राष्ट्रीय विकास में अटल जी आधुनिक वैज्ञानिक आधार पर कृषि विकास और लघु उद्योगों की भूमिका को सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते थे। उन्होंने जय जवान, जय किसान नारे को बढ़ाकर जय जवान, जय किसान जय विज्ञान करते हुए खेती किसानी को अहमियत दी। साथ ही साथ ग्रामीण क्षेत्रों में चहुंमुखी विकास और टेक्नोलॉजी विस्तार को अपनी प्राथमिकता में रखा। आज हम देखते हैं कि गांवों में जिस तेजी से आधारभूत ढांचा तैयार किया जा रहा है और संचार संपर्क के साधन मजबूत हो रहें हैं। उसने गांवों की तस्वीर बदल दी हैं। गांव गांव में इंटरनेट नेटवर्क की पहुंच और बिजली पानी व सड़कों की उपलब्धता ग्रामीण विकास की कहानी खुद बयां कर रही है।
वोकल फार लोकल नारे को जमीन पर उतारे जाने से भी अटल जी का आत्मनिर्भर व सशक्त भारत का सपना पूरा होता दिख रहा है। अटल जी कहते थे, हम केवल अपने लिए न जीयें औरों के लिए भी जीयें। गरीबी, दरिद्रता और विवशता हमारी बहुत बड़ी कमजोरी है। ऐसे में आवश्यक है कि हम राष्ट्र के लिए अधिकाधिक त्याग व बलिदान करें। अगर भारत की दशा दयनीय है तो विश्व में हमारा सम्मान नहीं हो सकता। किन्तु हम सभी दृष्टियों से सुसंपन्न और सक्षम है तो दुनिया हमारा सम्मान करेगी और हम अपनी जनता के हितों का बेहतर संवर्धन कर सकेंगे।’
पंक्ति के अंतिम व्यक्ति तक जन कल्याणकारी योजनाओं का संपूर्ण लाभ बिना भेदभाव गरीबों, वंचितों व शोषितों तक पहुंच रहा है। भारत आज आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ता हुआ, टेक्नोलॉजी के शिखर पर पहुंच रहा है। इसकी आधारशिला भी अटल जी ने ही रखी थी। पोखरन का परमाणु विस्फोट, स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी परियोजनाओं के साथ गांव गांव को पक्की सड़कों से जोड़ने का काम रिकॉर्ड तेजी से किया जा रहा है। राष्ट्र प्रथम जीवन ध्येय लेकर जीये अटल जी कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते हुए एक दिन, एक विधान, एक निशान नारे को साकार देखना चाहते थे। 15 मई 1957 को लोकसभा में दिए अपने अभिभाषण में उन्होंने कहा था, कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। अब कश्मीर में कोई समस्या है तो यही समस्या है कि पाकिस्तान उस भू-भाग को कब खाली करेगा जो उसके अवैध अधिकार में है।
अटल जी विदेश नीति में राष्ट्रीय हितों के प्रबल समर्थक थे। संसद में विदेश नीति को लेकर अपने पहले संबोधन में उन्होंने कहा, हम तटस्थ रहना चाहते हैं। तटस्थ का मतलब है, तट पर स्थित, तटस्थ। जो किनारे पर खड़ा है, वह तटस्थ है। अब कौन किनारे पर खड़ा रह सकता है? छोटा-मोटा देश और कमजोर आदमी किनारे पर खड़ा नहीं रह सकता। छोटा-मोटा पौधा एक ही लहर की लपेट में बहकर चला जाएगा। छोटा-मोटा पत्थर का टुकड़ा एक ही प्रवाह की आंधी में नदी की बीच धारा में जाकर टूट जाएगा। किनारे पर खड़ा वहीं रहता है, जिसकी जड़ें पाताल से जीवन रस प्राप्त करती है। जो देश अपने सम्मान, गौरव और गरिमा के साथ और राष्ट्रीय शक्ति, चारित्रिक बल और अनुशासन के साथ जनता के समर्थन से आगे बढ़ता है, वहीं देश तटस्थ रह पाता है।
अटल जी का यह सपना भी मोदी सरकार जिम्मेदारी से साकार करती दिख रही है। विश्व पटल पर भारत की अनदेखी कर पाना मुश्किल है। अटल जी मानते थे कि इक्कीसवीं सदी स्त्रियों की होगी। भविष्यदृष्टा अटल जी ने अपने एक संबोधन में कहा था, ‘इक्कीसवीं सदी हमारा दरवाजा खटखटा रही है। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह सदी स्त्रियों की सदी होगी। मैं उसमें बाधक नहीं बनूंगा लेकिन फिर हमें उसी तरह के भाषण देने पड़ेंगे जैसे आज महिला नेताओं द्वारा दिये जातें हैं। फिर हमारे (पुरुषों) के लिए आयोग के गठन होंगे। कल यह स्थिति न हो जाए कि हमें अपने लिए आरक्षण मांगना पड़े। लेकिन मैं नहीं समझता कि ऐसा होगा क्योंकि भारत में हमेशा संतुलन रहा है। समन्वय रहा है। एक रथ के दो पहिये की कल्पना रही है। उसके बिना गाड़ी नहीं चलेगी। गाड़ी अच्छी तरह से चले, अपने गन्तव्य तक पहुंचे, हमारा मन्तव्य पूरा हो, इस बात की आवश्यकता है।’ महिला सशक्तिकरण को लेकर अटल जी इच्छा भाजपा सरकारों द्वारा पूरी निष्ठा और दृढ़ता से पूरा किया जा रहा है।