- दौरे के दौरान आॅफिस में रखी फाइलों पर जमी थी धूल, अधिकारियों को लगाई थी फटकार
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: कमिश्नर सुरेन्द्र कुमार के दौरे से आखिर कितना बदला आरटीओ आॅफिस? एक दिन पहले ही कमिश्नर ने औचक आरटीओ आॅफिस का दौरा किया था। फाइलों पर धूल जमी थी। इसको लेकर आरटीओ आॅफिस के अधिकारियों को फटकार भी लगी। यह तथ्य भी सामने आया कि दलाल लोगों से घूस लेकर फॉर्म तैयार करते हैं, जिसके बाद ही काम होता है। ‘दलाल राज’ क्या खत्म कर पाएंगे कमिश्नर?
यह बड़ा सवाल है। एक दिन पहले कमिश्नर ने दौरा किया, लेकिन दूसरे दिन भी हालात वैसे ही थे, जैसे यहां रोजमर्रा में होते हैं। कमिश्नर के दौरे के बाद माना जा रहा था कि कुछ व्यवस्था में सुधार होगा। ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने आने वालों को भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। बुधवार को भी सबकुछ वैसे ही चला, जैसे पहले चलता रहा हैं।
दलाल के माध्यम से ही ड्राइविंग लाइसेंस बन रहे थे। टेस्ट में फेल करने की धमकी दी जाती हैं, क्योंकि दलाल के फॉर्म में कमी होने के बावजूद पास कर दिया जाता हैं। टेस्ट तो होता हैं, लेकिन कागजी खानापूर्ति करने के लिए। इस तरह से ड्राइविंग लाइसेंस को लेकर आरटीओ में भ्रष्टाचार चरम पर हैं। इस पर अंकुश कमिश्नर का दौरा भी नहीं लगा सका। आखिर कमिश्नर के दौरे से भी कोई फर्क आरटीओ के दलाल राज पर नहीं पड़ा।
महत्वपूर्ण बात यह है कि जब दलालों को यहां दुकान सजाने की कोई अनुमति नहीं है तो फिर आरटीओ आॅफिस के बहार बड़ी तादाद में दलाल दुकान (आॅफिस) खोले क्यों बैठे हैं? इनको बंद क्यों नहीं कराया जाता है। इन दुकानों के मानचित्र आवास विकास परिषद से भी स्वीकृत नहीं हैं, लेकिन इसके बावजूद इन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है?
आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं? जब दुकान का मानचित्र स्वीकृत नहीं, दलाली करने की सरकार से कोई अनुमति नहीं, फिर भी इनको आरटीओ आॅफिस के समीप दुकान खोलकर बैठने की अनुमति किसने दी हैं? क्या कभी इसकी जांच पड़ताल प्रशासन ने कराई हैं। आरटीओ आॅफिस के अधिकारियों का तो यहीं कहना है कि आरटीओ आॅफिस के भीतर की उनकी जिम्मेदारी हैं, लेकिन आरटीओ आॅफिस के बाहर क्या हो रहा हैं? इसको वह नहीं देखते।
फाइलें क्यों नहीं हो रहीं आॅनलाइन
आरटीओ आॅफिस में फाइलों के ढेर लगे हैं। पूरा सिस्टम आॅनलाइन हो गया, लेकिन पुरानी फाइलों का रिकॉर्ड आॅनलाइन क्यों नहीं किया जा रहा है। प्रत्येक विभाग की फाइलों का रिकॉर्ड आॅन लाइन किया जा रहा है, मगर इस दिशा में आरटीओ में क्यों प्रयास नहीं किये जा रहे हैं। यहां फाइलों के ढेर लगे हैं। फाइल सड़-गल रही है। इनका जिम्मेदार कौन हैं? इनकी किसी तरह की देख-रेख नहीं हो पाती है।
पहले फिटनेस 100 वाहनों का होता था, अब 40 का क्यों?
वाहनों के फिटनेस को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। पहले आरटीओ आॅफिस में आरआई 100 वाहनों के प्रतिदिन फिटनेस करते थे, लेकिन वर्तमान में फिटनेस होने वाले वाहनों की संख्या घटाकर 40 कर दी गई हैं? आखिर यह संख्या क्यों घटाई हैं।
इसके शासन स्तर से कोई आदेश भी नहीं है कि प्रतिदिन 40 वाहनों के ही फिटनेस होंगे। इसको लेकर आरटीओ आॅफिस के स्तर से ही यह सब चल रहा है। फिटनेस को लेकर लोग परेशान हैं। इसकी शिकायत परिवहन उपायुक्त से भी की गई, मगर फिलहाल कोई सुनवाई नहीं हुई है।