बुद्ध भगवान एक गांव में उपदेश दे रहे थे। उन्होंने कहा कि हर किसी को धरती माता की तरह सहनशील तथा क्षमाशील होना चाहिए। क्रोध ऐसी आग है, जिसमें क्रोध करनेवाला दूसरों को जलाएगा तथा खुद भी जल जाएगा। वहां स्वभाव से ही अतिक्रोधी एक ऐसा व्यक्ति भी बैठा हुआ था, जिसे ये सारी बातें बेतुकी लग रही थीं। अचानक ही आग- बबूला होकर बोलने लगा, तुम पाखंडी हो। बड़ी-बड़ी बातें करना यही तुम्हारा काम। है। बुद्ध शांत रहे। अगले दिन जब उस व्यक्ति का क्रोध शांत हुआ तो वह अपने बुरे व्यवहार के कारण पछतावे की आग में जलने लगा और वह उन्हें ढूंढते हुए उसी स्थान पर पहुंचा, पर बुद्ध कहां मिलते, वह तो अपने अन्य गांव निकल चुके थे। व्यक्ति बुद्ध को ढूंढता हुआ वहां पहुंच गया, जहां बुद्ध प्रवचन दे रहे थे। उन्हें देखते ही वह उनके चरणो में गिर पड़ा और बोला, मुझे क्षमा कीजिए प्रभु! बुद्ध ने पूछा : कौन हो भाई? क्यों क्षमा मांग रहे हो? उसने कहा : क्या आप भूल गए? मैं वही हूं, जिसने कल आपके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था। मैं क्षमायाचना करने आया हूं। भगवान बुद्ध ने प्रेमपूर्वक कहा : बीता हुआ कल तो मैं वहीं छोड़कर आया गया और तुम अभी भी वहीं अटके हुए हो। तुम्हें अपनी गलती का आभास हो गया, तुम निर्मल हो चुके हो; अब तुम आज में प्रवेश करो। बुरी बातें तथा बुरी घटनाएं याद करते रहने से वर्तमान और भविष्य दोनों बिगड़ते जाते हैं। बीते हुए कल के कारण आज को मत बिगाड़ो। उस व्यक्ति का सारा बोझ उतर गया। उसने भगवान बुद्ध के चरणों में पड़कर क्रोध त्याग का तथा क्षमाशीलता का संकल्प लिया; बुद्ध ने उसके मस्तिष्क पर आशीष का हाथ रखा। उस दिन से उसमें परिवर्तन आ गया और उसके जीवन में सत्य, प्रेम व करुणा की धारा बहने लगी।