Wednesday, January 15, 2025
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फलस्तीन पर इस्राइली बर्बरता

Samvad 52


lalit kumarबदले की भावना से हमास द्वारा दक्षिणी इजरायल पर सात अक्टूबर को किया गया हमला इतना भयावह था कि इस्राइल अभी तक नही समझ पाया कि उनकी सुरक्षा एजेंसी में कहां चूक हुई। इस्राइली इंटेलिजेंस एजेंसी की नाकामी यही बताती है कि उसे इस हमले की जरा भी भनक तक नहीं लगी, जबकि इस्राइल खुफिया एजेंसी मौसाद अपनी मुस्तैदी के लिए जानी जाती है। इस हमले में कम से कम 1400 इस्राइल नागरिकों की मौत हुई जबकि हम हमास ने 200 से ज्यादा इस्राइल के नागरिकों को बंधक बनाया गया। गजा में अब तक 10 हजार से ज्यादा लोगों मारे जा चुके हैं जिनमें सत्तर फीसदी महिलाएं और बच्चे शामिल है। हमास द्वारा अचानक से इस्राइल पर किया गया यह अब तक का सबसे बड़ा हमला बताया जा रहा है। इस हमले से इस्राइल इस कदर हिल जाएगा ऐसा उसने कभी सोचा नहीं था। लेकिन इस्राइल की तुरंत जवाबी कार्रवाई ने फिलिस्तीन की गजा पट्टी को खंडहर बनाने में जरा भी देर नहीं लगाई। इस्राइल लगातार हमास संगठन की कमर तोड़ना चाहता हैं। लेकिन हमास चरमपंथी संगठन को इराक और ईरान का मिला समर्थन उसके हौसले बुलंद किए हुए हैं। अरब देशों के बीच छोटे आबादी वाला इस्राइल एकमात्र ऐसा देश है जो अपनी मजबूत इकोनॉमिक और हाईटेक तकनीकी उपकरणों को निर्यात करने के लिए जाना जाता है। इस्राइल अपने नागरिकों पर हुए हमले का बदला लेने के लिए फलस्तीन की जनता के सर से आशियाना तक छीन चुका है। हमास ने इस्राइल पर युद्ध करने से पहले नहीं सोचा होगा कि वह जो करने जा रहा है, उसकी जवाबी कार्रवाई से फलस्तीन के लिए यह कितना घातक सिद्ध हो सकता है। हमास के इस किए की सजा फिलिस्तीन की निर्दोष जनता भुगत रही है, जिस वजह से फलस्तीनी जनता दाने-दाने के लिए मोहताज होती जा रही है। इस युद्व ने फलस्तीन को अब ऐसे मुहाने पर ला खड़ा किया है, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नही की होगी। इस्राइल की बढ़ती ताकत के सामने फलस्तीन अब इतना लाचार हो चुका है, कि अब उसके ही घर में इस्राइली सेना घुसकर फलस्तीन नागरिकों पर कहर बनकर टूट रही हैं। इस युद्व को कवर कर रहे फलस्तीनी मीडियाकर्मी अपने परिवार के लोगों को अपने सामने दम तोड़ते हुए देख रहे हैं। इससे बुरा समय और क्या हो सकता है? इस्राइली सेना की लगातार सैन्य कार्रवाई से आज फिलीस्तीन खंडहर बनता जा रहा है।

अरब के ज्यादातर मुस्लिम देशों की सबसे बड़ी समस्या यही है कि वह हर समस्या का हल गोली, बारूद और आतंकवाद के आसरे हासिल करना चाहते हैं। आतंकवाद का न कोई धर्म होता है और न कोई मजहब। हर समस्या का हल युद्ध से हासिल नहीं किया जा सकता। ऐसा ही कुछ हमने रूस-यूक्रेन युद्ध के जरिए देखा। रूस भी यूक्रेन की जमीं को युद्ध के जरिए हासिल करना चाहता है। यानी वैश्विक तौर पर आज हर मुल्क की सीमा पर कुछ न कुछ विवाद जरूर बना हुआ है। लेकिन युद्ध कभी भी किसी समस्या का हल नहीं हो सकता है। यही वजह है कि आज हर देश अपनी ताकत को वैश्विक स्तर पर युद्ध के जरिए एहसास कराना चाहता है।

इस्राइल-फलस्तीन युद्ध की यह जंग कोई नई नही है। लेकिन इसके अतीत में आज भी बहुत से राज दफन है, जिसका हल ढूंढ पाना बेहद मुश्किल है। आज तक इस्राइल-फिलिस्तीन के इस मसले का हल यूएनओ भी नहीं निकाल पाया है, जिसने कभी इस्राइल की फलस्तीन में बसाने की वकालत की थी। येरूसलम की अल अक्सा मस्जिद परिसर धार्मिक नजरिए से इस्राइल-फलस्तीन की सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है, जहां ईसाई, यहूदी और मुस्लिम इन तीनों धर्मों के लोग अपने-अपने तरीके से उस स्थल को अपना धार्मिक स्थल मानते हैं। यही वजह है कि कोई भी देश इस धार्मिक मसले में नहीं पड़ना चाहता है।

अमेरिका को इस्राइल का मिला खुला समर्थन अरब देशों के लिए परेशानी का सबक बना हुआ है। इस्राइल का समर्थन वैश्विक सुपर इकोनॉमिक वाले देश कर रहे हैं। अगर जॉर्डन, लेबनान, ईरान और इराक को छोड़ दें तो कोई देश फलस्तीन के साथ नहीं खड़ा है, क्योंकि जो मुस्लिम देश पूंजीवादी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ रहे हैं, वहीं फलस्तीन में हो रहे नरसंहार पर आगे आने से कतरा रहे हैं। संयुक्त अरब अमीरात जैसे मजबूत इकोनामी वाले देश युद्ध का रास्ता छोड़कर वह वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाने में लगे हैं। इसलिए फलस्तीन के समर्थन में आने से वह कतरा रहे हैं।
जर्मनी में हिटलर की तनाशाही के चलते निहत्थे यहूदियों को जब मौत के घाट उतारा जा रहा था, उस वक्त बहुत से यहूदी अरब देशों में शरण लेने के लिए निकल पड़े थे। क्योंकि उनको अरब देशों के अलावा कोई और देश शरण देने को तैयार नहीं था। अरब देश ही यहूदियों को शरण देने के लिए आगे आए और यूएनओ की राजामंदी के चलते बड़ी तादाद में यहूदियों को शरण देने के लिए फलस्तीन ने अपने दरवाजे खोले, लेकिन फलस्तीन को क्या पता था कि वह अपनी ही जमीन पर कांटे बो रहा है और आने वाले सालों में इस्राइल गिरगिट की तरह रंग बदलकर एक दिन उसे ही आंख दिखाएगा।

इस्राइली मीडिया का प्रमुख समाचार पत्र हारेत्ज लिखता है कि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अपने अस्तित्व को बचाने के लिए इस लड़ाई का हिसाब किताब करने को तैयार हैं। मध्य-पूर्व की एक समाचार वेबसाइट अल मॉनिटर के इस्राइली राजनीतिक जानकार माजल मुआलेम कहते हैं कि इसमें कोई शक नहीं है कि नेतन्याहू युद्ध का नेतृत्व करने में सक्षम है, लेकिन कुछ समय बाद इस्राइल में उनके खिलाफ गुस्सा फूट सकता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नेतन्याहू द्वारा गजा पर की जा रही कार्रवाई का पश्चिमी देश खुलकर समर्थन कर रहे हैं, लेकिन मध्य-पूर्व के कई मुस्लिम देश अब इस युद्ध पर विराम लगाने की बात कह रहे हैं। गजा पर लगातार होती भीषण बमबारी से फलस्तीन कब्रगाह बनता जा रहा है, उसे देखते हुए स्पेन के सामाजिक अधिकार मंत्री इयोने बेलारा इस्राइल की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए कहते हैं कि आने वाले कुछ सालों में यूरोप को इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

इस्राइल-फलस्तीन युद्ध पर यूरोप के जो देश इस्राइल के समर्थन में खड़े हैं, उन्हें इसे गंभीरता से लेना चाहिए साथ ही उन्हें इस जनसंहार को रोकने की अपील करनी चाहिए। इसलिए वैश्विक स्तर पर बहुत से देश फलस्तीन के समर्थन में इंसानियत के साथ खड़े होते दिख रहे हैं, तो कुछ देश इस युद्ध में घी डालने का काम कर रहे हैं। अभी भी समय है यूरोप को इस्राइल के साथ अपने संबंध खत्म करके मानवता के साथ खड़ा होना चाहिए और इस युद्ध अपराध को लेकर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में नेतन्याहू के खिलाफ मामला चलाना चाहिए।


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