Thursday, July 3, 2025
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अमृत वाणी: चार महीने!

पुराने जमाने में राजा लोग यदा-कदा अपने दरबारियों की बुद्धि परीक्षा करने के लिए तरह-तरह के प्रश्न पूछा करते थे। कई बार आसान सवाल भी उलझा देता था। एक बार एक राजा ने अपने दरबारियों से पूछा, ‘आप लोग बताएं कि अगर बारह में से चार निकल गए तो कितने बचे?’ एक सभासद ने कहा, ‘महाराज! हर कोई जानता है कि बारह में से चार निकाल दिए जाएं तो आठ ही बचते हैं।’ सारे सभासदों ने एकमत से उसकी बात का समर्थन किया। किंतु वृद्ध प्रधानमंत्री चुप रहा। राजा ने उससे पूछा, बोले, ‘मंत्रिवर! आपने इस उत्तर का समर्थन नहीं किया। आपका इनसे मतभेद है क्या?’ मंत्री ने कहा, ‘राजन! यह जरूरी नहीं कि किसी प्रश्न पर सब एक राय हों।‘ ‘तो आप क्या कहना चाहेंगे।’ बारह में से अगर चार निकल गए तो शून्य के सिवा कुछ नहीं बचता।’ मंत्रीजी ने बड़ी गंभीरता से कहा। इसके साथ ही सारे सभासद मुस्करा दिए। किसी ने दबी जबान से कहा, ‘प्रधानमंत्री पर उम्र का असर होने लगा है। गणित की बात अब कम समझ में आती है।’ राजा ने कहा, ‘ऐसा कैसे?’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘महाराज! अगर बरसात के चार महीने निकाल दिए जाएं तो कुछ नहीं बचता। बरसात के अभाव में खेती नहीं हो सकती है। ऐसे में न पशुधन बचेगा, न वनस्पतियां बचेंगी, न व्यापार चल सकेगा।’ राजा प्रधानमंत्री के उत्तर से संतुष्ट हो गया। हम भी चार महीनों का उपयोग करें। आठ को छोड़ें। जीवन के जो चार महीने हैं, साधना में उनका पूरा उपयोग करें।
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