जितनी व्यवस्था उर्वरक के मद में खर्च की गई है उसे उतने ही क्षेत्र में डालें एक एकड़ के खेत में पांच एकड़ का उर्वरक डालकर संतोष करना बेकार होगा, वहीं सिंचित फसलों में संतुलित उर्वरक उपयोग का बहुत बड़ा महत्व है। इच्छानुसार स्वयं के हिसाब से अधिक क्षेत्र में कम उर्वरक डालकर लक्षित उत्पादन की कल्पना करना बेकार ही होगा। यूरिया की टाप ड्रेसिंग खरपतवार निकालने के बाद सिंचाई करने के उपरांत ही की जाए तो अधिक लाभ होगा। असिंचित गेहूं में 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव सभी कृषक करें तो असिंचित क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। तो आइए कृषि की छोटी-मोटी तकनीकी का अंगीकरण करके शासन द्वारा उठाये गए क्रांतिकारी कदम को सफल बनायें और प्रगति के पथ पर अग्रसर हो जाएं।
कृषि की छोटी-छोटी तकनीकी का कृषकों द्वारा शत-प्रतिशत अंगीकरण आज भी अपेक्षित है जिसके कारण उत्पादकता बढ़ाई जाने में अवरोध दिखाई दे रहा है। कृषि आदानों में बीज एवं खाद सबसे महंगे आदानों में आते हैं। कृषकों से अपेक्षा है कि वह स्वयं के पास रखे अनाज को बीज में कैसे परिवर्तित कर सकें और इस पर होने वाला खर्च बचा सकें। दूसरा खर्च उर्वरकों पर होता है इस महंगे उर्वरकों के प्रत्येक कण का उपयोग होना जरूरी है। ताकि लागत के अनुपात में आमदनी भी उतनी हो सके। पहले बड़ी सरलता से उर्वरकों के साथ बीज मिलाकर बुआई करना आम बात थी परंतु अब अनुसंधानों के आंकड़े हमारे पास उपलब्ध हैं। जिनसे यह साफ हो गया है।
नत्रजन, स्फुर और पोटाश की स्थापना किस तरह और कहां करने से शत-प्रतिशत उपयोगिता प्राप्त की जा सकती है। इसलिए उर्वरक-बीज के मिश्रण पर पूर्ण रूप से नकेल कस दी जाए और निर्धारित व्यवस्था के अनुसार बीज अलग और उर्वरक अलग डाला जाये, होता यह है कि यदि उर्वरक बीज एक साथ डाल दिया जाए तो भूमि में अंदर पहुंचते ही रसायन जोर मारेगा और उपलब्ध नमी सोख कर भू्िमगत वातावरण में सूखापन की स्थिति बना देगा और जो नमी बीज को मिलना चाहिए वह उसे नहीं मिल सकेगी और परिणाम अंकुरण संतोषजनक नहीं हो पाएगा।
ध्यान रहे अच्छा अंकुरण अच्छे उत्पादन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है जो एक छोटी सी भूल से गड़बड़ा जाएगा। नत्रजन, स्फुर, पोटाश में से स्फुर तो ऐसी चीज है कि खेड़ापति की तरह जहां डाला वहीं थम-जम जाता है यदि जड़ों की गरज हो तो वहां पहुंचकर उसका उपयोग कर लें यदि इसी को बीज के नीचे डाला जायेगा तो अंकुरण उपरांत कोमल जड़ों को उर्वरक का घोल टानिक के रूप में उपलब्ध रहेगा और पौधों के विकास में गति आ जायेगी। आम कृषक असिंचित गेहूं तथा अन्य दलहनी-तिलहनी फसलों में उर्वरक का उपयोग या तो करता ही नहीं है या सिफारिश से कहीं कम।
जितनी व्यवस्था उर्वरक के मद में खर्च की गई है उसे उतने ही क्षेत्र में डालें एक एकड़ के खेत में पांच एकड़ का उर्वरक डालकर संतोष करना बेकार होगा, वहीं सिंचित फसलों में संतुलित उर्वरक उपयोग का बहुत बड़ा महत्व है। इच्छानुसार स्वयं के हिसाब से अधिक क्षेत्र में कम उर्वरक डालकर लक्षित उत्पादन की कल्पना करना बेकार ही होगा। यूरिया की टाप ड्रेसिंग खरपतवार निकालने के बाद सिंचाई करने के उपरांत ही की जाये तो अधिक लाभ होगा। असिंचित गेहूं में 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव सभी कृषक करें तो असिंचित क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। तो आईये कृषि की छोटी-मोटी तकनीकी का अंगीकरण करके शासन द्वारा उठाये गये क्रांतिकारी कदम को सफल बनायें और प्रगति के पथ पर अग्रसर हो जाएं।