- भाजपा-रालोद के गठबंधन की औपचारिक घोषणा का इंतजार
- पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में रालोद का खासा दबदबा
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: पिछले तीन माह से सियासी बिसात बिछाई जा रही थी। सपा-रालोद के बीच गठबंधन का ऐलान भी कर दिया गया था, लेकिन सपा-रालोद के बीच सीटों को लेकर अचानक ‘रार’ हुई। अचानक जयंत चौधरी की भाजपा से नजदीकिया बन गई। रालोद सुप्रीमो जयंत चौधरी के पिता चौधरी अजित सिंह की 12 फरवरी को जयंती हैं। इस दिन रालोद और भाजपा के बीच गठबंधन का ऐलान की औपचारिक घोषणा हो सकती हैं।
वैसे तो पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा के साथ ही यह भी तय माना जा रहा है कि रालोद-भाजपा के बीच गठबंधन की गांठ लग गई हैं। गठबंधन का स्वरूप क्या होगा? इसकी औपचारिकता करना बाकी हैं। दरअसल, पश्चिमी यूपी की 27 ऐसी सीटें हैं, जिसमें जाट वोटर अहम भूमिका रखते हैं। भाजपा को 27 सीटों पर मजबूती मिलना भी लाजिमी हैं। क्योंकि भाजपा में किसान आंदोलन के बाद धुक्क-धुक्क हो रही थी।
क्योंकि किसान आंदोलन के चलते ही रालोद भी मजबूत स्थिति में पहुंची हैं। अब भाजपा पश्चिमी यूपी में कोई रिस्क लेना नहीं चाहती हैं। यही वजह है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने रालोद सुप्रीमो जयंत चौधरी से नजदीकियां बढ़ाई और गठबंधन की गांठ लगने की संभावनाएं बन गई। छपरौली (बागपत) में रालोद का कार्यक्रम था। उस कार्यक्रम को फिलहाल जयंत चौधरी ने रद्द कर दिया हैं। अब फिर से वहां कार्यक्रम होगा।
उसके लिए तिथि अभी घोषित नहीं की हैं, लेकिन इतना अवश्य है कि भाजपा-रालोद के गठबंधन के ऐलान के बाद ही आगे के कार्यक्रम तय होंगे। रालोद की गठबंधन में क्या स्थिति होगी? कितनी सीट मिलेगी और कौन-कौन सी सीट मिलेंगे? ये भी क्लीयर होना अभी बाकी हैं। हालांकि पश्चिमी यूपी के राजनीतिक समीकरण गड़बड़ा गए हैं।
रालोद की स्थिति साफ होने के बाद यह तो तय है कि सपा, कांग्रेस और बसपा क्या रणनीति अपनाती है, उसके बाद ही कुछ कहा जा सकता हैं, अन्यथा रालोद से गठबंधन के बाद पश्चिमी यूपी में भाजपा मजबूत स्थिति में होगी। इसमें दो राय नहीं हैं।
अलग होकर सपा के लिए खड़ी होंगी मुश्किलें
राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ना समाजवादी पार्टी के लिए मुफीद सौदा रहा है। इसका सबसे बड़ा लाभ सपा को यह मिलता रहा है कि मुस्लिम व यादव वोट के साथ-साथ जाट बहुल वोट भी उसकी झोली में आ रहे थे, लेकिन अब अलग होने से राष्ट्रीय लोकदल तो फायदे में ही रहेगा, जबकि समाजवादी पार्टी के समक्ष सिर्फ मुश्किलें ही खड़ी होंगी। इसकी सबसे बड़ी वजह पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में रालोद का खासा दबदबा होना है।
राष्ट्रीय लोकदल के सुप्रीमो जयंत चौधरी के पाला बदलकर एनडीए में जाने से वेस्ट यूपी में सपा के लिए समीकरण मुश्किल होंगे। खासकर जाट बहुल सीटों पर पार्टी को नए सिरे से मशक्कत करनी पड़ेगी। वर्ष 2018 के कैराना लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा-रालोद साथ आए और संयुक्त रूप से जीत हासिल की थी। इसके बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अखिलेश ने सपा के कोटे से 2 सीटें रालोद को दी थीं, लेकिन खाता नहीं खुला।
अब बात करें वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव की तो इसमें रालोद के साथ-साथ समाजवादी पार्टी को भी साथ रहने का फायदा मिला था। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भी सपा और रालोद दोनों दल साथ थे। मेरठ, मुरादाबाद और सहारनपुर मंडल में खास तौर पर जाट-मुस्लिम समीकरण ने असर दिखाया और विपक्ष की सीटें बढ़ीं। वर्ष 2022 में भाजपा गठबंधन को यहां 40 सीटों पर सिमटना पड़ा हो गया और विपक्ष की सीटें बढ़कर 20 से 31 हो गईं।
जबकि 2017 में भाजपा ने इन मंडलों की 71 में से भाजपा ने 51 सीटें जीती थीं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि वेस्ट यूपी की लगभग 18 सीटें ऐसी हैं, जिन पर जाट वोटर असर डालते हैं। इसमें मेरठ और बागपत के साथ-साथ मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कैराना, बिजनौर, नगीना, संभल, अमरोहा, मुरादाबाद, अलीगढ़ आदि मुख्य हैं। इन सीटों पर मुस्लिम वोटरों की प्रभावी तादात है।
जबकि जाट भी यहां अपने दम पर प्रत्याशी जिताने का माद्दा रखते हैं। यहां जाट-मुस्लिम गठजोड़ संभावनाओं को मजबूत बनाता है। समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव अब तक इसलिए संतोष में थे कि उनको साफ नजर आ रहा था कि रालोद का साथ रहने से उसको जाट वोट बहुतायत संख्या में मिलेंगी। लेकिन रालोद का साथ खिसकने की स्थिति में उसके प्रत्याशियों को नये सिरे से मेहनत करनी होगी।
वेस्ट यूपी में सपा पर नहीं कोई जाट चेहरा
समाजवादी पार्टी के गठबंधन से अलग होने पर रालोद को तो कोई नुकसान नहीं होगा। लेकिन समाजवादी पार्टी को खासा नुकसान होगा। सबसे बड़ा नुकसान तो समाजवादी पार्टी को यही होगा कि उसके पास पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कोई ऐसा प्रमुख जाट चेहरा नहीं है। जिसकी बदौलत पार्टी उम्मीदवारों के प्रति जाटों का विश्वास समाजवादी पार्टी के प्रति जुड़ सके।