- पल्हैड़ा चौराहे पर अवैध कॉम्प्लेक्स का मामला
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: नोएडा ही नहीं, मेरठ में भी कई अवैध कॉम्प्लेक्स बने हुए हैं। आखिर उन कॉम्प्लेक्स को क्या एमडीए गिरायेगा? हाल ही में पल्हैडा चौराहे पर जिस अवैध कॉम्प्लेक्स को लेकर बवाल मचा हुआ हैं, उसको लेकर दो वर्ष से फाइल सुनवाई में ही चल रही हैं। ये सुनवाई आखिर कब तक चलेगी या फिर फाइल को पेंडिंग में डालकर मामले को रफा-दफा कर दिया जाएगा। इसके जिम्मेदार इंजीनियरों पर क्या एमडीए के अधिकारी कार्रवाई कर पाएंगे?
दरअसल, ये कॉम्प्लेक्स भाजपा किसान मोर्चा के प्रांतीय महामंत्री विक्रांत का हैं। हाल ही में भाजपा नेता के अवैध कॉम्प्लेक्स का मामला मीडिया ने उठा दिया, जिसके बाद फिर से ये कॉम्प्लेक्स का मामला विवादों में आ गया। दो वर्ष पहले यह कॉम्प्लेक्स बनकर तैयार हो गया हैं। कहा यह जा रहा है कि पूरा बिक भी चुका हैं, लेकिन पल्लवपुरम पुलिस नींद से एक सप्ताह पहले ही जागी है।
पुलिस ने आनन-फानन में विक्रांत उर्फ आदित्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली। एफआईआर में कहा गया कि कॉम्प्लेक्स मानचित्र के विपरीत निर्माण किया गया, जबकि मानचित्र स्वीकृत ही नहीं है तो फिर विपरीत निर्माण कैसे हो सकता हैं? छह माह पहले पुलिस ने एफआईआर में सील लगना दर्शाया हैं, जबकि सील दो वर्ष पहले लग चुकी हैं। उसके बाद से तो पूरा कॉम्प्लेक्स की बिक गया।
नोएडा के टावर पर तो ध्वस्ती्ररण की कार्रवाई कर दी हैं, लेकिन इस अवैध कॉम्प्लेक्स और बिल्डर पर एमडीए कार्रवाई कब करेगा? इस कॉम्प्लेक्स का आवंटन एमडीए से पवन वर्मा को किया गया, जिसके बाद इसे विक्रांत ने खरीदा। इसमें कई और भी लोग पार्टनर हैं। इसमें एमडीए ने जब दो वर्ष पहले कार्रवाई आरंभ की थी तो ध्वस्तीकरण के आदेश कर दिये गए थे। महत्वपूर्ण बात यह है कि ध्वस्तीकरण आदेश के बावजूद एमडीए इंजीनियर इसकी फाइल क्यों दबाये रहे?
जब और बिल्डिंग गिरायी जा सकती है तो इस बिल्डिंग को बचाने की कवायद क्यों की जा रही हैं। यह बिल्डिंग एजुकेशन लैंड हैं तथा निर्माण व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स का कर दिया गया हैं। ये पूरी तरह से अवैध हैं। कमिश्नर के स्तर से भी विक्रांत की अपील को बहुत पहले खारिज कर दिया गया। इसके बाद भी ध्वस्तीकरण क्यों नहीं किया गया, यह बड़ा सवाल हैं। अब अवैध कॉम्प्लेक्स का मामला मीडिया में सुर्खियों में आ गया है तो फाइल को फिर से तलाशकर सुनवाई में फाइल को लगा दिया गया है।
आखिर इससे पहले कार्रवाई क्यों नहीं की? दो वर्ष का बड़ा समय होता हैं, उस बीच भी सुनवाई नहीं हुई। एमडीए की फाइल को देखकर पता चलता है कि इसमें कोई सुनवाई नहीं हुई। दो वर्ष से फाइल को दबाया गया था। फाइल क्यों दबाई गयी थी? फाइल को दबाने वाले कौन इंजीनियर हैं? क्या उनको चिन्हित कर कार्रवाई की जाएगी?
एनजीटी के आदेश, फिर भी ग्रीन बेल्ट में कार्रवाई नहीं
एनजीटी के आदेश भी एमडीए इंजीनियरों के लिए कोई मायने नहीं रखते। एनजीटी में डा. अजय कुमार ने याचिका दायर की है कि परतापुर से लेकर मोदीपुरम तक ग्रीन बेल्ट में दो दर्जन से ज्यादा रेस्टोरेंट बन गए हैं। इसकी रिपोर्ट भी एनजीटी ने मांगी हैं, मगर एमडीए इंजीनियरों ने ध्वस्तीकरण के नाम पर खानापूर्ति कर दी हैं।
हाइवे पर बने एक भी रेस्टोरेंट को नहीं गिराया। इंजीनियरों के संरक्षण में बिग बाइट के सामने एक बड़ा रेस्टोरेंट बन गया। इससे आगे चलेंगे, फिर रेस्टोरेंट बन गया। चोटी वाला रेस्टोरेंट तो अवैध बन ही चुका, उसके बराबर में भी अवैध रेस्टोरेंट का निर्माण वर्तमान में चल रहा हैं। इस तरह से दो दर्जन से ज्यादा रेस्टोरेंट हाइवे पर बन गए। इसमें एमडीए कार्रवाई निर्माण चालू करने के दौरान ही कार्रवाई क्यों नहीं करता हैं?
निर्माण पूरा होने के बाद नोटिस और कागजी खानापूर्ति करने में जुट जाते हैं। कांवड़ यात्रा से पहले एनजीटी की टीम मेरठ ग्रीन बेल्ट का दौरा करने वाली थी, लेकिन टीम नहीं आयी। इसके बाद फिर से निर्माण आरंभ हो गए। इस तरह से एनजीटी के आदेशों की खुली अवहेलना हो रही हैं।