Saturday, July 5, 2025
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3.5 करोड़ के घाटे में चल रही महानगर बस सेवा

  • प्रति किमी 32 रुपये आय के सापेक्ष 73 रुपये के खर्च में मिलता है प्रदूषण रहित इलेक्ट्रिक बसों का ट्रांसपोर्ट

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: महानगर बस सेवा के संचालन की स्थिति को देखकर ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया’ वाली कहावत भी फीकी हो जाती है। इसमें जहां 32 रुपये की आय के मुकाबले इलेक्ट्रिक बसों के संचालन में प्रति किमी 73 रुपये खर्च किए जा रहा हैं। वहीं, सीएनजी बसों के संचालन के लिए 12 रुपये प्रति किमी का नुकसान उठाना पड़ता है। हर महीने सिटी बसों के संचालन पर 350 लाख रुपये का घाटा नगरीय परिवहन विभाग को वहन करना पड़ता है।

प्रदूषण रहित ट्रांसपोर्ट देने के लिए चलाई गई इस योजना के अंतर्गत इलेक्ट्रिक बसें महानगरों में चलाई गई हैं। मेरठ महानगर बस सेवा के माध्यम से इन दिनों 50 इलेक्ट्रिक बसों के संचालन का दायित्व वीएसके कंपनी को दिया गया है। लोहियानगर में बनाए गए डिपो में ही इन बसों का रखरखाव, चार्ज करने की व्यवस्था और संचालन का कार्य किया जाता है। जहां से इलेक्ट्रिक बसों को उनके लिए आवंटित मार्गों पर भेजा जाता है।

इलेक्ट्रिक बसों के संचालन की स्थिति यह है कि एक बस औसतन 180 किमी प्रतिदिन चलाई जाती है। जिसकी एवज में सभी बसें औसतन 60 लाख रुपये की आय कर पाती हैं। इस आय को प्रति बस किमी में जो आंकड़े निकलकर सामने आते हैं, उसके मुताबिक 32 रुपये प्रति किमी का औसत होता है। जबकि इनके संचालन पर होने वाला खर्च प्रति किमी 73 रुपये हो जाता है। सभी बसों के संचालन से एक दिन में होने वाले घाटे का औसत 3.5 लाख रुपये है।

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यानि महीने में अकेले मेरठ महानगर क्षेत्र में 50 इलेक्ट्रिक बसों के संचालन होने की स्थिति में विभाग को 175 लाख रुपये का घाटा वहन करना होता है। वहीं सीएनजी बसों का संचालन सोहराब गेट डिपो के नीलाम वाली भूमि में बनाए गए वर्कशॉप और संचालन कक्षों से श्यामा-श्याम कंपनी के माध्यम से किया जाता है। सीएनजी की औसतन 88 बसों के संचालन की स्थिति यह है कि एक बस से प्रतिदिन 20 रुपये किमी की आय के विपरीत 32 रुपये किमी का खर्च होता है।

सीएनजी बसों में भी प्रतिदिन इलेक्ट्रिक बसों के बराबर 3.5 लाख रुपये प्रतिदिन के औसत से महीने में 175 लाख रुपये का घाटा उठाना पड़ता है। इलेक्ट्रिक और सीएनजी बसों को हर महीने होने वाले घाटे को जोड़ा जाए, तो यह तीन करोड़ 50 लाख रुपये हो जाता है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस खर्च में नगरीय सिटी बस सेवा के अधिकारियों और कर्मचारियों का वेतन शामिल नहीं होता है।

प्रदूषण रहित ट्रांसपोर्ट की दिशा में सरकार की ओर से उठाया गया यह कदम कई मायने में महत्वपूर्ण है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह सेवा सामान्य सेवा के मुकाबले काफी महंगी पड़ती है। जिसमें होने वाले घाटे की प्रतिपूर्ति के लिए राज्य सरकार की ओर से वीजीएफ के अंतर्गत सब्सिडी दी जाती है। इस योजना का उद्देश्य ‘फेम’ यानि फास्ट एडॉप्शन एंड मोबिलिटी आॅफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को घाटे के बावजूद फायदे का सौदा माना जाता है।

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इसके पीछे पेट्रोलियम पदार्थों पर खर्च होने वाले विदेशी मुद्रा भंडार को कम करना है। साथ ही निजी वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के मकसद से नुकसान के बावजूद इलेक्ट्रिक बसों का संचालन किया जाता है। -केके शर्मा (आरएम), प्रभारी एमडी महानगर बस सेवा, मेरठ

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