- स्टाम्प फर्जीवाड़ा: होनी थी एफआईआर, अटकी फाइल
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: फर्जी स्टाम्प लगाने के मामले को आखिर कार्रवाई करने की बजाय ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। एआईजी स्टाम्प व डीएम आॅफिस ने भी फर्जी स्टाम्प लगाने के मामले की जांच कराने के बाद स्पष्ट कर दिया था कि इसमें एफआईआर दर्ज करायी जाए, लेकिन यह मामला कैंट बोर्ड के अधिकारियों ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। ऐसा तब है जब पुना विधि विज्ञान प्रयोगशाला से जांच रिपोर्ट आने के बाद भी कार्रवाई नहीं की जा रही हैं। ये फर्जी स्टाम्प का मामला वर्ष 2016-17 का हैं।
दरअसल, कैंट क्षेत्र में वाहनों से टोल वसूली का टेंडर होता था। इसके लिए बाकायदा कैंट बोर्ड और ठेकेदार के बीच अनुबंध होता था, जिसमें ये खुलासा किया जाता था कि ठेकेदार हर रोज कितने रुपये जमा करेगा? प्रतिमाह कितने रुपये जमा किये जाएंगे? इस तरह से अनुबंध होता था। इसमें स्टाम्प भी लगते थे। इसमें 2016-17 में तीन वर्ष पुराने स्टाम्प पर जो मुहर लगी थी, उनकी मुहर मिटाकर दूसरी मुहर लगा दी तथा ये स्टाम्प जमा कर दिये।
इस तरह से कैंट बोर्ड के अधिकारियों ने ठेकेदार से तो 7.50 लाख रुपये स्टाम्प के जमा करा लिये और पुराने स्टाम्प लगा दिये। इसकी जब जांच पड़ताल हुई तो पूरा फर्जीवाड़ा खुल गया। उस दौरान राजस्व निरीक्षक व अन्य अधिकारियों की पूरी जिम्मेदारी थी कि स्टाम्प सही लगाये जाए। इसमें बड़ा फर्जीवाड़ा किया गया। कैंट बोर्ड के अधिकारियों का यह पूरा खेल पकड़ में आ गया,
जिसके बाद ही कैंट में हुए इस फर्जीवाड़े की जांच रक्षा संपदा महानिदेश ने शिकायत मिलने पर कराई थी। वर्तमान में लखनऊ से जांच करने आये निदेशक डीएन यादव को भी 425 पेज का शिकायती पुलिंदा तैयाकर शिकायतकर्ता राजीव गुप्ता ने दिया। यह फर्जीवाड़े का मामला कैसे ठंडे बस्ते में डाला गया?
इसमें एफआईआर दोषियों के खिलाफ क्यों नहीं की गई? तमाम बिन्दुओं को लेकर सवाल किये गए। अब देखना यह है कि जांच अधिकारी डीएन यादव इस मामले में क्या कार्रवाई करते है और महानिदेश को क्या रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। इसके बाद ही एफआईआर और आरोपियों की गिरफ्तारी संभव होगी।
ठेकेदार से सेटिंग का हुआ खेल
वर्ष 2013-14 में भी टोल के टेंडर को लेकर कैंट बोर्ड अधिकारियों और ठेकेदार के बीच बड़ा खेल हुआ। दोनों की सेटिंग से कैंट बोर्ड के राजस्व को लाखों का नुकसान पहुंचा दिया गया। दरअसल, टोल का टेंडर हुआ तो अनुबंध के लिए स्टाम्प 7.50 लाख के लिए गए, लेकिन स्टाम्प फाइल में तो रख लिए गए, लेकिन इनको लगाया नहीं गया।
कहा तो यह जा रहा है कि इन्हीं स्टाम्प का प्रयोग 2016-17 में मुहर बदलकर किया गया। इसी में कैंट बोर्ड के अधिकारी और कर्मचारियों की गर्दन फस गई। इसकी शिकायत अधिवक्ता संदीप पहल ने भी की थी तथा इसकी जांच के बाद एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। फिर भी इसमें कोई कार्रवाई नहीं हुई।