Tuesday, July 2, 2024
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रोटी मनुष्य के लिए विचित्र चीज

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जब साधारण लोग दुखों और परेशानियों में घिर जाते हैं, उस समय उन्हें कोई रास्ता नहीं सुझाई देता। ईश्वर की उपासना में मन लगाने और सज्जनों से परामर्श लेने के स्थान पर वे तीर्थस्थानों में जाते हैं, जंगलों में भटकते हैं। इसी कड़ी में वे बेचारे तान्त्रिकों और मान्त्रिकों के चंगुल में फंस जाते हैं। वे डर दिखाकर उनका शोषण करते हैं। अन्तत: तथाकथित धर्मगुरुओं की चौखट पर लोग जाकर अपना माथा रगड़ते हैं परन्तु उन्हें कहीं से, कुछ भी हासिल नहीं हो पाता।

इस संसार में बहुत-सी विचित्र बातों या वस्तुओं से नित्य प्रति हमारा वास्ता पड़ता रहता है। इसी प्रकार अनेक आश्चर्यजनक घटनाएं भी हमारे आसपास प्रतिदिन घटित होती रहती हैं। कुछ के विषय में हमें जानकारी मिल जाती है और कुछ के बारे में पता ही नहीं चल पाता। मनुष्य का स्वभाव है कि वह इन विचित्र प्रतीत होने वाले विषयों के प्रति अपनी जानकारी जुटाता रहता है। उसकी इनमें रुचि बनी रहती है।

आज हम चर्चा करेंगे अपने मनुष्य जीवन की। संपूर्ण ब्रह्माण्ड में मनुष्य नाम का ही ऐसा जीव है जो दिन-रात रोजी-रोटी कमाने के चक्कर में कोल्हू का बैल बन जाता है। मनुष्य खूब सारा धन कमाकर अपनी सभी आवश्यकताओं को पूर्ण करना चाहता है। दुनिया के सारे सुखों और ऐश्वर्यों को भोगना चाहता है।
गृहस्थ जीवन का पालन करता हुआ मनुष्य ब्रह्मचारियों, वानप्रस्थियों और संन्यासियों का पालन करता है। इसी प्रकार गाय, भैंस, बकरी, बैल, घोड़ा, हाथी, गधा, सुअर आदि बहुत से पशुओं और चिड़िया, तोता, मोर, बतख, मुर्गी आदि अनेक पक्षियों का भी पोषण करता है। बदले में वे भी निस्संदेह किसी-न-किसी रूप में उसकी सहायता करते हैं।

सृष्टि के शेष सभी जीव मनुष्यों की तरह कोई ऐसा काम नहीं करते। न उन्हें सुबह-सवेरे दफ्तर के लिए तैयार होकर जाना पड़ता है और न ही धन कमाना पड़ता है। न उन्हें अपना सुन्दर-से घर बनाने होता है और न अनाज उगाने के लिए खेती करनी होती है। उन्हें अन्न और पानी प्रकृति की ओर से उपलब्ध हो जाता है। हां, उसे खोजने के लिए इधर-उधर जंगल में घूमना अवश्य पड़ता है। अपने से शक्तिशाली जीवों से अपनी रक्षा करनी पड़ती है।

इसलिए रोटी से विचित्र मनुष्य के लिए कुछ भी नहीं है। इसे कमाने के लिए भी इंसान दौड़ता है और पचाने के लिए भी दौड़ लगाता है। सारी आयु उसे सुख की सांस नहीं मिलती। यदि उसका खान-पान संतुलित है तो बहुत बढ़िया। यदि उसमें किसी तरह की चूक हो जाती है तो लेने के देने पड़ जाते हैं यानी उसका दंड बीमारियों के रूप में उसे भुगतना पड़ता है। तब वह योग करता है, व्यायाम करता है, सैर करने जाता है और जिम जाता है। डाक्टरों के चक्कर लगाओ और समय व पैसे की हानि करो। तब भी सब हो जाएगा, इसका कोई आश्वासन नहीं। बस अपना भाग्य प्रबल होना चाहिए। ईश्वर की नजर हमारे प्रति सीधी होनी चाहिए।

मनुष्य जाने-अनजाने बहुत से पाप या दुष्कर्म करता रहता है। वह सोचता है कि गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान करके वह उन दोषों से मुक्त हो जाएगा। उसका दुर्भाग्य कि ऐसा हो नहीं सकता। अपने किए गए शुभाशुभ कर्मों का भुगतान उन्हें भोगकर ही होता है। लोग गंगा जी में नहाकर वहीं से धोए हुए पापों को पानी के रूप में भरकर अपने घर वापिस लेकर आ जाते हैं। यह है इन्सानी फितरत और उसकी सोच का विचित्र तरीका, यह समझ में नहीं आता। जो भी अच्छा या बुरा मनुष्य करता है उसका सम्बन्ध उसकी सोच से होता है, उसके इस शरीर से नहीं। तीर्थों का जल केवल शरीर की मैल को साफ करता है। मनुष्य की सोच को कोई दोषरहित नहीं कर सकता। हाँ, यदि वह स्वयं सोच ले अथवा चाहे तो सब कुछ सम्भव हो सकता है।

जब साधारण लोग दुखों और परेशानियों में घिर जाते हैं, उस समय उन्हें कोई रास्ता नहीं सुझाई देता। ईश्वर की उपासना में मन लगाने और सज्जनों से परामर्श लेने के स्थान पर वे तीर्थस्थानों में जाते हैं, जंगलों में भटकते हैं। इसी कड़ी में वे बेचारे तान्त्रिकों और मान्त्रिकों के चंगुल में फंस जाते हैं। वे डर दिखाकर उनका शोषण करते हैं। अन्तत: तथाकथित धर्मगुरुओं की चौखट पर लोग जाकर अपना माथा रगड़ते हैं परन्तु उन्हें कहीं से, कुछ भी हासिल नहीं हो पाता। मजे की बात यह है कि जानते हुए भी लोग इन ढोंगियों के पास जाकर अपना सुख, चैन, धन और समय सब कुछ बर्बाद कर देते हैं। अपनी जग हंसाई करवाते हैं सो अलग। यह भी अपने आप में मनुष्य की एक बहुत विचित्र सोच है।

इस प्रकार बहुत से विचित्र वाकये हम लोगों के आसपास और जिन्दगी में प्राय: घटते रहते हैं। उन पर ठीक से विचार करके सार्थक कदम उठाना ही समझदारी कहलाती है। इसलिए सावधान रहना बहुत आवश्यक होता है।

सीपी सूद


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