नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के बयानों को लेकर पहले से ही अरब देशों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। वहीं अब आॅस्ट्रेलिया में बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने आॅस्ट्रेलिया-इंडिया यूथ डायलॉग समिट में इस्लाम को लेकर एक ऐसा बयान दे दिया है कि उन्हें वहां भी विरोध का सामना करना पड़ गया। सिडनी के एक कॉलेज में तेजस्वी सूर्या ने, एक निजी समारोह में, हलाल भोजन पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया। कुछ छात्र संगठनों और मुस्लिम समूहों ने बीजेपी सांसद की इस यात्रा के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया, जिसके कारण उनका सार्वजनिक कार्यक्रम रद्द भी कर दिया गया।
मुस्लिम संगठन पहले से ही नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल की गिरफ़्तारी की मांग कर रहे हैं। 17 से अधिक देश आधिकारिक आपत्ति जता चुके हैं। कतर ने दोहा स्थित भारतीय राजदूत को तलब कर के कहा कि भारत को माफी मांगनी चाहिए और उसे ऐसी गतिविधियों पर नियंत्रण रखना चाहिए। लेकिन पैगंबर के खिलाफ आपत्तिजनक बयान न तो सरकार के किसी मंत्री ने दिया है और न ही यह सदन में दिया गया है, बल्कि यह बयान दिया है, सत्तारूढ़ दल भाजपा के अधिकृत प्रवक्ता ने। अधिकृत प्रवक्ता का बयान, पार्टी का ही बयान माना जाता है और इस बयान के खिलाफ विपरीत प्रतिक्रिया तब भी हुई थी, जब यह बयान सार्वजनिक हुआ था, और कुछ मुकदमे भी दर्ज हुए थे। पार्टी तब भी चुप थी और सरकार खामोश।
आज का समय संचार क्रांति का है। मैं जो कुछ भी यहां लिखता बोलता रहता हूं, वह केवल मेरे मित्र और पब्लिक के ही कुछ लोग ही नहीं पढ़ते सुनते हैं, बल्कि, यह दुनिया भर में कहीं भी पढ़ा सुना जा सकता है। पिछले 8 सालों में देश में जो सामाजिक विभाजनकारी वातावरण बनाया गया है वह एक धर्म विशेष यानी मुस्लिम समाज को केंद्र में रख कर बनाया जा रहा है। पर पिछले आठ सालों में देश में कोई व्यापक दंगा नहीं हुआ, हालांकि इसका श्रेय भले ही सरकार ले ले, पर दंगा न भड़कने का कारण, सरकार के प्रयास नहीं बल्कि दोनो समुदायों का बेहद भड़काऊ बयानबाजियों के बीच एक प्रशंसनीय धैर्य धारण करना है। नहीं तो सरकार ने अपने दल के लोगों पर ऐसा कोई नियंत्रण नहीं रखा जिससे भड़काऊ बयानबाजी बंद हो जाए और जनता में विश्वास बहाली हो सके।
सरकार को, अरब देशों को ही नहीं बल्कि दुनिया भर के देशों को यह समझाना होगा कि, जो कुछ भी हुआ है उससे सरकार और देश बिल्कुल सहमत नहीं हैं और ऐसे तत्वों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हैं तथा भारतीय कानून के अनुसार कानूनी कार्यवाही भी की जा रही है। अब यह प्रकरण समाप्त किया जाना चाहिए। रहा सवाल भाजपा का तो, यह जिम्मेदारी राजनीतिक दल की है कि वह भविष्य में ऐसे अप्रिय प्रकरण न उठाएं, उसके लिए, उचित कदम उठाए।
साथ ही सरकार द्वारा ऐसे बयान देने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही भी की जानी चाहिए, जिससे दुनिया में यह संदेश भी जाए कि हम ऐसे किसी भी आपत्तिजनक बयान को जो, भारतीय कानून में दंडनीय अपराध है, कानून के उल्लंघन के रूप में लेते हैं और उसके खिलाफ विधि सम्मत कार्यवाही भी कर रहे हैं। भाजपा ने अंतत: एक गाइड लाइन अपने प्रवक्ताओं के लिए जारी भी की है। अब देखना यह है कि भाजपा के प्रवक्ता, उक्त गाइड लाइन का कितना पालन करते हैं। उम्मीद है कि वे, उसका पालन करेंगे और दुबारा ऐसी अप्रिय स्थिति नहीं आने देंगे जिससे देश को फिर दुनिया के सामने शर्मसार होना पड़े।
नूपुर शर्मा के बयान पर जो उन्होंने पैगंबर मोहम्मद के बारे में कहा था, वह सच है या झूठ, हदीस में लिखा है या उसकी गलत व्याख्या की गई है, आदि के बारे में मेरा यह कहना है कि डिबेट ज्ञानवापी के उस मुकदमे और लीक हुई सर्वे रिपोर्ट और वीडियो पर केंद्रित था न कि इस्लाम के इतिहास, पैगंबर के जीवन, कुरान और हदीस की सत्यता पर। इस सब पर भी बहस हो सकती है पर उस बहस में उन्हें शामिल होना चाहिए और बोलना चाहिए जो धर्म शास्त्र के विद्वान हैं। यह बहस धर्म पर थी ही नहीं। पर चटपटी और भड़काऊ डिबेट के आदी हो चुके चैनल का मूल एजेंडा ही है, बहस को गरमाना और ऐसा माहौल बनाना जिससे विभाजनकारी ताकतें और मजबूत हों। अपशब्द और आपत्तिजनक बातें दोनो ही तरफ से हुर्इं।
न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने हाल ही में जारी अपनी एक, एडवाइजरी में कहा है कि हाल के दिनों में यह पाया गया है कि कई सैटेलाइट टीवी चैनलों ने कुछ घटनाओं को इस तरह से कवरेज किया है जो अप्रमाणिक, भ्रामक, सनसनीखेज और प्रतीत होता है। सामाजिक रूप से अस्वीकार्य भाषा और टिप्पणियों का उपयोग करना, जनमानस की भावनाओं को ठेस पहुंचाना और अश्लील व मानहानिकारक इस्तेमाल करना उपरोक्त अधिनियम की धारा 20 की उप-धारा (2) के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं।
लेकिन क्या सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अपनी एडवाइजरी का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कुछ किया है? मुझे नहीं लगता कि कुछ किया होगा। अब जब दुनिया भर में तमाशा बन गया और विभिन्न देशों से हमारे राजदूत तलब होने लगे, कड़ी प्रतिक्रियाएं आने लगीं तो, केंद्र सरकार ने भड़काऊ हेडलाइन और हिंसा के उन वीडियो पर कड़ी आपत्ति जताई, और यह कार्यवाही की।
पहली बार सरकार एक ऐसे संकट में फंसी है, जिसकी जिÞम्मेदारी भाजपा की लंबे समय से आ रही नस्ली राष्ट्रवाद और धर्म आधारित राजनीति की सोच है। सरकार और भाजपा के लिए भी यह एक कठिन समय है। सरकार तो संविधान मानने के लिए शपथबद्ध है, पर क्या भाजपा संविधान के मूल ढांचे पर वाकई यकीन करती है? आरएसएस जो बीजेपी का थिंक टैंक है, उसके विचार भारतीय संविधान और सेक्युलर मूल्यों के लिए क्या हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। जब आडवाणी पार्टी विद अ डिफरेंस कहते थे तो उसका पोशीदा आशय संघ की यह लाइन ही थी, जो अब बुरी तरह एक्सपोज हो रही है। यह संकट अंदर से नेतृत्व पर भी आया है। नफरत की फौज, पिछले आठ सालों में खाद पानी पाकर इतनी उन्मादित हो गई है कि, अब कुछ सुनने को तैयार भी नहीं है। वह इस जटिलता को भी नहीं समझ पा रही है कि खाड़ी देशों में डेढ़ करोड़ भारतीय काम कर रहे हैं, छह करोड़ परिवारों की रोजी रोटी इससे सीधे जुड़ी है। इन देशों को हम तीन लाख करोड़ रुपये का निर्यात करते हैं। मगर इस नफरती गिरोह को इससे कोई सरोकार नहीं है।
आज दुनिया भर में तमाशा हो रहा है, सरकार डैमेज कंट्रोल में लगी है। सरकार ने एक बार भी अपने इन मंत्रियों को यह हिदायत दी कि उन्होंने संविधान की शपथ ली है, वे फ्रिंज एलिमेंट नहीं हैं, वे सरकार के अंग हैं, उन्हें तो कम से कम ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए थी?