Saturday, July 27, 2024
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आलू बुआई की उन्नत तकनीक

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Khetibadi


जनवरी-फरवरी में जब तापमान कम रहता है तथा दिन छोटे होता है तब आलू की फसल 60 से 120 दिनों की होती है इस क्षेत्र में सामान्य आलू फसल रोगों से मुक्त होती है। पिछेती अंगमारी इस क्षेत्र में नहीं पायी जाती।

बुआई की विधि : आलू को पौध से पौध 20 सेमी तथा पंक्ति से पंक्ति 60 सेमी की दूरी से लगाया जाता है। 25 से 30 ग्राम का कंद लगाया जाता है। बुआई के लिए अच्छी अंकुरण का बीज 30-35 क्वि./हे. के हिसाब से बीज लगता है तथा मिट्टी की ढकाई ट्रैक्टर से की जाती है बहुत से किसानों के यहां मिट्टी ढकाई डोरा से की
जाती है।

बुआई का समय : आलू की बुआई सितम्बर से नवम्बर में की जाती है। इस फसल को अगेती फसल के रूप में इसे मुख्य फसल के रूप में लगाकर पूर्ण परिवक्ता में खुदाई करके इसका परिवहन तथा शीत भंडारण (कोल्ड स्टोरेज) किया जा सकता है। तथा अगेती फसल की तुलना में अधिक उत्पादन लिया जा सकता है।

खरपतवार नियंत्रण : आलू के 5 प्रतिशत अंकुरण होने पर पैराक्वाट (प्रेमेजोन) 2.5 लीटर पानी हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें एवं जब फसल 30 दिन की अवस्था की हो तब 20 किग्रा नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से डालकर मिट्टी चढ़ाने का कार्य करें तत्पश्चात
सिंचाई करें।

उर्वरक : उर्वरक की मात्रा मृदा की उर्वरकता पर निर्भर करती है। आलू की फसल के लिए उर्वरक 100,100,100 एनपीके. कि./हे. एवं 20 टन/हे. अच्छी तरह से सड़ी गोबर खाद (एफवायएम) आलू लगाने के पहले खेत में डालें। बुआई के 25-30 दिन बाद मिट्टी चढ़ाते समय 20 किग्रा नत्रजन/हे. टॉप ड्रेसिंग के रूप में दें। सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव करने से आलू की उपज 15-18त्न तक वृद्धि होती है।

सिंचाई : सिंचाई की संख्या मृदा के प्रकार पर निर्भर करती है यदि बुआई के पहले सिंचाई नहीं गई है तो बुआई के तुरंत बाद पानी देना आवश्यक है। पहली सिंचाई हल्की होनी चाहिए तथा दूसरी सिंचाई के एक हफ्ते के अंतराल में करें तथा इसके बाद 7-10 दिनों के अंतराल पर आवश्यकता के आधार पर सिंचाई करें। आलू की खुदाई के 10 से 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें। समान्यत: 7-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है।

पौध संरक्षण : आलू फसल बोते समय थिमेट 10 जी दानेदार दवा 15 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलायें। जिससे फसल को भूमिगत कीटों एवं रस सूसक कीटों से 30-35 दिनों तक बचाया जा सकता है। खड़ी फसल अवस्था में अगेती, पिछेती, अंगमारी एवं रस चूसक की रोकथाम हेतु डायथेन एम 45 दवा 2.5 ग्राम एवं मेटासिस्टॉक्स या रोगोर दवा 1.25 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर 10-15 दिनों के अतराल में छिड़काव करें।


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