जिला पंचायत अध्यक्ष पद को लेकर रालोद-सपा और भाजपा में चल रही खींचतान
निर्दलियों को साथ लेकर रालोद-सपा कर रही तैयारी, भाजपा बिछा रही फिल्डिंग
बागपत पर लखनऊ की निगाहें, अध्यक्ष पद को लेकन बन रही बड़ी रणनीति
मुख्य संवाददाता |
बागपत: जिला पंचायत सदस्य के चुनाव तो शांतिपूर्ण हो गए, लेकिन अध्यक्ष पद के चुनाव से पहले जनपद की राजनीति में भूचाल की स्थिति पैदा हो चली है। एक तरफ रालोद-सपा खड़ी है तो दूसरी ओर सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा सामने है।
रालोद-सपा अपने अलावा निर्दलीयों का साथ होने का दावा कर चुकी है वहीं भाजपा भी जोड़तोड़ की फिल्डिंग बिछाने में लगी है। एक समय था जब भाजपा के पास महज चार ही जिला पंचायत सदस्य थे, लेकिन अब उनकी संख्या में इजाफा हो गया है।
यही नहीं यहां के जिला पंचायत अध्यक्ष पद को लेकर बागपत से लखनऊ तक निगाह टिकी है। सवाल यह है कि जिस तरह से जोड़तोड़ में भाजपा लगी है, क्या यह दांव सटीक बैठेगा? क्या जिला पंचायत अध्यक्ष पद की अग्नि परीक्षा में भाजपा कामयाब होगी? या रालोद-सपा मिलकर अध्यक्ष बनाएंगे?
जिला पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव बागपत जनपद में इस बार खींचतान की स्थिति पैदा कर रहा है। सत्तारूढ़ पार्टी अपनी फिल्डिंग बिछाने में कसर नहीं छोड़ रही है, जबकि जिला पंचायत सदस्य पद के चुनाव में जनता का जनमत भाजपा के पक्ष में नहीं था।
जिला पंचायत के 20 वार्डों में से महज चार वार्डों पर ही भाजपा समर्थित उम्मीदवार विजयी हुए थे। इसके अलावा 7 वार्डों पर रालोद, 4 पर सपा व 4 पर भाजपा विजयी हुई थी। चार वार्डों पर निर्दलीयों ने भी बाजी मारी थी, जबकि वार्ड 20 पर बसपा विजयी हुई थी। यहां देखा जाए तो रालोद-सपा का पलड़ा भारी था।
मतगणना के बाद भाजपा का अध्यक्ष पद का ख्वाब टूटता नजर आया था, क्योंकि भाजपा के पास अध्यक्ष पद का ही प्रत्याशी नहीं था। अध्यक्ष पद अनुसूचित जाति महिला के लिए आरक्षित है। जबकि भाजपा के दोनों प्रत्याशी हार गए थे। वार्ड 13 पर ममता किशोर रालोद से विजयी हुई थी और वार्ड 18 पर सपा की बबली देवी जीती थी।
भाजपा ने यहां जनता के जनमत को स्वीकार नहीं किया और जोड़तोड़ की राजनीति बागपत में शुरू कर दी। भाजपा ने सपा की बबली देवी को अपने पाले में कर लिया। जिसके बाद भाजपा के पास प्रत्याशी के रूप में बबली देवी हो गई। उसके बाद भाजपा ने बागपत जनपद में अपनी फिल्डिंग बिछानी शुरू कर दी थी।
हालांकि भाजपा के पास महज 5 ही सदस्य थे, जबकि जनपद में अध्यक्ष पद के लिए 11 जिला पंचायत सदस्यों का बहुमत होना जरूरी है। रालोद-सपा व निर्दलीयों ने बहुमत से अधिक संख्या का दावा किया था। रालोद के 7, तीन सपा व निर्दलीय मिलाकर अधिक ही संख्या हो रही थी।
पिछले दिनों रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी के समक्ष 12 जिला पंचायत सदस्यों ने समर्थन दिया था। यानी पूर्व के दावे से संख्या कम हुई है। संख्या कम हुई या फिर कोई सदस्य जा नहीं पाया, यह तो रालोद ही बताएगा, लेकिन भाजपा की संख्या में इजाफा भी माना जा सकता है। दोनों दलों के बीच खींचतान पूरी चल रही है।
जिला पंचायत सदस्यों को तोड़ने के लिए सत्ता भी पूरजोर कोशिश में जुटी है। सूत्रों की मानें तो बागपत से लेकर लखनऊ तक निगाह टिकी है। भाजपा के पदाधिकारी भी यहां की रिपोर्ट लखनऊ तक भेज रहे हैं। सूत्रों की मानें तो भाजपा अपने पास बहुमत से अधिक संख्या होने का दावा हाईकमान तक कर चुकी है।
कहीं अपने ही न निकल जाएं दगाबाज
भाजपा जिस तरह से अपने पास पूर्ण समर्थन का दावा कर रही है कहीं न कहीं जिला पंचायत सदस्यों की मौजूदगी पर भी सवाल खड़े होते हैं। पता चला कि अपने ही यहां दगाबाज निकल गए। क्योंकि यह राजनीतिक अखाड़ा है, कौन कब किस पाले में चला जाए? कुछ नहीं कहा जा सकता है। सपा के चार में से एक तो पहले ही भाजपा का दामन थाम चुकी है। जबकि निर्दलीय भी यहां मुख्य भूमिका में है। देखना यह है कि जिस पार्टी के दम पर सदस्य बनें है, उसके ही रहेंगे या फिर पाला बदलने में देरी नहीं लगाएंगे?
यानी यहां जोड़तोड़ की राजनीति का भूचाल आने वाला है। अगर ऐसा हुआ तो बड़ा उलटफेर माना जाएगा। हालांकि अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। इतना जरूर है कि भाजपा भी हर हथकंडा अपनाकर जिला पंचायत अध्यक्ष पद कब्जाने की फिल्डिंग बिछा रही है और रालोद-सपा भी अपनी पूरी तैयारी में है।
भाजपा पर जिला पंचायत सदस्यों को परेशान करने के भी आरोप लग रहे हैं। सवाल यह है कि क्या भाजपा अपनी रणनीति में कामयाब होगी? जोड़तोड़ करने में पार्टी सफल होगी? क्योंकि जनता का जनमत सदस्यों के रूप में भाजपा के पक्ष में नहीं था।
भाजपा जनमत के विरूद्ध जाकर यहां जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर आसीन होने की तैयारी में फिल्डिंग बिछाने में जुटी है। देखना यह है कि इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष पद की अग्नि परीक्षा में भाजपा कामयाब होती है या नहीं?