Thursday, April 18, 2024
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योगी’राज’-2 में टूट पाएगा 28 साल से चला आ रहा महापौर पद से जुड़ा मिथक!

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  • प्रदेश में जिसकी रही सरकार अब तक उसका नहीं बना मेयर, इस बार समीकरण दे रहे हैं कुछ और संकेत

शाहिद मिर्जा |

मेरठ: रिकॉर्ड हो या मिथक एक में एक दिन टूट जाते हैं ऐसा ही एक मिथक मेरठ में नगर निगम बनने के बाद पिछले 28 साल से चला आ रहा है और वह मिथक यह है उत्तर प्रदेश में किस पार्टी की सरकार होती है, मेरठ में उसका मेयर नहीं बन पाता है।

योगी’राज’-2 में कई मिथक ऐसे हैं जो टूट चुके हैं। मेरठ में यह मिथक इस बार टूट पाता है या नहीं, इसका खुलासा आज यानी शनिवार 13 मई को होने वाला है।

नगर निगम बनने के बाद 1995 में पहली बार मेयर के लिए जनता के वोटों से सीधे चुनाव हुआ उस समय बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार अयूब अंसारी के सिर जीत का सेहरा बंधा।

संयोग देखिए कि उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार रही। इसके पांच वर्ष बाद सन 2000 में हुए महापौर के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के ही हाजी शाहिद अखलाक विजयी रहे। लेकिन उस समय उत्तर प्रदेश की कमान भारतीय जनता पार्टी के हाथों में रही थी।

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हाजी शाहिद अखलाक।

लगातार दो चुनाव में मेरठ की जनता ने बहुजन समाज पार्टी के मेयर को चुना। लेकिन, दोनों बार प्रदेश की सत्ता समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के हाथों में रही। इन दोनों चुनाव में इस मिथक को बल मिला कि प्रदेश में जिसकी सरकार होती है, मेरठ में उस पार्टी का मेयर नहीं बन पाता।

इसके बाद का संयोग और विचित्र है। मेरठ की जनता ने लगातार दो बार 2006 और 2012 में भारतीय जनता पार्टी के मेयर मधु गुर्जर और हरिकांत अहलूवालिया को बागडोर सौंपी। लेकिन, इन दोनों चुनाव के समय उत्तर प्रदेश में 2006 में बहुजन समाज पार्टी और 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार बन चुकी थी।

2017 में उत्तर प्रदेश सरकार फिर बदली और भारतीय जनता पार्टी के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। इस दौरान मेरठ में महापौर का चुनाव आया, जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने राज्य सभा सांसद कांता कर्दम को मेयर प्रत्याशी बनाया। जबकि बहुजन समाज पार्टी ने सुनीता वर्मा को चुनाव मैदान में उतारा।

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भाजपा की कांता कर्दम और बसपा से सुनीता वर्मा।

तमाम मिथक तोड़ते आ रहे योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में मेरठ का यह मिथक एक बार फिर सही साबित हुआ कि मेरठ की जनता प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी का मेयर नहीं चुनती है। 2017 में हुए चुनाव में जहां यूपी में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री रहे, वहीं मेरठ महापौर की कमान बीएसपी की सुनीता वर्मा को मिली।

इस बीच उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के मुखिया के रूप में योगी आदित्यनाथ 2022 में दोबारा सत्ता संभाल चुके हैं। वहीं मेरठ में हुए चुनाव का नतीजा शनिवार को आना अभी बाकी है।

देखने वाली बात यह होगी कि योगी आदित्यनाथ के अपने कार्यकाल में कई मिथक टूटे हैं। उनके दूसरे कार्यकाल में मेरठ की जनता हरिकांत अहलूवालिया को भी दूसरी बार महापौर पद पर आसीन करती है या भारतीय जनता पार्टी से इतर किसी दूसरे दल का महापौर बनाकर प्रदेश की सत्ता और मेरठ की सत्ता को अलग-अलग दलों के हाथों सौंपने के मिथक को बरकरार रखती है।

राजनीतिक जानकार जो समीकरण बता रहे हैं, उनके मुताबिक इस बार मेरठ में चुनावी नतीजे इस मिथक को तोड़ सकते हैं। हालांकि मेरठ शहर में मतदान प्रतिशत 47.88 तक सिमटा रहा है। इसके बावजूद वोटों के बंटवारे को लेकर खुद प्रत्याशी भी संशय की स्थिति के बीच दावों के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी हरिकांत अहलूवालिया की जीत का सारा समीकरण इस बात पर निर्भर करता है कि उनकी मुख्य प्रतिद्वंदी माने जाने वालीं सपा रालोद गठबंधन प्रत्याशी सीमा प्रधान के पक्ष में मुस्लिम मतों का रुझान कितना रहा है। इसके अलावा सीमा प्रधान के पक्ष में उनके अपने गुर्जर समाज और अन्य हिंदू मतदाताओं ने कितना मतदान किया है।

भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी हरिकांत अहलूवालिया की जीत के दावे करने वाले राजनीतिक जानकार तर्क दे रहे हैं कि मुस्लिम इलाकों में समाजवादी पार्टी के साथ-साथ एआईएमआईएम प्रत्याशी की पतंग ने भी खूब उड़ान भरी है। जबकि बसपा से टिकट मांगने वाले राशिद अखलाक का समर्थन हासिल होने के बाद बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी हसमत अली के पक्ष में भी मुस्लिम मतों का रुझान हुआ है।

लब्बोलुआब यह है कि अगर भारतीय जनता पार्टी की अपेक्षा और अनुमान के अनुसार मुस्लिम वोटों का बिखराव हुआ है, तो इस बार प्रदेश और मेरठ की सत्ता एक ही पार्टी के हाथों में आने का करिश्मा हो सकता है।

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