विश्व पटल पर यक्ष प्रश्न कौंध रहा है कि क्या पाकिस्तान की सरजमीं पर वास्तविक जनतंत्र का सूर्योदय हो जाएगा अथवा आर्थिक तौर पर जर्जर पाकिस्तान राजनीतिक अंतर्कलह में पूर्णत: तबाह हो जाएगा? इमरान खान की गिरफ्तारी से आक्रोशित होकर पूर्व प्रधानमंत्री की हिमायत में सड़कों पर उतरी पाक आवाम द्वारा पाक फौज के प्रतिष्ठानों पर भीषण हिंसक आक्रमण, पाकिस्तान के किस मुस्तकबिल की तरफ इशारा कर रहे हैं? पाकिस्तान में निर्माण के कुछ वर्ष के पश्चात ही प्रधानमंत्री लियाकत अली का कत्ल कर दिया गया था और इसी प्रस्थान बिंदु से नवोदित पाकिस्तान में जनतंत्र का अवसान प्रारम्भ हो गया था। पाक राजसत्ता पर आखिरकार पाक के फौजी जनरलों का आधिपत्य स्थापित होता चला गया।
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने पाकिस्तान पर अनेक दशकों से हुकूमत संचालित करने वाली फौज को चुनौती पेश कर दी। हालांकि इमरान खान पाक फौज की सरपरस्ती में ही वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए थे, किंतु वर्ष 2021 आते आते इमरान खान और पाक फौज के हुक्मरान जनरलों के मध्य तनाव और तल्खियां निरंतर बढ़ने लगीं और आखिरकार पाक फौज के सर्वोच्च कमांडर द्वारा इमरान खान को वर्ष 2022 में सत्ताच्युत कर दिया गया और मुस्लिम लीग के लीडर शहबाज शरीफ को पाक प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया गया।
सत्ता से बेदखल कर दिए जाने बावजूद इमरान खान पाक फौज के कठपुतली प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की हुकूमत के लिए निरंतर भयानक सिरदर्द बने रहे हैं। जुल्फिकार अली भुट्टो और नवाज शरीफ की तर्ज पर अपने रास्ते हटाने की खातिर पाक फौज ने इमरान खान को नेशनल अकाउंटिबिलिटी ब्यूरो (नैब) द्वारा इस्लामाबाद हाईकोर्ट परिसर में पाक रैंजर्स के माध्यम से गिरफ़्तार करा लिया गया।
उल्लेखनीय है कि नैब का काम वस्तुत: आर्थिक भ्रष्टाचार पर काबू करना है। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ द्वारा अपनी हुकूमत के दौर में नैब का गठन किया गया था। इमरान खान की गिरफ्तारी के तत्पश्चात जो कुछ जो कुछ भी पाकिस्तान में घटित हुआ है वह तो यकीनन पाक इतिहास में अभूतपूर्व रहा है।
पाक फौज के प्रतिष्ठानों पर तहरीक-ए-इंसाफ के कारकूनों द्वारा पर हिंसक धावा बोल दिया जाना, वस्तुत: विलक्षण है। पाकिस्तान पर विगत अनेक दशकों तक हुकूमत करने वाली फौज को ऐसी हिंसक चुनौती का सामना संभवतया पहली दफा ही करना पड़ा है।
पाक सुप्रीम कोर्ट द्वारा पाकिस्तान के बेहद बिगड़ते हुए हिंसक हालत के मद्देनजर इमरान खान की गिरफ्तारी को अवैध करार देकर उनकी तत्काल रिहाई का हुक्म दे दिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इमरान को अनेक आपराधिक मामलों में जमानत प्रदान कर दी गई है।
इमरान खान से पहले ऐसी विकट चुनौती जुल्फिकार अली भुट्टो की कयादत में पाक अवाम द्वारा जनरल अयूब खान की फौजी हुकूमत को पेश की गई थी, जबकि पाकिस्तान की आवाम ने सड़कों पर बहुत बड़ी तादाद में उतर कर जनरल अयूब खान की फौज को ललकारा था।
किंतु अयूब खान की हुकूमत के विरुद्ध इतने विराट पैमाने पर हिंसा नहीं हुई थी। आखिरकार जनरल अयूब को राजसत्ता से बेदखल होना पड़ा और वर्ष 1969 में जनरल याहिया खान को हुकूमत सौंपनी पड़ी। बंगला देश के युद्ध में पराजित और विभाजित हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद पर जुल्फिकार अली भुट्टो विराजमान हुए।
जनरल जिया उल हक ने इतिहास दोहरा दिया और पाक गणतंत्र के महानायक बनकर उभरे जुल्फिकार अली भुट्टो को 1979 में फांसी पर चढ़ा दिया गया।
पाकिस्तान में इमरान खान की राजनीतिक शख्सियत की विवेचना करें तो उनकी राजनीति सबसे अधिक विभाजनकारी रही है। हालांकि, बहुत सारे लोगों की नजर में क्रिकेटर से राजनेता बन जाने वाले इमरान खान को फौज का विरोधी चेहरा बनकर उभरे हैं।
ऐसे राजनीतिक विश्लेषक भी हैं, जो विवेचना करते हैं कि इमरान खान ने कथित तौर पर राष्ट्रीय खजाने को खुर्दबुर्द किया गया और राजनीतिक अयोग्यता के कारण पीएम पद से अपदस्थ हो जाने के बाद से इमरान ने जो राजसत्ता से सीधे टकराव की राजनीतिक रणनीति अख्त्यार की है, उसी के कारण पाकिस्तान आज एक अभूतपूर्व राजनीतिक, आर्थिक और संवैधानिक संकट का सामना कर रहा है, जिससे देश गृह युद्ध के कगार पर पहुंच गया है।
इमरान खान की राजनीति में तालिबान की हिमायत बनी रही है। इसी कारणवश इमरान खान को तालिबान खान कहकर प्राय: पुकारा गया है। तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के हिंसक प्रदर्शनों के दौरान जिस तरह से सेना के ठिकानों पर मिसाइलें दागी गईं हैं, उससे साफ जाहिर होता है कि अफगान तालिबान और पाक तालिबान की हिमायत इमरान खान को प्राप्त हुई है।
जनरल जिया उल हक हुकूमत के दौर में अमेरिका द्वारा प्रदत्त पेट्रो डॉलर के दमखम पर पाक फौज का धर्मांध जिहादीकरण किया गया। अफगानिस्तान में पराजित होकर सोवियत संघ की लाल सेना वापस घर लौटी तो फिर पाक फौज द्वारा अफगान तालिबान को वहां पर सत्तानशीं करा दिया गया।
पाकिस्तान को वैश्विक जेहादी आतंकवादियों का निर्माण करने वाली विराट फैक्ट्री तशकील करने में मुख्य किरदार पाक फौज का है। पाकिस्तान में जनतंत्र की राह में सबसे बड़ी बाधा पाक फौज रही है। जिहादी फितरत के तहत ही पाक फौज द्वारा इमरान खान को सत्तानशीं कराया गया था।
अभूतपूर्व राजनीतिक और आर्थिक संकट की इस विकट बेला में कहीं पाकिस्तान पर तालिबान ताकतों का सीधा आधिपत्य स्थापित नÑ हो जाए? इमरान खान को इतना अधिक जनसमर्थन हासिल होते चले जाना, कहीं पाकिस्तान के लिए मुकम्मल तबाही का सबब ही ना बन जाए?
पाक के वरिष्ठ राजनेताओं और सर्वोच्च फौजी हुक्मरानों को गहनता से सोचना चाहिए कि उनकी धर्मान्ध जिहादी नीतियों के कारण ही पाकिस्तान गृहयुद्ध के कगार पर खड़ा हो गया है। एक गृहयुद्ध में द्वारा वर्ष 1971 में पाकिस्तान विभाजित हुआ।
इस दफा के गृहयुद्ध के दौर में कहीं बलूचिस्तान और पख्तूनिस्तान न निर्मित हो जाएं। पाक फौज के कमांडर इन चीफ जनरल असिम मुनीर ने एलान किया है कि फौज के प्रतिष्ठानों पर हिंसक हमले अंजाम देने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के विरुद्ध एक राजनीतिक मुहिम का आगाज किया गया है, क्योंकि इमरान खान को कानूनी राहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रदान की गई है। अभी कहना बहुत मुश्किल है कि भीषण आंतरिक हिंसक अंतर्द्वद में फंसा हुआ पाकिस्तान आखिरकार क्या प्रजातंत्र की राह अख्त्यार करेगा अथवा आत्मविनाश की राह चलेगो।
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