Friday, July 4, 2025
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परीक्षा तनाव पर आत्मचिंतन की जरूरत

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एसपी शर्मा |


तेजी से गुजरते समय और छात्र-जीवन की अहमियत को पहचानते हुए और मन को वश में करते हुए यदि सेल्फ-स्टडी के माध्यम से अपने और पेरेंट्स के सपनों को साकार करने की पूरी सच्चाई और लगन से कोशिश की जाए तो परीक्षा एक तनाव नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन यात्रा का एक प्रतीक्षित और सुखद पड़ाव बन जाता है।

जब भी परीक्षा के तनाव के बारे में चर्चा होती है तो एक साथ कई विचार तेज आंधी की तरह बड़ी तेजी से जेहन में गुजरता-सा चला जाता है। एक विचित्र-सा डर, भ्रम, परेशानी, अफरातफरी, दुविधा, उदासी, चिड़चिड़ापन और न जाने कितनी मानसिक और भावनात्मक अवस्थाओं को अपने में समेटे हुए परीक्षा के तनाव विद्यार्थियों के जीवन के लिए किसी दु:स्वप्न से कम डरावना नहीं होता है।

दुनिया भर के मनोविश्लेषक और शिक्षाविद् परीक्षा के तनाव के समाधान के लिए कई प्रकार के टिप्स और ट्रिक्स की अनुशंसा करते आ रहे हैं। सब की अपनी-अपनी राय होती है और अपना-अपना नजरिया। कोई अपने अनुभव के आधार पर परीक्षा के तनाव के शमन के लिए उपाय बताता है तो कोई अपने किताबी ज्ञान के आधार पर तरकीबें। लेकिन यहां पर आत्मचिंतन का एक प्रश्न यह उठ खड़ा होता है कि आखिर एक छात्र परीक्षा के तनाव का शिकार ही क्यों होता है?

संजीदगी से विचार के लिए यह विषय भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि आखिर वो कौन-सी परिस्थितियां हैं, जो किसी छात्र के मानसिक रूप से उद्वेलन के लिए जिम्मेदार होती हैं?

1990 के आर्थिक सुधारों के उत्तर संक्रमण काल में जबकि पूरी दुनिया लिब्रलाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन के अभूतपूर्व परिवर्तनों के दौर से गुजर रही है तो इस सच को झुठलाना आसान नहीं होगा कि इसके कारण मानव जीवन के सोच के ढंग और जीवन-शैली में भी बेशुमार अप्रत्याशित तब्दीलियां आई हैं। तिस पर जीवन में सूचना तकनीक की क्रांति के दखल ने तो आग में घी सरीखा काम किया है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के विभिन्न उपादानों के रूप में फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्विटर और कई अनेक चमत्कारी और मन लुभावने खोजों से जीवन के संस्कार, मानवीय मूल्य और नैतिक मयार्दाएं भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाई हैं। इन चाहे-अनचाहे परिवर्तनों के कारण कुल मिलाकर हर व्यक्ति के जीवन में रंगीनियां आई हैं और अंतत: हम अपने गंतव्य और लक्ष्य प्राप्ति की राह से भटक गये हैं।

इतना ही नहीं, उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर रहे सोशल नेटवर्किंग साइट्स की जादुई दुनिया से एक किशोर छात्र-जीवन भी महफूज नहीं रह पाया है और परिणामस्वरूप उसके मन में अजीबोगरीब भटकाव आया है। कुदरती जिस्मानी परिवर्तन के साथ मन की दशा और दिशा भी बुरी तरह से प्रदूषित और प्रभावित हुई है। इस सत्य से कदाचित ही कोई इनकार कर पाए कि बदले समय की अनिवार्यता के साथ हाल के दशकों में विद्यार्थियों के स्कूल बैग्स का वजन बढ़ा है। कोर्स और कक्षाओं के पाठ्यक्रम जटिल हुए हैं, और इस सब ने विद्यार्थियों के मानसिक सुकून छीने हैं। परिणामस्वरूप बच्चों को इन समस्याओं से मुक्त करने के लिए टेक्स्ट बुक्स की संख्या कम करने और पाठ्यक्रम को घटाने की दलीलों से शिक्षा बाजार गर्म है।

यहां पर आत्म-मीमांसा का एक महती प्रश्न यह उठ खड़ा होता है कि क्या महज स्कूल बैग्स का भार कम कर देने से या फिर करिकुलम का स्टैंडर्ड डाउन कर देने से छात्रों को परीक्षा के तनाव से महफूज रखा जा सकता है?
छात्र जीवन में स्वाध्याय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे एक छात्र कठिन मेहनत के बल पर खुद में अन्तर्निहित कमियों की भरपाई करता है और एकलव्य की तरह अपनी विधा में महारथ हासिल कर लेता है। लेकिन दुर्भाग्यवश पिछले दो-तीन दशकों में छात्र-जीवन के स्व-निर्माण के इस रामबाण में काफी क्षरण आया है। छात्रों के द्वारा घंटों वाट्सएप पर अपने दोस्तों के साथ चैटिंग करने और यू-ट्यूब पर वीडियो देखने में जिस बहुमूल्य समय की बरबादी की जाती है, आज उस पर गहनता से चिंतन की दरकार है।

प्राय: ऐसा माना जाता है कि यदि आप किसी कार्य के संपादन के लिए योजना बनाने में असफल रहते हैं तो आप असफल होने की योजना बना रहे होते हैं। टास्क की विशालता को ध्यान में रखते हुए योजनाबद्ध तरीके से कामयाबी पाने की व्यूहरचना के अभाव में मन में चिंता फिर निराशा और अंतत: तनाव उत्पन्न होता है। अनियोजित और अव्यवस्थित जीवन शैली और बाहरी दुनिया से अत्यधिक एक्सपोजर के कारण मन-भटकाव का जो सिलसिला शुरू होता है वह फिर अंत में निराशा का कारण बन जाता है। सच पूछें तो परीक्षा के बारे में जब छात्रों की नींद खुलती है तो तब तक पीछे जाकर चीजों को फिर से सहजेने और समेटने के लिए काफी देर हो चुकी होती है। तिस पर पेरेंट्स के द्वारा अपने बच्चों से जमीनी सच्चाई से परे अव्यावहारिक उम्मीदें रखने से भी मन एकाएक व्याकुल हो उठता है जिसकी परिणति हताशा, अवसाद और आत्महत्या में होती है।

लिहाजा परीक्षा तनाव को अपने जीवन से दूर रखने के लिए छात्रों के जीवन शैली में अहम परिवर्तन की दरकार है। जीवन में इसके लिए एक लक्ष्य निर्धारित करके उसका शिद्दत से पीछा करने की जरूरत है। करत-करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान के आधार पर निरंतर अध्ययन करने और नए पाठों को सीखने की आदत का विकास करना होगा। मोबाइल फोन और टेलीविजन के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए मन पर कठोर नियंत्रण अति आवश्यक है। तेजी से गुजरते समय और छात्र-जीवन की अहमियत को पहचानते हुए और मन को वश में करते हुए यदि सेल्फ-स्टडी के माध्यम से अपने और पेरेंट्स के सपनों को साकार करने की पूरी सच्चाई और लगन से कोशिश की जाए तो परीक्षा एक तनाव नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन यात्रा का एक प्रतीक्षित और सुखद पड़ाव बन जाता है।

दुनिया भर के मनोवैज्ञानिकों का यह मानना है कि एक निश्चित मात्रा में एग्जाम एंग्जायटीज परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन के लिए अच्छा होता है, क्योंकि यह स्टूडेंट्स के लिए एक कैटेलिस्ट सरीखा कार्य करता है, मोटिवेशन का कार्य करता है। इसके साथ ही यह भी सर्वविदित सत्य है कि परीक्षा के प्रति चिंता और तनाव को समूल नष्ट नहीं किया जा सकता है। इसका केवल शमन किया जा सकता है, इसको केवल कंट्रोल किया जा सकता है ताकि यह स्टूडेंट्स की मानसिक स्थिति को बुरी तरह से प्रभावित नहीं कर पाए।

इस सत्य से इनकार करना आसान नहीं है कि विद्यार्थी जीवन में कठिन परिश्रम एग्जाम स्ट्रेस के लिए एंटीडोट का कार्य करता है। सूचना क्रांति के मौजूदा दौर में जहां इंटरनेट के कारण सूचनाओं का समन्दर आसानी से उपलब्ध हैं वहीं परीक्षा में बेहतर परफॉर्म करने के लिए कठिन मेहनत की अनिवार्यता और इसका महत्व धीरे-धीरे लुप्तप्राय होता जा रहा है। स्टूडेंट्स में बुक्स पढ़ने की बजाय फेसबुक पढ़ने के बढ़ते ट्रेंड ने कंसंट्रेशन और मेमरी पॉवर को भी काफी बुरी तरह से प्रभावित किया है।

साइंस और टेक्नोलॉजी के हैरतअंगेज चमत्कारों के इक्कीसवीं सदी के आधुनिक युग में जहां हम चांद पर मानव की बस्तियां बनाने की तैयारी कर रहे हैं और दूसरे अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं की शिद्दत से तलाश कर रहे हैं तो वैसी दशा में विद्यार्थियों के द्वारा सामान्य रूप से एग्जाम स्ट्रेस को झेल नहीं पाने की असमर्थता हमारे जेहन में कई प्रश्नों को जन्म देता है जिनके उत्तर के गर्भ में राष्ट्र के भविष्य का भ्रूण छुपा हुआ है।


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