जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: जब ऊपरी कमाई का चस्का लग जाए और सवाल पापी पेट को हो तो फिर तनख्वाह में गुजारा करने की आदत खत्म हो जाती है। यही वजह है कि जो पूरे शहर के चौराहों पर टैफिक पुलिस बाहरी नंबर की गाड़ियों पर ऐसे झपट्टा मार रही है मानों किसी देश में बगैर वीजा अवैध रूप से दाखिल हो रहे हों। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति बेइंतहा सख्ती से लागू करने की बात कहें और इसके लिए प्रदेश सरकार हर संभव प्रयास भी कर रही है, लेकिन मेरठ में जब भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश बनाने के सीएम योगी के संकल्प की बात होती है तो यहां टैफिक पुलिस की झपट्टामारी उस संकल्प पर भारी पड़ती नजर आती है।
लखनऊ तक फजीहत के चलते चंद दिनों के ठहराव के बाद महानगर के चौराहों पर एक बार फिर चेकिंग के नाम पर ट्रैफिक पुलिस पहले पहले से बुरी अराजकता पर उतर आयी है। बाहरी नंबर की गाड़ियों के लिए मेरठ के चौराहों को पार करना लक्ष्मण रेखा सरीखा हो गया है। चौराहे की ओर बढ़ने वाली बाहरी नंबर की गाड़ियों को सिक्ससेंस की मानिंद दूर से ही पता चल जाता है। किसी स्वचालित मशीन की तर्ज पर पूरा स्टाफ चौराहे के ट्रेफिक को लावारिस छोड़कर उसकी घेराबंदी के लिए झपट पड़ता है, मानों बाहरी नंबर वाली इन गाड़ियों में कोई आतंकवादी जा रहा हो। जैसी ही गाड़ी साइड में लगती है, अधिकार ना होते हुए भी उसके सामने यमराज की तर्ज पर टैफिक का होमगार्ड जाकर खड़ा हो जाता है। न कोई पूछताछ और न ही कोई जानकारी, सबसे पहले होमगार्ड मोबाइल से गाड़ी का फोटो क्लिक करता है। इस दौरान यह होमगार्ड अपने एक्शन गाड़ी में बैठे लोगों को मेंटली टॉर्चर करने पर उतर आता है। ड्राइविंग साइड से भीतर हाथ डालकर गाड़ी बंद कर चाबी कब्जा लेता है और फिर कहता है कि बाहर आ जाओ सामने साहब बैठे हैं, बात कर लो।
(यहां जानकारी कर लें कि शासन से ट्रैफिक होमगार्ड को गाड़ियों की चेकिंग का अधिकार नहीं है) जिस शख्स का कभी पुलिस वालों से पाला न पड़ा हो। गाड़ी में उसकी फैमिली बैठी हो और होमगार्ड की हरकत देखकर सब बुरे तरह डरे हुए हों वो शख्स पूरे घटनाक्रम को मुसीबत जानकर वहां से निकलने के लिए वो सब करने पर मजबूर हो जाएगा, जिसके लिए चौराहों पर ट्रैफिक संभालने के नाम यह यह झपट्टा मारी करायी जा रही है। ऐसा नहीं कि इस झपट्टा मारी से ट्रैफिक पुलिस के अफसर अंजान हो। भले ही दावा कुछ भी किया जाए, यह बात गले नहीं उतरती कि एसपी टैÑफिक इन सब से अंजान होंगे। समाज के प्रति अपने दायित्वों का वहन करते हुए जनवाणी ने समय-समय पर चौराहों की इस खुली लूट के खिलाफ मुखर होकर प्रमुखता से समाचार भी प्रकाशित किए हैं।
पूर्व में इन समाचारों का तत्कालीन एडीजी ने संज्ञान भी लिया था। उसके बाद माना जा रहा था कि चौराहों पर ट्रैफिक के सुगम संचालन के नाम पर पुलिस की यह खुली लूटपाट पर विराम लग जाएगा। कुछ समय तो हालात काबू में नजर आए। चौराहों जिस बात के लिए टैफिक पुलिस की प्रदेश व्यापी किरकिरी हो चुकी है वो फिर से शुरू हो चुका है।
कारगुजारी की पर्देदारी को अनर्गल आरोप
ट्रैफिक पुलिस के अफसर चौराहों पर करायी जा रही इस खुली लूट को लेकर दामन पर लगे रहे दागों को धोने के लिए बजाय कार्रवाई कर हालात सुधारने के लिए अनर्गल आरोपों पर उतर आए। आरोप लगाने के बजाय बेहतर तो यह होता कि जिन बातों को लेकर आरोप लगाए गए उन पर कार्रवाई की जाती। मुकदमा लिखाते, लेकिन आरोप लगाकर भागने से दामन पर लगे दाग नहीं छुड़ाए जा सकते हैं।
ये चौराहे हैं सबसे ज्यादा बदनाम
वैसे तो पूरे शहर में ही बाहरी नंबर की गाड़ियां उगाही के लिए बदनाम कर्मियों की रडार पर रहती हैं, लेकिन बाहरी नंबर की गाड़ियों पर जिन चौराहों पर गिद्ध की भांति झपटते हैं, उनमें सबसे ज्यादा बदनाम माल रोड टैंक चौराहा, मवाना रोड ग्रास फार्म लिंक रोड, कंकरखेड़ा खिर्वा चौराहा, हाईवे के बागपत फ्लाईओवर, कंकरखेड़ा फ्लाईओवर, दिल्ली रोड पर शॉप्रिक्स मॉल, तेजगढ़ी चौराहा शामिल हैं। शहर के बाहरी इलाकों में कई चौराहे तो ऐसे हैं, जहां बाहरी नंबर की गाड़ियां अधिक गुजरती हैं। चौराहों को लावारिस छोड़कर पूरा स्टॉफ इन गाड़ियों के लिए जाल फेंकने में जुट जाता है, मानों पूरे शहर का ट्रेफिक बाहरी नंबर वाली गाड़ियों की वजह से जाम हो रहा है। चौराहों पर ड्यूटी इसलिए लगायी जाती है कि ताकि सुगमता से ट्रैफिक गुजरे, लेकिन लगता है कि तमाम चौराहों पर ड्यूटी इसलिए लगवाई जाती है ताकि बाहरी नंबर की एक भी गाड़ी बचकर न निकलने पाए। आरोप तो कुछ भी लगाए जा सकते हैं, लेकिन बेहतर होगा कि चौराहों पर चल रही यह खुली लूट और अराजकता पर सख्ती से अंकुश लगाया जाए।