने का मामला भी सामने आया था। लेकिन इसके बाद भी आंदोलनकारियों ने कहीं भी कोई उपद्रव नहीं किया, जिसे इस आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर प्रचारित किया गया। पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद में इसी तरह के प्रदर्शन के बाद दंगे भड़क उठे थे, जिसमें पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक़ 53 लोगों की मौत हो गई थी।
शाहीन बाग आंदोलन से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, आंदोलन की शुरुआत के कुछ ही दिनों के बाद पीएफआई से जुड़े लोगों की आपत्तिजनक गतिविधियां सामने आने लगीं थीं। इस आंदोलन में दादियों और महिलाओं ने बड़ी भूमिका निभाई थी। लेकिन जैसे ही स्थानीय लोगों को इसमें आपत्तिजनक लोगों के शामिल होने की जानकारी मिली, लोगों ने अपने घरों की महिलाओं को इसमें भेजना बंद कर दिया था। जानकारी के मुताबिक़, इसके बाद आंदोलन की छवि प्रभावित होने लगी थी और लोगों के इससे दूर होने की ख़बरें आने लगी थीं। इसके बाद बाहर से लोगों को लाकर आंदोलन में भीड़ दिखाने की कोशिशें की जाने लगी थीं। पीएफआई ने इसके लिए फंड दिए जाने की भी व्यस्था की।
पीएफआई के दिल्ली के अध्यक्ष की गिरफ्तारी के बाद से ही इलाके में चर्चाओं का बाज़ार गर्म हो गया था, लेकिन मंगलवार को 30 लोगों की गिरफ्तारी से माहौल तनावपूर्ण हो गया है। इसे देखते हुए पुलिस ने सतर्कता बरती है और इलाके में किसी तरह के प्रदर्शन पर रोक लगा दी है। लेकिन इलाके में लोगों में जबरदस्त तनाव है।