सोनी मल्होत्रा
सब अभिभावक अपने बच्चे से यह अपेक्षा करते हैं कि वह पढ़ाई में अव्वल रहे और इसके लिए वे उसे प्रोत्साहित करते रहते हैं। कई बार स्थिति ऐसी आती है कि माता-पिता हैरान रह जाते हैं कि उनके बच्चे के परीक्षा में अंक बहुत कम आए हैं जबकि उनका बच्चा तो पढ़ाई में बहुत अच्छा है। उन्हें लगता है कि बच्चा पढ़ाई के प्रति लापरवाही बरत रहा है तभी ऐसी स्थिति आई है। बच्चे को डांट व मार पड़ती है पर स्थिति फिर भी वैसे की वैसी रहती है।
हर बार कसूर बच्चे का हो, ऐसा जरूरी नहीं। कई बार कुछ सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं के कारण भी बच्चे की पढ़ाई प्रभावित होती है। ये सामान्य स्वास्थ्य समस्याएं कई प्रकार की हो सकती हैं जैसे बच्चे की आंखों का कमजोर होना जिससे उसे पढ़ने में दिक्कत आ रही हो, बच्चे की नींद पूरी न होना, बच्चों की श्रवण संबंधी समस्या, बच्चे में रक्ताल्पता, बच्चे द्वारा सही भोजन ग्रहण न कर पाना, थकान, तनाव आदि। इसलिए माता-पिता को बच्चों को डांटने के बजाय यह प्रयास करना चाहिए कि वह अपने बच्चे के पढ़ाई में पीछे होने का कारण जान सकें।
बच्चे की नजर कमजोर होना एक बहुत गंभीर समस्या है। नजर कमजोर होने से उन्हें बोर्ड पर लिखे अक्षरों को पढ़ने में दिक्कत महसूस हो सकती है। साथ ही किताबों में भी अक्षर छोटे होते हैं जिन्हें पढ़ना उनके लिए संभव नहीं होता । इसलिए बच्चे की आंखों की समस्या पर ध्यान अवश्य दें और समय-समय पर किसी अच्छे विशेषज्ञ से बच्चे की आंखों का चैकअप करवाएं।
बच्चे के भोजन पर भी विशेष ध्यान दें। अधिकतर बच्चे सुबह का नाश्ता किए बिना ही स्कूल आ जाते हैं। जब बच्चे में एनर्जी ही नहीं होगी तो वह पढ़ेगा कैसे। इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चे को नाश्ता करा कर ही स्कूल भेजें और उन्हें टिफिन भी दें।
कई शोधों से भी यह प्रमाणित हो चुका है कि जो बच्चे सुबह नाश्ता नहीं करते वे दूसरे बच्चों की अपेक्षा कक्षा में पढ़ाई जाने वाली बातों को अच्छी तरह समझ नहीं पाते। साथ ही उनमें उत्साह की भी कमी होती है। इसलिए बच्चे को संतुलित भोजन दें जिसमें फल, अनाज, दूध, सब्जियां आदि सभी आवश्यक तत्वों से युक्त भोजन शामिल हों। बच्चों में एनीमिया भी बच्चे की सीखने की क्षमता को प्रभावित करता है। इसलिए बच्चे को लौहयुक्त खाद्य पदार्थों जैसे हरी सब्जियों, चुकंदर आदि का सेवन कराना चाहिए।
टी वी के विभिन्न चैनलों ने बड़ों के साथ-साथ बच्चों की दिनचर्या को भी प्रभावित किया है। बच्चे देर रात तक टीवी देखते रहते हैं और सुबह उठने का उनका समय निश्चित होता है। उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती। शरीर व मस्तिष्क को भी विश्राम की जरूरत होती है और जब शरीर व मस्तिष्क को विश्राम नहीं मिलता तो वे काम करने की स्थिति में नहीं होते। परिणाम यह होता कि वे स्कूल में भी थके-थके रहते हैं और अपना ध्यान पढ़ाई में केन्द्रित नहीं कर पाते।
अभिभावकों को यह ध्यान देना बहुत आवश्यक है कि बच्चे की नींद अवश्य पूरी हो, इसलिए उनके टीवी के समय को निश्चित करें। देर रात तक न खुद टीवी देखें और न उन्हें देखने की आज्ञा दें। हो सके तो बच्चे का टी वी देखने का समय निश्चित कर दें।
इसके अतिरिक्त एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है बच्चों में तनाव। आजकल बच्चों में तनाव बढ़ता जा रहा है जिसके कारण बच्चे को सिरदर्द, उदासी व चिड़चिड़ापन घेरे रहता है जिससे वे पढ़ ही नहीं पाते। बच्चों में बढ़ते इस तनाव का कारण उन पर पड़ता पढ़ाई का बोझ है। स्कूल का होमवर्क, टयूशन का काम, परीक्षाओं की तैयारी के बोझ तले बच्चे दबते जा रहे हैं।
माता-पिता बच्चों को अपनी अपेक्षाओं के प्रति पूरा उतरना नहीं पाते तो उनको डांटते मारते हैं जिससे बच्चे के कोमल मन पर चोट पहुंचती है। इसलिए बच्चे से उसको पढ़ाई में आने वाली कठिनाइयां के बारे में बात करें और उन्हें हल करने का प्रयत्न करें। उनके तनाव के कारण को जान कर उसका हल ढूंढें। बच्चों के मानसिक तनाव का असर उनकी कार्यकुशलता व व्यवहार पर पड़ता है, इसलिए उन्हें तनावग्रस्त न होने दें।