Monday, July 1, 2024
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आपके दरबार में एंकर और सर

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RAVIWANI


एंकर : बहुत बहुत स्वागत है आप का हमारे इस विशेष प्रोग्राम ‘आप के दरबार में’!
(सर हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हैं।)
एंकर: सीधे मुद्दे पर आते हैं!
सर : बिल्कुल!

एंकर : अभी आप अपनी सबसे बड़ी सफलता क्या मानते हैं?
सर: आप तो खुद ही देख रहे हैं… मानसून को हम सही समय पर लाने में कामयाब हुए…
(यह कहने के बाद सर मुस्कुराते हैं और एंकर खुशी से फूला नहीं समाता है)

एंकर : क्या वजह रही जो इतने वर्षों में (सत्तर साल आप खुद जोड़ लेंगे! रटा दिया गया है) नहीं किया जा सका वो अब हो गया?
सर: हार्ड वर्क…हार्ड वर्क… हार्ड वर्क…और कुछ नहीं…
(एंकर ने सर को ऐसे देखा जैसे कि सर के मुख से अमृत की बूंदें टपकीं हों!)

एंकर: आप थकते नहीं हैं…!!!
सर: थकते तो आप भी नहीं!
(सर, एंकर को देखकर मुस्कुराते हैं। एंकर निहाल हो जाता है। सर फिर बोलते हैं)
सर: देश सेवा में थकना मना है!

(एंकर किसी होनहार स्कूली बच्चे की तरह अपना सिर हिलाता है।)
एंकर: इतनी ऊर्जा कहां से लाते हैं?
सर: काम करने से ऊर्जा मिलती है। (कुछ देर के लिए रुकते हैं फिर) जैसे आपको बोलने से आती है। उसी तरह मुझे काम करने से आती है।

(एंकर ऐसी भंगिमा बनाता है कि उसके हाथ जैसे अलादीन का चराग लग गया हो।)
एंकर: आगे की क्या योजना है?
सर: अभी तो चुनाव दूर हैं…
(सर एंकर को ऐसे देखते हैं, जैसे वह कोई कार्टून हो और एंकर उनको देखते हुए हंसता है।)

एंकर : मान गए सर आपके सेन्स आॅफ ह्यूमर को! (यह कहते हुए वह ऐसे अभिनय करता है कि हंसते हुए उसके प्राण पखेरू आॅलमोस्ट उड़ रहे हैं!)
सर: नहीं …मैं गम्भीर हूं…(वाकई वह गम्भीर थे)

एंकर : सर आप सीरियस हो कर जोक कर लेते हैं… कमाल है!
(लेकिन एंकर इस बार हंसता नहीं है, बस मुस्कुरा कर रह जाता है। वह समझता है कि हंसने का उस का कोटा अब पूरा हो चुका है।)

एंकर : मानसून आप समय पर ले आए हैं, तो…(एंकर सवाल सोचता है) यह तो सच है इतिहास में यह पहली बार हुआ है…(एंकर मन में सवाल बनाता है।) सारी दुनिया इस बात की तारीफ कर रही कि भारत समय पर मानसून ले आया..(

एंकर अभी भी सवाल नहीं बना पाया) महामानसून जो है…
सर : मानसून तो हम ले आए, पर अब और सतर्कता की आवश्यकता है। (उन्होंने स्थिति भांप ली।)
(सतर्कता का नाम सुनते ही एंकर अपना बदन कड़ा कर लेता है।)

एंकर : कैसी सतर्कता ?
सर: हमें देखना पड़ेगा कि मानसून पड़ोसी देश में चला न जाए!
(पड़ोसी देश सुनते ही एंकर कुर्सी से उछल पड़ता है। उसका मन करता है कि सर से कहे कि अब आप जाईये। अब हमें किसी की जरूरत नहीं! यहां तक कि आप की भी नहीं…! पर मन मसोस के रह जाता है।)

एंकर : यह एक बड़ी समस्या है! (अपने भाव छुपाते हुए)
सर : हां है तो… पर जैसे मानसून वाली समस्या हल कर ली, वैसे ही यह वाली भी कर लेंगे!
एंकर : हमारे दर्शकों को कोई संदेश देना चाहेंगे!
सर : (मुस्कुराते हुए) (लोग इसको कैसे झेलते हैं! सर मन में सोचते हैं) यही कि मानसून तो हम समय पर ले आए, मगर आप मानसून के भरोसे न बैठे रहें… आत्मनिर्भर बनें!

एंकर : वाह सर क्या बात कह दी…आत्मनिर्भर बनें! जहां तक मुझे याद आता है, इस से पहले यह शब्द राजनीति में किसी ने इस्तेमाल ही नहीं किया है। (सर मुस्कुरा कर उठ जाते हैं।)
(सर के जाने के बाद)

एंकर : इस बार पड़ोसी मुल्क (सोच समझ कर देश नहीं बोलता) खून के आंसू रोयेगा। वहां बारिश तो होगी, पर इस बार न होगा मानसून… कटोरा ले कर मांगेगा मानसून… हाथ फैला के मांगेगा मानसून… खटिया ले के मांगेगा मानसून… चद्दर बिछा के मांगेगा मानसून… पर नहीं मिलेगा उसे मानसून! (एंकर का मन करता है कि वह जोरदार एक नारा लगा दे!)

तो आप देख रहे थे कोरोना को लेकर सर जी का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू सिर्फ आपके अपने चैनल पर। बाकी की खबरों के लिए बने रहिये हमारे साथ! नमस्कार…!

अनूप मणि त्रिपाठी


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