भगवान बुद्ध को बिहार के एक बेहद खूंखार लोगों के बीच धर्म प्रचार के लिए अपने किसी शिष्य को भेजना था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इतनी भयानक जगह किसे भेजें। उन्होंने अपने शिष्यों की परीक्षा लेने की सोची। उन्होंने अपने सभी शिष्यों को बारी-बारी से बुलाया और उनके धैर्य की परीक्षा लेने लगे।
वे उन्हें उस भयानक जगह के बारे में बताते और शिष्यों के उत्तर जानते। सभी शिष्य अपनी सुरक्षा उपायों को लेकर प्रश्न करते। आखिर में भगवान ने अपने सबसे प्रिय शिष्य को बुलाया। भगवान ने कहा,‘वत्स, मैं तुम्हे जहां भेज रहा हूं, वहां के लोग खूंखार हैं। वे तुम्हारे साथ अभद्र व्यवहार कर सकते हैं।
क्या तुम वहां जाना पसंद करोगे?’ शिष्य ने कहा, ‘प्रभु, वे मुझे मारेंगे तो नहीं न! मैं चला जाऊंगा।’ इस पर भगवान बोले,‘हो सकता है वे तुम्हे मारें भी।’ इस पर शिष्य बोला, ‘प्रभु , वे मुझे जान से तो नहीं मारेंगे! मैं जा सकता हूं।’ भगवान फिर बोले,‘हो सकता है वत्स की वे तुम्हें जान से भी मार दें।’
इस पर दो पल सोचकर शिष्य बोला,‘प्रभु, अगर वे मुझे जान से मार देंगे, तो आगे मुझे कोई और कष्ट नहीं दे पाएंगे। फिर आप की आज्ञा का पालन करते हुए मरना मेरे लिए गर्व की बात होगी, मैं अवश्य जाऊंगा।’ भगवान समझ गए की इसके अंदर धैर्य है। यह मुसीबतों का सामना कर सकता है।
और उन्होंने उस शिष्य को आज्ञा दे दी। इस कहानी से हमे बोध होता है किहमें धैर्य नहीं खोना चाहिए। किसी ने लिखा भी है कि, ‘धारण धैर्य किए रहो, जब भी आए वक्त कठिन यही राह दिखलाएगा, घना हो चाहे जितना विपिन।’
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