नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। इस बार यह पुण्यदायी व्रत 23 मई, शुक्रवार को मनाया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार, इस एकादशी का नाम ही इसके महत्व को दर्शाता है — ‘अपरा’ यानी अपार पुण्य देने वाली। पद्म पुराण के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। यह एकादशी अचला एकादशी, भद्रकाली एकादशी और जलक्रीड़ा एकादशी जैसे नामों से भी जानी जाती है। मान्यता है कि जो भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और भगवान श्रीहरि विष्णु का ध्यान करते हैं, उन्हें पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन के सभी दुखों का नाश होता है।
इस एकादशी से नष्ट होते हैं महापाप
धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि अपरा एकादशी का व्रत करने से ब्रह्महत्या, भूत योनि में जाना, किसी की निंदा करना, परस्त्रीगमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र बनाना या पढ़ना, और झूठा वैद्य अथवा ज्योतिष बनने जैसे सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत महान पुण्यदायक और कल्याणकारी माना गया है।
व्रत का पुण्य
माघ मास में मकर संक्रांति के दिन प्रयाग में स्नान करने, काशी में शिवरात्रि का व्रत रखने, गया में पिंडदान देने, सिंह राशि में गुरु होने पर गोदावरी स्नान, बदरिकाश्रम में भगवान केदारनाथ के दर्शन और सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में दान यज्ञ करने जितना पुण्य इस एकादशी के व्रत से प्राप्त होता है। इतना ही नहीं, व्रत करने और इसकी महिमा सुनने-पढ़ने से सहस्त्र गोदान जितना पुण्य भी प्राप्त होता है।
व्रत विधि
इस दिन भगवान विष्णु या उनके वामन रूप की पूजा की जाती है। पूजा में पंचामृत, रोली, मौली, गोपी चंदन, अक्षत, पीले फूल, मौसमी फल, मिष्ठान और दीप-धूप अर्पित करें। श्रीहरि को तुलसी पत्र और मंजरी भी अर्पण करें। ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’मंत्र का जाप और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ इस दिन विशेष पुण्य देने वाला होता है। इस दिन परनिंदा, छल-कपट, लोभ और द्वेष जैसी भावनाओं से दूर रहकर भक्ति भाव से भगवान का भजन करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर फिर स्वयं भोजन करें।
राजा महीध्वज को प्रेत योनि से मुक्ति
शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार, प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मपरायण राजा थे। उनके छोटे भाई वज्रध्वज ने ईर्ष्यावश उनकी हत्या कर दी और शव को जंगल में पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु के कारण राजा की आत्मा प्रेत योनि में चली गई और वह पीपल पर निवास करके मार्ग से आने-जाने वालों को पीड़ित करने लगा।
एक दिन धौम्य नामक ऋषि उस मार्ग से गुजरे। उन्होंने अपने तपोबल से प्रेत की स्थिति जान ली और उसे मुक्ति देने का निश्चय किया। उस समय ज्येष्ठ मास की अपरा एकादशी तिथि थी। ऋषि ने व्रत किया और प्राप्त पुण्य राजा को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा प्रेत योनि से मुक्त होकर दिव्य शरीर धारण करके स्वर्गलोक को प्राप्त हुए।