प्रदेश में जिसकी रही सरकार अब तक उसका नहीं बना मेयर, इस बार समीकरण दे रहे हैं कुछ और संकेत
शाहिद मिर्जा |
मेरठ: रिकॉर्ड हो या मिथक एक में एक दिन टूट जाते हैं ऐसा ही एक मिथक मेरठ में नगर निगम बनने के बाद पिछले 28 साल से चला आ रहा है और वह मिथक यह है उत्तर प्रदेश में किस पार्टी की सरकार होती है, मेरठ में उसका मेयर नहीं बन पाता है।
योगी’राज’-2 में कई मिथक ऐसे हैं जो टूट चुके हैं। मेरठ में यह मिथक इस बार टूट पाता है या नहीं, इसका खुलासा आज यानी शनिवार 13 मई को होने वाला है।
नगर निगम बनने के बाद 1995 में पहली बार मेयर के लिए जनता के वोटों से सीधे चुनाव हुआ उस समय बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार अयूब अंसारी के सिर जीत का सेहरा बंधा।
संयोग देखिए कि उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार रही। इसके पांच वर्ष बाद सन 2000 में हुए महापौर के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के ही हाजी शाहिद अखलाक विजयी रहे। लेकिन उस समय उत्तर प्रदेश की कमान भारतीय जनता पार्टी के हाथों में रही थी।

लगातार दो चुनाव में मेरठ की जनता ने बहुजन समाज पार्टी के मेयर को चुना। लेकिन, दोनों बार प्रदेश की सत्ता समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के हाथों में रही। इन दोनों चुनाव में इस मिथक को बल मिला कि प्रदेश में जिसकी सरकार होती है, मेरठ में उस पार्टी का मेयर नहीं बन पाता।
इसके बाद का संयोग और विचित्र है। मेरठ की जनता ने लगातार दो बार 2006 और 2012 में भारतीय जनता पार्टी के मेयर मधु गुर्जर और हरिकांत अहलूवालिया को बागडोर सौंपी। लेकिन, इन दोनों चुनाव के समय उत्तर प्रदेश में 2006 में बहुजन समाज पार्टी और 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार बन चुकी थी।
2017 में उत्तर प्रदेश सरकार फिर बदली और भारतीय जनता पार्टी के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। इस दौरान मेरठ में महापौर का चुनाव आया, जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने राज्य सभा सांसद कांता कर्दम को मेयर प्रत्याशी बनाया। जबकि बहुजन समाज पार्टी ने सुनीता वर्मा को चुनाव मैदान में उतारा।
