Wednesday, January 15, 2025
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कर्ज से विकास बदहाली की अर्थव्यवस्था

Ravivani 29


विवेकानंद माथने |

मौजूदा संसद के संभवत: आखिरी सत्र में पेश किए गए अंतरिम बजट ने और कुछ किया हो या नहीं, मौजूदा सरकार की संभावित वापसी पर उसकी भावी योजनाओं को उजागर जरूर कर दिया है। मसलन किसानों की आय दोगुनी करने के बहु-प्रचारित वायदे या किसानों को ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’की गारंटी का इस बजट से गायब होना बताता है कि खेती-किसानी सरकारी प्राथमिकताओं में कितनी नीचे है।

केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में पेश किए गए ताजा अंतरिम बजट 2024-25 को देखें तो पता चलता है कि उसमें ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’(एमएसपी) की कोई गारंटी और किसान की आमदनी दुगनी करने के लिये कोई प्रावधान नहीं हैं। बजट में गांव, गरीब, किसान की लूट और अमीरों को लाभ जारी है। यह कर्ज लेकर कारपोरेट घरानों के लिये विकास करने, बेरोजगारी और महंगाई, आर्थिक विषमता बढ़ाने वाला बजट है। इस बजट ने जो दिशा तय की है, उससे स्पष्ट है कि आगे भी गांव, गरीब और किसान की लूट जारी रहेगी। 2024-25 का अंतरिम बजट कुल 47.66 लाख करोड़ रुपये का है जिसमें कृषि के लिए केवल 1.27 लाख करोड रुपये रखे गए हैं, जो कुल बजट का मात्र 2.65 प्रतिशत है। इसमें से प्रत्यक्ष योजनाओं पर बहुत कम राशि आवंटित की गई है। कृषि बजट पहले की तुलना में घटा दिया गया है। बजट में कृषि के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं है। किसानों की आमदनी दुगनी करने के लिए भी कोई उपाय नहीं किए गए हैं, लेकिन खेती को कारपोरेट घरानों को सौंपने की प्रक्रिया जारी है।

इस बजट में गांव, गरीब, किसान और कृषि के लिये बडा ‘शून्य’ दिया गया है। देश में सबसे अधिक रोजगार देने की क्षमता रखने वाले कृषि क्षेत्र की सरकार द्वारा अनदेखी कृषि का संकट बढ़ाएगी। बेरोजगारी की समस्या और भयंकर होगी। ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ में बीमा कंपनियों को केवल मुआवजा बांटने के लिए गत सात साल में 60 हजार करोड़ रुपये मिले हैं। उसके लिए करोड़ों किसानों से बीमा किश्त वसूली जाती है।

इस साल भी कृषि और किसानों के लिए बजट की राशि बनाए रखी गई या उसे कम किया गया है। ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ के लिए 14 हजार 600 करोड़ रुपये, कृषि बजट के अलावा ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना’ के लिए 60 हजार करोड़ रुपये, यूरिया सब्सिडी के लिए 1 लाख 19 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने और गोपालन के लिए बजट में कोई प्रावधान नहीं है।

अंतरिम बजट 2024-25 के अनुसार उसके प्रावधानों को हासिल करने के लिए इस वर्ष भी 16.85 लाख करोड़ रुपये कर्ज लेना होगा। 2014-15 से 2024-25 तक, गत दस साल का कुल बजट 326.64 लाख करोड़ का है। उसमें लगभग 95 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लिया गया है, जो दस साल के कुल बजट का 29 प्रतिशत है। यानि देश का विकास कर्ज पर किया जा रहा है और इस कर्ज पर केवल ब्याज भुगतान के लिए 11.90 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इस समय देश पर कुल 205 लाख करोड़ का कर्ज है, उसमें और भी बढ़ोत्तरी होगी।

बजट पूर्ति के लिए सरकार को ‘कारपोरेट टैक्स’ में बढ़ोत्तरी करनी चाहिए थी, लेकिन नहीं की गई है। पहले से ही 30 प्रतिशत से 22 प्रतिशत तक कम किए गए ‘कारपोरेट टैक्स’को बनाये रखा गया है। बजट पूर्ति के लिए ‘कारपोरेट टैक्स’ और दूसरे रास्ते ढूंढने की बजाय सरकार लोगों की जेब से पैसा निकालकर, कर्ज लेकर काम कर रही है। इससे देश पर लगातार कर्ज बढता जा रहा है।

‘आरबीआई’(रिजर्व बेंक आॅफ इंडिया) के द्वारा ‘रेपो रेट’ में 2020 से अब तक 2.5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की गई है और उसी अनुपात में ब्याज दर भी बढ़ाए गए हैं, जिससे ‘ईएमआई’(‘इक्वेटेड मंथली इंस्टॉलमेंट’) बढ़ने के साथ ही जरूरतमंद विद्यार्थियों को शिक्षा ऋण पर 18 हजार करोड़ रुपये और सभी प्रकार के ऋण पर कर्जदारों को लगभग 9 लाख करोड़ रुपये ज्यादा देने होंगे।

‘जीएसटी’ यानि वस्तु एवं सेवा कर का हर साल बढ़ता कलेक्शन यही साबित करता है कि इसका दायरा बढ़ाने के साथ-साथ आम लोगों की जेब से पैसा निकालने के कारण ‘जीएसटी’ कलेक्शन बढ रहा है। इससे स्पष्ट है कि बजट पूर्ति के लिए सरकार लोगों की जेब से पैसा निकालकर और कर्ज लेकर काम कर रही है। कर्ज से जो विकास हो रहा है, उसकी कीमत लोगों को चुकानी पड़ रही है। इससे लोगों की लूट और देश पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। कर्ज पर विकास, लूट की गारंटी होती है।

रेल्वे मंत्रालय द्वारा सामान्य और स्लीपर के डिब्बे कम करके यात्रियों को एसी के डिब्बे में यात्रा करने के लिए बाध्य किया जा रहा है, जिसके कारण एक अनुमान के अनुसार यात्रियों को हर साल लगभग 15 हजार करोड़ रुपये ज्यादा देने होंगे।
इस बजट में पुरानी योजनाओं के अलावा रेल-गलियारे, रेल-समुद्र मार्ग को जोड़ना, ‘वंदे भारत’ की तरह 40 हजार डिब्बों का निर्माण, मंडियों को ‘ई-नाम’ से जोड़ना, धार्मिक पर्यटन आदि योजनाओं का प्रमुखता से उल्लेख किया गया है। इस तरह आम जनता के लिए नहीं, बल्कि कारपोरेट घरानों के लिए शोषण के रास्ते बनाए जा रहे हैं।

सरकार की गलत विकास नीति के कारण प्राकृतिक संसाधनों का दोहन बढ़ेगा जिससे किसान और आदिवासी समाज की मुश्किलें और बढ़ेंगी। पवित्र धार्मिक स्थानों को पर्यटन स्थलों में तब्दील करने की सोच भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है। सरकारी शोषण के विरुद्ध लोगों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। उसे रोकने के लिए उनसे लूटी गई राशि का कुछ हिस्सा लोक-कल्याणकारी योजना के रूप में लोगों को वापस दिया जा रहा है, लेकिन इससे मिलने वाली मदद लोगों की लूट की तुलना में कुछ भी नहीं है। लोगों को जो दिया जा रहा है, उससे कई गुना ज्यादा उनसे लूटा जा रहा है। सरकार कर्ज लेकर जो विकास काम कर रही है, उसमें गांव, गरीब और किसान के लिए कोई जगह नहीं है, बल्कि वह कारपोरेट कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए काम कर रही है। इसके लिए अलग से सबूत देने की जरूरत नहीं है। यह दिख रहा है कि देश में अमीरों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अमीर, अमीर बनते जा रहे हैं और गरीबी बढ़ती ही जा रही है।


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