एक व्यक्ति बुलबुल-जैसी आवाजें निकालने में इतना कुशल हो गया था कि मनुष्य की बोली उसे भूल ही गई थी। उस व्यक्ति की बड़ी ख्याति थी और लोग, दूर-दूर से उसे देखने और सुनने जाते थे। वह अपने कौशल का प्रदर्शन बादशाह के सामने भी करना चाहता था।
बड़ी कठिनाई से वह बादशाह के सामने उपस्थित होने की आज्ञा पा सका। उसने सोचा था कि बादशाह उसकी प्रशंसा करेंगे और पुरस्कारों से सम्मानित भी। लेकिन बादशाह ने कहा, महानुभाव, मैं बुलबुल को ही गीत गाते सुन चूका हूं, मैं आपसे बुलबुल के गीतों को सुनने की नहीं, वरन उस गीत को सुनने की आशा और अपेक्षा रखता हूं, जिसे गाने के लिए, आप पैदा हुए हैं। बुलबुलों के गीतों के लिए बुलबुलें ही काफी हैं।
आप जाएं और अपने गीत को तैयार करें और जब वह तैयार हो जाएं तो आएं। मैं आपके स्वागत के लिए तैयार रहूंगा और आपके लिए पुरस्कार भी तैयार रहेंगे। परमात्मा के द्वार पर केवल उन्ही का स्वागत है जो स्वयं जैसे हैं। महान आदर्शों के किरदारों के रूप में जिसको, जितनी अधिक सफलता मिलती है, वो वास्तविकता से उतना ही दूर निकल जाता है।
राम को, बुद्ध को या महावीर को ऊपर नहीं ओढ़ा जा सकता! जो ओढ़ लेता है वो वास्तविकता से दूर होता चला जाता है, उसके व्यक्तित्व में न संगीत होता है, न स्वतंत्रता, न सौंदर्य, न सत्य! परमात्मा उसके साथ वही व्यवहार करेगा, जो बादशाह ने उस व्यक्ति के साथ किया जो अपने गीत को त्याग कर, बुलबुल की आवाज में बुलबुल के गीत ही गाता था। महान व्यक्तित्व और आदर्श हमारे लिए अनुकरणीय है, उनका अनुसरण कर अपने को ईश्वर के करीब लाइए, न की उनसे दूर जाइए।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा